Aroh Chapter 15 भवानी प्रसाद मिश्र
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    NCERT Solution For Class 11 Hindi Aroh

    भवानी प्रसाद मिश्र Here is the CBSE Hindi Chapter 15 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 Hindi भवानी प्रसाद मिश्र Chapter 15 NCERT Solutions for Class 11 Hindi भवानी प्रसाद मिश्र Chapter 15 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN11012264

    भवानी प्रसाद मिश्र के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।

    Solution

    जीवन-परिचय-भवानी प्रसाद मिश्र आधुनिक हिन्दी कविता के समर्थ कवि हैं। वे प्रयोगवाद और नई कविता से सम्बद्ध रहे हैं। मिश्र जी ने व्यक्ति, जीवन, समाज और विश्व को नवीन दृष्टि एवं विस्तृत आयामों में देखा है। उनके गीतों ने आधुनिक हिन्दी कविता-को नई दिशा प्रदान की है।

    जीवन-परिचय-मिश्र जी का जन्म सन् 1914 ई. में होशंगाबाद जिले (मध्य प्रदेश) के टिगरिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता पं. सीताराम मिश्र शिक्षा विभाग में अधिकारी थे तथा साहित्यिक रुचि के व्यक्ति थे। हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी तीन भाषाओं पर मिश्र जी का अच्छा अधिकार था। मिश्र जी को अपने पिता से साहित्यिक अभिरुचि और माँ गोमती देवी से संवेदनशील दृष्टि मिली थी। मिश्र जी ने हाई स्कूल की परीक्षा होशंगाबाद से, बीए, की परीक्षा 1935 में जबलपुर में रहकर उत्तीर्ण की। 1946 से 1950 ई. तक वे महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक रहे। 1952-1955 तक हैदराबाद में ‘कल्पना’ मासिक पत्रिका का संपादन किया। 1956-58 तक आकाशवाणी के कार्यक्रमों का संचालन किया। 1958-72 तक गाँधी प्रतिष्ठान, गाँधी स्मारक निधि और सर्व सेवा संघ से जुडे रहे तथा ‘संपूर्ण गाँधी वाङ्मय’ का सम्पादन किया।

    मिश्र जी का बचपन मध्यप्रदेश के प्राकृतिक अंचलों में बीता, अत: वे प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति गहरा आकर्षण रखते हैं। उनकी कविताओं में सतपुड़ा-अंचल, मालवा-मध्यप्रदेश के प्राकृतिक वैभव का चित्रण मिलता है। वे अपने अंत समय यानी 1985 तक गाँधी प्रतिष्ठान से जुड़े रहे।

    रचनाएँ-भवानी प्रसाद मिश्र के प्रकाशित काव्य-संग्रह इस प्रकार हैं-गीत फरोश, चकित है दुख, अंधेरी कविताएँ, गाँधी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, व्यक्तिगत, अनाम तुम आते हो, परिवर्तन जिए, कालजयी (खंडकाव्य) नीली रेखा तक, त्रिकाल संध्या, शरीर, कविता, फसलंह और फूल, तूस की आग और शतदल।

    ‘गीतफरोश’ मिश्र जी का प्रथम काव्य-संकलन है। उनकी अधिकांश कविताएँ प्रकृति-चित्रण से संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिकता और राष्ट्रीय भावनाओं से युक्त कविताएँ भी हैं।

    ‘चकित है दुख’ की कविताओं में उनकी आस्था और जिजीविषा व्यक्त हुई है। ‘अँधेरी कविताएँ’ दुख और मृत्यु के प्रति अपनी ईमानदार स्वीकृति से उत्पन्न आशा और उल्लास की कविताएँ हैं। ‘गांधी पंचशती’ की कविताओं में मिश्रजी ने गांधी जी को अपनी मार्मिक श्रद्धांजलि अर्पित की है। 1971 में उनका ‘बुनी हुई रस्सी’ काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ। 1972 में इसे साहित्य-अकादमी ने पुरस्कृत किया। आपातकाल-1977) के दौरान उन्होंने ‘त्रिकाल संध्या, की कविताएँ लिखीं।

    साहित्यिक विशेषताएं (काव्य-सौष्ठव -भवानी प्रसाद मिश्र ने अपनी काव्य-दृष्टि स्वयं निर्मित की है। हालाकि वे बहुत से प्राचीन कवियों से प्रभावित हुए, लेकिन उन्होंने किसी कवि को एकमात्र आदर्श मानकर उसका अंध-अनुसरण नहीं किया। उन्होंने स्वयं ‘तार सप्तक’ के वक्तव्य में कहा है-’

    “मुझ पर किन-किन कवियों का प्रभाव पड़ा है यह भी एक प्रश्न है। किसी का नहीं। पुराने कवि मैंने कम पड़े, नए जो कवि मैंने पड़े, मुझे जँचे नहीं। मैंने जब लिखना शुरू किया तब श्री मैथिलीशरण गुप्त और श्री सियारामशरण गुप्त को छोड़ दें तो छायावादी कवियों की धूम थी। निराला प्रसाद और पंत फैशन में थे। ये तीनों ही बड़े कवि मुझे लकीरों में अच्छे लगते थे। किसी एक की भी पूरी कविता नहीं भायी तो उनका प्रभाव क्या पड़ा।....जेल में मैंने बँगला सीखी और कविता- ग्रंथ गुरुदेव (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) के प्राय: सभी पढ़ डाले। उनका बड़ा असर पड़ा।”

