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प्रस्तुत कविता में 'दीपक' और 'प्रियतम' किसके प्रतीक हैं?
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
इस कविता की सुंदरता दोनों पर निर्भर है। पुनरुक्ति रुप में शब्द का प्रयोग है - मधुर-मधुर, युग-युग, सिहर-सिहर, विहँस-विहँस आदि कविता को लयबद्ध बनाते हुए प्रभावी बनाने में सक्षम हैं। दूसरी ओर बिंब योजना भी सफल है। यह सर्वस्व समर्पण की भावना की ओर संकेत कर रहा है। आराध्य के प्रति प्रेम को प्रदर्शित कर रहा है।
कवयित्री अपने मन के आस्था रुपी दीपक से अपने परमात्मा रूपी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती हैं। उनका प्रियतम ईश्वर है।
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन प्रतीत होते हैं। क्योंकि इनमे कोई भाव नहीं हैं, यह यंत्रवत होकर अपना कर्तव्य निभाते हैं। प्रेम और परोपकार की भावना समाप्त हो गई है। उनमें आपस में कोई स्नेह नहीं है। इसलिए उसे आकाश के तारे स्नेहहीन लगते हैं।
पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
कवयित्री अपने आत्मदीपक को तरह-तरह से जलने के लिए कहती हैं मीठी, प्रेममयी, खुशी के साथ, काँपते हुए, उत्साह और प्रसन्नता से। कवयित्री चाहती है कि हर परिस्थितियों में यह दीपक जलता रहे और प्रभु का पथ आलोकित करता रहे। इसलिए कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से जलने को कहा है।
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए −
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
'स्नेहहीन दीपक' से क्या तात्पर्य है?
स्नेहहीन दीपक से तात्पर्य बिना तेल का दीपक अर्थात प्रभु भक्ति से शून्य व्यक्ति। उसमें कोई भाव नहीं होता है, वह यंत्रवत होकर अपना कर्तव्य निभाता है।
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए −
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
सागर को जलमय कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
कवयित्री ने सागर को संसार कहा है और जलमय का अर्थ है सांसारिकता में लिप्त। अतः सागर को जलमय कहने से तात्पर्य है सांसारिकता से भरपूर संसार। सागर में अथाह पानी है परन्तु किसी के उपयोग में नहीं आता। इसी तरह बिना ईश्वर भक्ति के व्यक्ति बेकार है। बादल में परोपकार की भावना होती है। वे वर्षा करके संसार को हराभरा बनाते हैं तथा बिजली की चमक से संसार को आलोकित करते हैं, जिसे देखकर सागर का हृदय जलता है।
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए −
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए −
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
कवयित्री दीपक को विहँस विहँस जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
कवयित्री दीपक को उत्साह से तथा प्रसन्नता से जलने के लिए कहती हैं क्योंकि वे अपने आस्था रुपी दीपक की लौ से सभी के मन में आस्था जगाना चाहती हैं। उसे जलाना तो हर हाल में है ही इसलिए विहँस-विहँस कर जलते हुए दूसरों को भी सुख पहुँचाया जा सकता है।
क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा 'महादेवी वर्मा' इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अतंर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए?
(1) महादेवी अपने आराध्य को निर्गुण मानती हैं और मीरा उनकी सगुण उपासक हैं। महादेवी वर्मा ने ईश्वर को निराकार ब्रह्म माना है। वे उसे प्रियतम मानती हैं। सर्वस्व समर्पण की चाह भी की है लेकिन उसके स्वरुप की चर्चा नहीं की।
(2) मीराबाई श्री कृष्ण को आराध्य, प्रियतम मानती हैं और उनकी सेविका बनकर रहना चाहती हैं। उनके स्वरुप और सौंदर्य की रचना भी की है।
(3) मीराबाई ने सहज एवं सरल भावों को जनभाषा के माध्यम से प्रस्तुत किया है जबकि महादेवी ने विभिन्न प्रकार के बिंबों का प्रयोग किया है।
कवयित्री अपने आस्था के दीपक से कहती है कि तू जल-जलकर अपने जीवन के एक-एक कण को गला दे और उस प्रकाश को सागर की भाँति विस्तृत रुप में फैला दे ताकि दूसरे लोग भी उसका लाभ उठा सके।
इन पंक्तियों में कवयित्री का यह भाव है कि आस्था रुपी दीपक प्रतिदिन, प्रतिपल जलता रहे। युगों-युगों तक प्रकाश फैलाता रहे। अपने मन में व्याप्त अंधकार को नष्ट करता हुआ रहे और प्रियतम रुपी ईश्वर का मार्ग प्रकाशित करता रहे अर्थात् ईश्वर में आस्था बनी रहे।
कवयित्री का मानना है कि इस कोमल तन को मोम की भाँति घुलना होगा तभी तो प्रियतम तक पहुँचना संभव हो पाएगा। अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति के लिए कठिन साधना की आवश्यकता है। हमें प्रभु के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित करना होगा।
इस कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिन्ह द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे - पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
इसी प्रकार के अन्य शब्द हैं -
• मधुर-मधुर
• युग-युग
• सिहर-सिहर
• विहँस-विहँस
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