    मिश्र जी गांधी जी से सबसे अधिक प्रभावित हुए। उन्होंने कविता के क्षेत्र में गांधी दर्शन को पूरी तरह अपनाया। फलत: उनकी ख्याति एक गांधीवादी कवि के रूप में है। उनका खंडकाव्य ‘कालजयी’ भी गांधी जी के प्रति उनके अटूट विश्वास और आस्था का परिचायक है।

    ‘गीत फरोश’ संकलन की रचनाओं को लिखते समय आर्थिक संकट से जूझ रहा था। उसे इस बात का दुख था कि उसने पैसे लेकर गीत लिखे। इस तकलीफदेह पृष्ठभूमि पर लिखी गई ‘गीत फरोश’ कविता कवि -कर्म के प्रति समाज और स्वयं के बदलते हुए दृष्टिकोण को उजागर करती है। इसमें व्यंग्य के साथ-साथ वस्तु -स्थिति का मार्मिक निरूपण भी है।

    भवानीप्रसाद मिश्र की कविताएं भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से बहुत अधिक प्रभावशाली हैं। इनकी कविताओं के भाव की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-

    संवेदनशीलता-मिश्र जी की कविताओं में सर्वत्र संवेदनशीलता पाई जाती है। उनकी कविताएँ - सतपुडा के जंगल, घर की आशा - गीत आदि में उनकी गहरी संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं। ‘घर की याद’ कविता से एक उदाहरण दृष्टव्य है,-

    माँ कि जिसकी स्नेह- धारा,
    का यहाँ तक पसारा।
    उसे लिखना नहीं आता,
    जो कि उसका पत्र पाता।

    सामाजिकता का बोध-मिश्र जी की कविताएँ व्यक्तिवादी नहीं हैं। वे सामाजिक भाव- बोध से संपन्न हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में सामाजिक अन्याय, शोषण, अभाव आदि का चित्रण किया है। उनकी जन-चेतना संबंधी कविताओं में निम्न -मध्यमवर्गीय समाज अभावग्रस्त जीवन का चित्रण हुआ है।

    प्रकृति-चित्रण-मिश्र जी प्रकृति-प्रेमी कवि हैं। उनका प्रकृति-चित्रण कलात्मक है। आकाश, समुद्र, पृथ्वी, बादल, फूल, नदी, पक्षी, वन, पर्वत आदि सभी ने उन्हें प्रभावित किया है। ‘सतपुड़ा के जंगल’ का एक चित्रण:

    सतपुड़ा के घने जंगल
    नाँद में डुबे हुए से ऊँघते अनमने जंगल।
    सड़े पत्ते, गले पत्ते, हरे पत्ते, जले पत्से
    वन्य-पथ को बैक रहे से पंक-दल में पले पत्ते।

    गांधीवादी दर्शन-गांधीवाद ने आपको भीतर तक प्रभावित किया है। मिश्र जी के काव्य में सत्य, अहिंसा, खादी के प्रति मोह, हिन्दू -मुस्लिम एकता, राष्ट्रभाषा का महत्त्व, श्रम की महत्ता जैसे बहुमूल्य विचारों ने स्थान पाया है। अस्पृश्यता की समाप्ति का सपना सब साकार होगा। जब-

    यह अछूत है वह काला -फेरा है
    यह हिन्दू वह मुसलमान है
    वन मजदूर और मैं धनपति
    यह निर्गुण वह गुण निधान है
    ऐसे सारे भेद मिटेंगे जिस दिन अपने
    सफल उसी दिन होंगे गांधी जी के सपने।

    व्यंग्य भावना-मिश्र जी एक कुशल व्यंग्यकार भी हैं। उनके व्यंग्य कटु तीखे, चुटीले और मर्मस्पर्शी होते हुए भी विनोद की मिठास लिए होते हैं। ‘चकित है दुख’ की एक कविता से उदाहरण प्रस्तुत है-

    बैठकर खादी की गादी पर ढलती हैं प्यालियाँ
    भाषण होते हैं अंग्रेजी में गांधी पर
    बजती हैं जोर-जोर से तालियाँ।

    भाषा-शैली-मिश्र जी की भाषा-शैली अत्यंत सहज और बोलचाल की भाषा के निकट है, वे स्पष्ट घोषणा करते हैं-

    जिस तरह हम बोलते हैं
    उस तरह तू लिख।

    यही उनकी भाषा का मूलमंत्र है। आत्मीयता ये युक्त, आडम्बर से मुक्त, औपचारिकता से दूर होने पर ही मिश्र जी की कविता की भाषा बनती है। जीवन के गंभीर सत्यों का उद्घाटन वे सीधे-सरल शब्दों में कर देते हैं। ‘गीत फरोश’ और कालजयी (खंड काव्य) में उनकी भाषा का संस्कृतनिष्ठ रूप अवश्य दिखाई पड़ता है।

    प्रतीक-विधान की दृष्टि से मिश्र जी का काव्य पर्याप्त सम्पन्न है। मिश्र जी ने अपनी प्रारंभिक रचनाओं में परंपरागत छंदों का प्रयोग किया है, पर बाद की रचनाएँ छंद के बंधन से मुक्त हैं। कहीं-कहीं लोकगीत शैली का प्रयोग भी मिलता है-

    पीके फूटे आज प्यार के पानी बरसा री

    मिश्र जी के काव्य में बिम्बों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उनके बिंब और प्रतीक बहुत स्पष्ट एवं सहज हैं। उनमें कहीं भी जटिलता या बोझिलता नहीं मिलती। अभिव्यक्ति की सहजता, आत्मीयता और कलात्मकता उनकी काव्य-शैली की विशेषताएँ हैं।

    Question 2
    CBSEENHN11012265

    आज पानी गिर रहा है,
    बहत पानी गिर रहा है,
    रात भर गिरता रहा है,
    प्राण मन घिरता रहा है,
    बहुत पानी गिर रहा है
    घर नजर में तिर रहा है
    घर कि मुझसे दूर है जो
    घर खुशी का पुर है जो

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र, की लंबी कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। 1942 में ‘भारत छोड़ो आदोलन’ में कवि को तीन वर्ष के लिए जेल की यातना झेलनी पड़ी थी। वहीं एक दिन जब बहुत वर्षा होती है तब कवि को घर की याद भाव- विह्वल कर देती है। उसे रह-रह कर घर के परिजन याद आते हैं।

    व्याख्या-कवि बताता है कि आज बाहर वर्षा हो रही है। बहुत पानी गिर रहा है अर्थात् तेज मूसलाधार वर्षा हो रही है। रात- भर वर्षा होती रही है। इस वर्षा ने उसके मन-प्राण पर बहुत प्रभाव डाला है। उसके मन में तरह-तरह की भावनाएँ जन्म ले रही हैं।

    बाहर बहुत पानी बरस रहा है। इस वातावरण में कवि की आँखों के सम्मुख घर का दृश्य साकार हो उठता है। वह बार-बार घर की यादों में डूब जाता है। उसका घर यहाँ की जेल से बहुत दूर है। घर खुशियों से भरा-पूरा है। वहाँ सभी प्रकार की खुशियाँ मौजूद हैं। आज वर्षा के इस मौसम में कवि को अपने घर की बहुत याद अति। है।

    विशेष: 1. अत्यंत सीधी-सादी एवं सरल भाषा में कवि अपने मन की बात कहता है।

    Question 3
    CBSEENHN11012266

    घर कि घर में चार भाई
    मायके मे ‘बहिन आई,
    बहिन आई बाप के घर
    हाय रे परिताप के घर!
    घर कि घर में सब जुड़े हैं
    सब कि इतने कब जुड़े हैं
    चार भाई चार बहिने
    भुजा भाई प्यार बहिने

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र की लंबी कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि वर्षा के दिन जेल में बैठा हुआ घर के वातावरण का भावुकतापूर्ण वर्णन करता है।

    व्याख्या-कवि बताता है कि उसके घर में चार भाई हैं। सावन के महीने में वर्षा ऋतु बहन अपने मायके अर्थात् पिता के घर आई हुई होगी। बहन का पिता के घर आना और उसका यहाँ जेल में होना निश्चय ही दुख का कारण बन रहा होगा।

    घर के सभी सदस्य एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़े हुए हैं। सभी में आपस में बहुत प्यार है । घर में चार भाई और चार बहनें हैं। चारों भाई चार भुजाओं के समान हैं और बहनें प्रेम-स्नेह की प्रतीक हैं ।

    विशेष: 1. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

    2. भाइयों को भुजा और बहनों को प्यार का प्रतीक दर्शाया गया है।

    Question 4
    CBSEENHN11012267

    और माँ बिन - पड़ी मेरी
    दु:ख में वह गढ़ी मेरी
    माँ कि जिसकी गोद में सिर
    रख लिया तो दुख नहीं फिर
    माँ कि जिसकी स्नेह- धारा
    का यहाँ तक भी पसारा
    उसे लिखना नहीं आता
    जो कि उसका पत्र पाता।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद’ से उद्धृत है। कवि अपने जेल-प्रवास में घर को बहुत याद करता है। उसे रह- रहकर घर के सभी सदस याद आते हैं। यहाँ वह अपनी माँ के बारे में बता रहा है।

    व्याख्या-कवि बताता है कि उसकी माँ पढ़ी-लिखी नहीं है। वह तो दुख में गढ़ी हुई है। उसके जीवन में दुख रहे हैं। वह ऐसी प्यारी माँ है कि उसकी गोद में सिर रखने के पश्चात् किसी प्रकार का दुख नहीं रह जाता। माँ सभी प्रकार के दुखों-कष्टों का हरण कर लेती है।

    मां के प्रेम-स्नेह का प्रसार बहुत दूर-दूर तक है। उसका स्नेह यहां जेल तक भी पसरा हुआ है अर्थात् यहाँ जेल में भी मैं उसके स्नेह का अनुभव करता हूँ। मेरी माँ को लिखना-पढ़ना नहीं आता, अत: वह पत्र नहीं लिख सकती। मैं उसका कोई पत्र नहीं पा सकता, क्योंकि वह पत्र लिखना जानती ही नहीं।

    विशेष: 1 यहाँ कवि ने मां की सहजता एवं स्नेहिल छाया का मार्मिक अंकन किया है।

    2. भाषा अलंकारों के प्रयोग से सर्वथा मुक्त है। यह सीधी सरल है।

    Question 5
    CBSEENHN11012268

    पिता जी जिनको बुढ़ापा,
    एक क्षण भी नहीं व्यापा
    जो अभी भी दौड़ जाएँ,
    जो अभी भी खिलखिलाएँ
    मौत के आगे न हिचकें,
    शेर के आगे न बिचकें,
    बोल में बादल गरजता
    काम में झंझा लरजता
    आज गीता-पाठ करके
    दंड दो सौ साठ करके,
    खूब मुगदर हिला लेकर
    मूठ उनकी मिला लेकर

    Solution

    प्रसंग- भवानी प्रसाद मिश्र सरल और सहज कविता के प्रतिनिधि कवि हैं। यह कविता मिश्र जी की लंबी कविता ‘घर की याद’ से अवतरित है जो हमारी पाठ्य- पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित है। 1942 के ‘भारत छोड़ आन्दोलन, में कवि को तीन वर्ष जेल यातना सहन करनी पड़ी थी। सावन के महीने में बरसते बादलों को देखकर कवि को घर की याद सताई। इसके अन्तर्गत कवि अपने पिता के सरल और सहज स्वभाव का वर्णन करता है-

    व्याख्या-कवि बताता है कि पिताजी का -थे, भाव इतना हँसमुख है कि अभी तक उन्हें वृद्धावस्था ने स्पर्श नहीं किया। वे अपने सरल और हँसमुख स्वभाव के कारण बुढ़ापे को नहीं आने देते। वे आज बड़े होकर भी दौड़- भाग कर सकते हैं और सबके साथ खिलखिलाकर हँस सकते हैं। पिता जी का स्वभाव सरल, सहज और हँसमुख है जिन पर अभी बुढ़ापे का कोई असर नहीं है। पिता जी इतने निडर और निर्भीक हैं कि मृत्यु से भी नहीं डरते। वे शेर के सामने जाने से भी नहीं डरते। वे बड़े ही शक्तिशाली हैं। जब वे बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि बादल गरज रहे हों, उनकी वाणी गंभीर है। जब वे काम करतै हैं तो तूफान-सा मच जाता है और उनके काम के समक्ष तूफान भी शान्त हो जाता है। इस प्रकार की उनकी कार्यशैली है। पिताजी नित्य श्रीमद्गीता का पाठ करते हैं। वे वृद्धावस्था में भी व्यायाम करने के अभ्यासी हैं और प्रतिदिन दो सौ साठ दण्ड लगाते हैं। इस अवस्था में इतना व्यायाम मुश्किल है, फिर भी वे रोज करते हैं। जब वे व्यायाम करके नीचे आए होंगे, मुझे नं पाकर मेरे प्रेम’ के कारण उनकी आँखों में आँसू भर आए. होंगे। इस प्रकार कवि को बरसते सावन में घर की याद आ रही है।

    विशेष: (1) प्रस्तुत काव्य पक्तियों में कवि मिश्र जी ने खड़ी बोली की छन्दमुक्त कविता का प्रयोग किया है। संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ स्थानीय और विदेशी भाषाओं को सहज रूप से प्रयोग किया हे। बोल, हिचकना, बिचकना, लरजना स्थानीय शब्दों के साथ मौत, शेर आदि विदेशी शब्दों का प्रयोग किया है।

    (2) पिता के स्वाभाविक शब्दचित्र वर्णन से चित्रात्मकता झलकती है।

    (3) भाषा मुहावरेदार है। पिता के निर्भीक, सशक्त, गंभीर, परिश्रमी स्वभाव के साथ-साथ उनके नियम से गीता पाठ करने तथा प्रतिदिन व्यायाम करने का वर्णन किया है। साथ ही पुत्र-प्रेम से पिता की आँखों में आँसुओं के आने से उनकी भावुकता का वर्णन भी किया है।

    Question 6
    CBSEENHN11012269

    जब कि नीचे आए होंगे
    नैन जल से छाए होंगे,
    हाय, पानी गिर रहा है,
    घर नजर में तिर रहा है,
    चार भाई चार बहिनें,
    भुजा भाई प्यार बहिनें,
    खेलते या खड़े होंगे,
    नजर उनको पड़े होंगे।
    पिता जी जिनको बुढ़ापा
    एक क्षण भी नहीं व्यापा,
    रो पड़े होंगे बराबर,
    पाँचवें का नाम लेकर

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद’ से अवतरित है। कवि जेल में बैठकर घर के सदस्यों को याद करता है। यहाँ वह अपने पिता की विशेषताओं का उल्लेख कर रहा है।

    व्याख्या-कवि याद करता है कि जब उसके पिताजी घर में ऊपर से नीचे आए होंगे तब उनकी आँखों में आँसू अवश्य आए होंगे। जब उन्हें उनका बेटा (भवानी) दिखाई नहीं पड़ा होगा। और उसे याद करके उनकी आँखें भर आई होंगी। कवि जेल में बैठकर देखता है कि बाहर काफी वर्षा जल बरस रहा है और इस वातावरण में उसकी नजरों में घर की झलक उभर रही है। उसे घर की याद सताती है।

    घर में चार भाई और चार बहनें हैं। भाई भुजाओं के समान हैं तो बहनें प्रेम-प्यार का प्रतीक हैं। वे सभी घर में खेलते होंगे या वहीं खड़े होंगे। इस अवस्था में पिता की नजर उन पर अवश्य पड़ी होगी।

    यद्यपि पिताजी की आयु काफी है, पर बुढ़ापा उनके पास अभी तक नहीं फटका है। वे एक क्षण को भी बुढ़ापे का अनुभव नहीं करते। जब उन्हें अपने पाँचवें बेटे (भवानी प्रसाद) की याद आई होगी, तब वे रो पड़े होंगे। मेरी स्मृति ने उन्हें रुला दिया होगा।

    विशेष: (1) कवि घर के वातावरण की सहज कल्पना करता है तथा पिताजी के स्वभाव पर प्रकाश डालता है।

    (2) ‘भुजा भाई’ में अनुप्रास अलंकार सहज रूप से आ गया है।

    Question 7
    CBSEENHN11012270

    पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
    जिसे सोने पर सुहागा
    पिता जी कहते रहे हैं,
    प्यार में बहते रहे हैं,
    आज उनके स्वर्ण बेटे,
    लगे होंगे उन्हें हेटे
    क्योंकि मैं उनपर सुहागा
    बँधा बैठा हूँ अभागा,

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद’ से अवतरित हैं। कवि जेल- प्रवास के दौरान अपने घर की याद करके भाव-विह्वल हो उठता है।

    व्याख्या-कवि घर में अपने पिता की भावुक स्थिति की कल्पना करते हुए कहता है कि यद्यपि घर में चार बेटे और हैं, पर वे अपने पाँचवें बेटे (भवानी प्रसाद) को याद करके अवश्य दुखी होते होंगे। मैं पाँचवी बेटा ही अभागा हूँ जो उनसे दूर हूँ। मुझे वे ‘सोने पर सुहागा, कहते रहे हैं अर्थात् उन चारों बेटों में अधिक अच्छा कहते रहे हैं। ऐसा कहकर वै प्यार की री में बह जाते थे अर्थात मुझे अन्य बेटों से विशेष मानकर अधिक स्नेह देते थे।

    यद्यपि उनके अन्य चार बेटे भी सोने की तरह खरे है, पर मर अभाव में उन्हें वे छोटे प्रतीत हो रहे होंगे। इसका कारण यही है कि वे मुझे ‘सोने पर सुहागा’ कहते थे अर्थात् अच्छों में अधिक अच्छा। और आज स्थिति यह है कि मैं यहाँ जेल में बँधकर बैठा हुआ हूँ। मैं पिताजी के सान्निध्य से दूर हूँ।

    विशेष: (1) कवि घर में अपनी स्थिति के बारे में बताता है।

    (2) ‘सोने पर सुहागा’ कहावत का सटीक प्रयोग हुआ है।

    (3) सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

    Question 8
    CBSEENHN11012271

    और माँ ने कहा होगा,
    दुःख कितना बहा होगा,
    आँख में किस लिए पानी
    वहाँ अच्छा है भवानी
    वह तुम्हारा मन समझकर,
    और अपनापन समझकर,
    गया है सो ठीक ही है,
    यह तुम्हारी लीक ही है,
    पाँव जो पीछे हटाता,
    कोख को मेरी लजाता,
    इस तरह होओ न कच्चे,
    रो पड़ेंगे और बच्चे,
    पिता जी ने कहा होगा,
    हाय, कितना सहा होगा,
    कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
    धीर मैं खोता कहाँ हूँ,

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि अपने जेल-प्रवास में घर के एक-एक सदस्य का स्मरण करता है। यहाँ वह अपनी माँ के स्वभाव का उल्लेख कर रहा है।

    व्याख्या-कवि बताता है कि जब उसके पिताजी अपने पाँचवें बेटे भवानी (कवि) को याद करके दुखी हुए होंगे तब माँ ने उन्हें ढाढ़स बँधाया होगा। उस समय माँ ने उनसे कहा होगा कि आप अपनी आँखों में आँसू लाकर क्यों दुखी होते हैं। वहाँ जेल में हमारा बेटा भवानी कुशलतापूर्वक है। वह वहाँ अच्छा है।

    कवि की माँ ने पिताजी को यह कहकर समझाया होगा कि भवानी ने तुम्हारे मन की बात को समझा और अपनेपन का अनुभव करके ही वह भारत छोड़ो आदोलन में भाग लेकर जेल गया है अर्थात् मन से तुम भी ऐसा चाहते थे। उसने बिल्कुल ठीक काम किया है। यह तो तुम्हारी बनाई परंपरा का ही अनुसरण है। उसने हमारे खानदान की मर्यादा का ही पालन किया है।

    हाँ, यदि वह अपना पाँव पीछे हटाता अर्थात् इस लक्ष्य से हटता तो निश्चय ही मुझे दुख होता। तब वह मेरी कोख को लजाने का काम करता अर्थात् तब मुझे शर्मिंदा होना पड़ता। वह पिताजी को समझा रही होगी कि तुम अपना दिल कच्चा मत करो। तुम्हें रोता देखकर घर के अन्य बच्चे भी रो पड़ेंगे।

    तब पिताजी ने माँ की बात सुनकर यह उत्तर दिया होगा कि मैं भला कहाँ रो रहा हूँ। मैं अपना धीरज भी नहीं खो रहा हूँ। यह सब कहते हुए उन्हें अपने आपको बहुत जब्त करना पड़ा होगा। उनकी सहनशक्ति गजब की है।

    विशेष: (1) इस काव्यांश में कवि ने अपनी माँ की धैर्यशीलता पर प्रकाश डाला है।

    (2) ‘कोख लजाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

    Question 9
    CBSEENHN11012272

    हे सजीले हरे सावन,
    हे कि मेरे पुण्य पावन,
    तुम बरस लो वे न बरसें,
    पाँचवें को वे न तरसें,
    मैं मजे में हूँ सही है,
    घर नहीं हूँ बस यही है,
    किंतु यह बस बड़ा बस है,
    इसी बस से सब विरस है,

    Solution

    प्रसंग-प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ भवानीप्रसाद मिश्र रचित कविता ‘घर की याद’ के ‘पिता, शीर्षक से अवतरित हैं।न पक्तियों में कवि सावन से कहता है कि तुम तो खूब बरसो, पर मेरे पिता की अमअश्रुधारा बरसे-

    व्याख्या-हे सजीले हरे-भरे सावन! हे पुण्यशाली! हे परमपावन! तुम चाहे कितना ही बरस लो, जी भरकर बरस लो, परन्तु मेरे पिता के पास जाकर कोई ऐसा संदेश मत देना कि वे मेरे अभाव में अश्रुधारा बरसाएँ और अपनै पाँचवें बेटे भवानी के लिए न तरसें। मैं यहाँ जेल में हूँ यह बात ठीक है, परन्तु मैं यहाँ बिल्कुल ठीक हूँ। अन्तर इतना है कि मैं घर पर पिता जी के पास नहीं हूँ, इसी बेबसी ने सारे परिवार को आनंदहीन और नीरस कर रखा है। मेरे अभाव में घर के सारे परिवारी-जन दुखी हैं।

    विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में भवानीप्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छन्दमुक्त कविता का प्रयोग किया है। तत्सम, तद्भव शब्दावली युक्त भाषा मुहावरों से परिपूर्ण है। ‘पुण्य-पावन’ में अनुप्रास अलंकार है। सावन को सन्देशवाहक बनाकर भेजा गया है। यमक अलंकार का भी प्रयोग है। भाषा सरल और जनसाधारण के योग्य है। कवि सावन से तो बरसने को कहता है परन्तु पिताजी की अश्रुधारा बरसने पर चिन्तित है। वह संदेश भेजता है कि उनका पाँचवाँ पुत्र भवानी जेल में स्वस्थ और सानन्द है। बस, घर पर नहीं है, इसी बात से सभी परिवारी-जन चिन्तित हैं।

    Question 10
    CBSEENHN11012273

    किंतु उनसे यह न कहना
    उन्हें देते धीर रहना,
    उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
    उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ।
    काम करता हूँ कि कहना,
    नाम करता हूँ कि कहना,
    चाहते हैं लोग कहना,
    मत करो कुछ शोक कहना,

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्य- पंक्तियाँ भवानीप्रसाद मिश्र रचित कविता ‘घर की याद’ के ‘पिता’ शीर्षक से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवि सावन को सन्देशवाहक बनाकर अपने पिता को सन्देश भेज रहा है-

    व्याख्या-हे सजीले सावन! तुम घर जाकर पिता जी से यह मत कह देना कि मैं जेल में दुखी और नीरस जीवन बिता रहा हूँ। अपितु मेरी कुशलता बताकर उन्हें धीरज प्रदान करना। उनसे यह कहना कि मैं जेल में अपनी कविताएँ लिखता रहता हूँ और पत्रिकाओं के साथ अन्य प्रकार के साहित्य का भी अध्ययन कर रहा हूँ। मैं यहाँ व्यर्थ समय नहीं गँवा रहा हूँ, हर समय व्यस्त रहता हूँ। मैं यहाँ आनंदित हूँ-खेलकूद में भी अपना समय व्यतीत करता हूँ। मैं यहाँ इतना आनन्दित और मस्त हूँ कि दुखों को दूर धकेल देता हूँ। यहाँ किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं है। हे सावन! वहाँ जाकर पिताजी से यह मत कहना कि व्याख्या है यहाँ दुखी और उदास हूँ।

    विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में भवानीप्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। भाषा सरल और जनसाधारण योग्य है। पिता के दुखी होने के भय से उन्हें वास्तविकता का ज्ञान नहीं कराना चाहता और अपनी कुशलता और मस्ती का संदेश भेजकर उन्हें धैर्य बंधाता है।

    Question 11
    CBSEENHN11012274

    और कहना मस्त हूँ मैं,
    कातने में व्यस्त हूँ मैं,
    वजन सत्तर सेर मेरा,
    और भोजन ढेर मेरा,
    कूदता हूँ, खेलता हूँ,
    दू:ख डट कर ठेलता हूँ,
    और कहना मस्त हूँ, मैं,
    यों न कहना अस्त हूँ मैं,
    हाय रे, ऐसा न कहना,
    है कि जो वैसा न कहना,
    कह न देना जागता हूँ,
    आदमी से भागता हूँ,

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि सावन के माध्यम से अपने घर संदेश भिजवाता है।

    व्याख्या-कवि सावन से कहता है कि तुम मेरे घर जाकर यह कहना कि तुम्हरा बेटा भवानी जेल में मजे में है। वहाँ उसे कोई कष्ट नहीं है। वह वहाँ सूत कातने में व्यस्त रहता है। इस समय उसका वजन बढ्कर 70 सेर (लगभग 63 किलो) हो गया है। वह वहाँ ढेर सारा भोजन करता है अर्थात् तुम्हारा बेटा वहाँ मजे में है, उसे कोई कष्ट नहीं है। (इससे उन्हें तसल्ली हो जाएगी।)

    कवि सावन से घर जाकर यह भी कहने को कहता है कि वहाँ जाकर बताना कि तुम्हारा बेटा जेल में भी खूब खेलता -कूदता है और दुखों को आगे ठेलकर भगा देता है। वह वहाँ पूरी तरह मस्ती से रह रहा है। उसे वहाँ कोई दुख नहीं है। (यह सब कहलवाकर कवि अपने परिवारजनों को दुखी होने से बचाना चाहता है।)

    कवि सावन को सावधान करते हुए कहता है कि तुम मेरे घर जाकर कुछ ऐसा- वैसा मत कह देना। उन्हें यह मत बता देना कि मैं रात भर जागता रहता हूँ और आदमियों से दूर भागता रहता हूँ अर्थात् वहाँ मेरी वास्तविक स्थिति का बखान मत कर देना।

    विशेष: (1) कवि अपने दुख तकलीफ को छिपाना चाहता है, ताकि उसके परिवारजनों को कष्ट न हो।

    (2) सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

    Question 12
    CBSEENHN11012275

    कह न देना मौन हूँ मैं,
    खुद ना समझुँ कौन हूँ मैं,
    देखना कुछ बक न देना,
    उन्हें कोई शक न देना,
    हे सजीले हरे सावन,
    हे कि मेरे पुण्य पावन,
    तुम बरस लो वे न बरसें,
    पाँचवें को वे न तरसें।,

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ भवानीप्रसाद मिश्र रचित कविता ‘घर की याद’ के ‘पिता’ शीर्षक से अवतरित हैं। कवि जेल में घर की याद करके सावन को दूत बनाकर अपने पिता को संदेश भेजता है-

    व्याख्या-हे सावन! वहाँ जाकर पिताजी से यह मत कह देना कि मैं यहाँ जेल में चुपचाप और शान्त रहता हूँ। यह भी मत कह देना कि मैं यहाँ स्वयं को भी नहीं पहचान पाक कि मैं कौन हूँ। वहाँ जाकर पिताजी से उल्टा-पुल्टा मत कह देना कि उन्हें मेरे बारे में कोई संदेह न हो जाय। तुम वहाँ ऐसा कहना कि उन्हें कोई कष्ट न हो। यदि तुम यहाँ की वास्तविकता का वर्णन कर दोगे तो वे वहाँ दुखी होंगे। हे सजीले हरे- भरे सावन! हे पुण्यात्मा! हे परम पावन! तुम तो जी चाहे बरस लो पर वहाँ जाकर ऐसा कोई दुखपूर्ण वर्णन मत कर देना कि पिताजी की अश्रुधारा बरसने लगे। वहां जाकर पिताजी से ऐसा मत कहना कि पिताजी अपने पाँचवें पुत्र भवानी के लिए तड़पने लगें या मिलने के लिए तरसने लगें। मैं यहाँ सोचता हूँ कि वे सदैव सुखी रहें और मुस्कराते रहें, उन्हें कोई पीड़ा न सताए।

    विशेष- 1. प्रस्तुत पंक्तियों में भवानीप्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। तत्सम, तद्भव शब्दावली युक्त भाषा मुहावरों से परिपूर्ण है। ‘पुण्य-पावन’ में अनुप्रास अलंकार है। सावन को संदेशवाहक बनाकर भेजा गया है। यमक अलंकार का भी प्रयोग है। भाषा सरल और जनसाधारण योग्य है। कवि सावन से तो बरसने को कहता है परन्तु पिताजी की अश्रुधारा बरसने पर चिन्तित है। वह संदेश भेजता है कि उनका पाँचवाँ पुत्र भवानी जेल में स्वस्थ और सानन्द है। बस, घर पर नहीं है, इसी बात से सभी परिवारी-जन चिन्तित हैं।

    Question 13
    CBSEENHN11012276

    पानी के रात- भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है?

    Solution

    पानी के रात- भर गिरने और प्राण-मन के घिरने का आपस में गहरा संबंध है। वर्षा होने पर मन में भी प्रेम-प्यार की भावनाएँ उमड़ने-घुमड़ने लगती हैं। व्यक्ति का प्राण-मन अपनों से मिलने के लिए तरसने लगता है। वर्षा की बूँदे मन-प्राण को जहाँ उल्लसित करती हैं, वहीं वियोगावस्था में वे मिलन की कामना पैदा करती हैं।

    Question 14
    CBSEENHN11012277

    मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को ‘परिताप का घर’ क्यों कहा है?

    Solution

    मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को ‘परिताप का घर’ इसलिए कहा है, क्योंकि वहाँ एक भाई का न होना घर के वातावरण को दुखी अवश्य बनाता होगा। बहन भी भाई को वहाँ घर में न देखकर दुखी होती होगी। यही कारण है कि कवि ने अपने घर को ‘परिताप का घर’ कहा है।

    Question 15
    CBSEENHN11012278

    पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है?

    Solution

    पिता के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं को उकेरा गया है

    1. पिता पूर्णत: स्वस्थ हैं। बुढ़ापे ने उन्हें कभी नहीं सताया।

    2. वे दौड़ लगाते तथा दंड लगाते हैं।

    3. वे इतने साहसी हैं कि उनके आगे मौत भी घबराती है।

    4. वे धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। प्रतिदिन गीता का पाठ करते हैं।

    5. वे भावुक प्रवृत्ति के हैं। अपने पाँचवें बेटे को याद करके उनकी आँखें भर आती हैं।

    6. वे अपने बेटों-बेटियों से बहुत स्नेह करते हैं।

    Question 16
    CBSEENHN11012279

    निम्नलिखित पंक्तियों में ‘बस’ शब्द के प्रयोग की विशेषता बताइए।

    मैं मजे में हूँ सही है

    घर नहीं हूँ बस यही है

    किंतु यह बस बड़ा बस है,

    इसी बस से बस विरस है।

    Solution

    (1) बस-केवल - मैं केवल घर में नहीं हूँ।

    (2) बस-बेबसी - यह बात मेरे बस की नहीं हैं।

    बस-मात्र - बस पाँच रुपए चाहिए।

    (3) बस-कारण - इसी बस से

    बस-सब - सब बिना रस का हो रहा है।

    Question 17
    CBSEENHN11012280

    कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मनःस्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है?

    Solution

    कविता की अंतिम 12 पंक्तियों में कवि अपनी यथार्थ स्थिति व मन की दशा को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है। इसका कारण यह है कि वह अपनी सत्य स्थिति को बताकर अपने परिवारजनों को और अधिक दुखी नहीं करना चाहता। अपने बेटे के दुखों को जानकर प्रत्येक माता-पिता दुखी होते हैं। यही स्थिति कवि के परिजनों की भी है। वह अपनी वास्तविकता को छिपा जाता है।

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    Question 18
    CBSEENHN11012281

    ऐसी पाँच रचनाओं का संकलन कीजिए, जिसमें प्रकृति के उपादानों की कल्पना संदेशवाहक के रूप में की गई है।

    Solution

    1. मेघदूत  2. बादल राग  3. मेघ आए  4. जूही की कली  5. आ: धरती कितना देती है।

    Question 19
    CBSEENHN11012282

    घर से अलग होकर आप घर को किस तरह से याद करते हैं? लिखें।

    Solution

    घर से अलग होकर हम अपने घर को बहुत याद करते हैं। हमें घर के सभी सदस्य याद आते हैं, उनकी बातें याद आती हैं। मन में बार-बार घर जाने की इच्छा उत्पन्न होती है। हम घर वालों को फोन करते हैं। उनका हाल-चाल जानते हैं।

    Question 20
    CBSEENHN11012283

    पिता की याद आने का तात्कालिक कारण क्या है?

    Solution

    कवि भवानी प्रसाद मिश्र ‘भारत छोड़ो आन्दोलन, में भाग लेने के परिणामस्वरूप जेल में हैं। तभी सावन के महीने में वर्षा की झड़ी लग जाती है। इन बरसते बादलों को देखकर कवि को घर की याद के साथ-साथ पिताजी की याद आने लगती है। बरसता हुआ सावन ही पिता की याद आने का तात्कालिक कारण है। कवि को पिता की अश्रुधारा बरसने का भय है।

    Question 21
    CBSEENHN11012284

    उम्र बड़ी होने पर भी पिता को बुढ़ापा छू तक नहीं गया है-कवि ने इसके क्या प्रमाण दिए हैं?

    Solution

    कवि भवानी प्रसाद मिश्र ‘पिता’ कविता में कहते हैं कि वस्तुत: पिताजी बड़ी उस के हैं फिर भी बुढ़ापा उनके पास तक नहीं आ पाया है, क्योंकि वे अभी भी व्यायाम करते हैं, दौड़ लगाते हैं, खिलखिलाकर हँसते हैं, खूब काम करते हैं और निर्भय रहते हैं।

    Question 22
    CBSEENHN11012285

    कवि ने पिता के मन की तुलना किससे की है?

    Solution

    कवि ने ‘पिता’ कविता में पिता के मन की तुलना बरगद के वृक्ष से की है। कवि के पिताजी भावुक और सरल हैं। जैसे-बरगद के वृक्ष को थोडी-सी चोट लगने पर दूध निकलने लगता है वैसे ही पिताजी भी थोड़े कष्ट से द्रवित हो जाते हैं।

    Question 23
    CBSEENHN11012286

    ‘तुम बरस लो, वे न बरसें’ कथन का क्या आशय है?

    Solution

    ‘पिता’ कविता में कवि सावन से कहता है -‘तुम बरस लो, वे न बरसें’, अर्थात् हे सावन! तुम तो जी भरके बरस लो पर वहाँ जाकर कोई ऐसा संदेश पिताजी को मत दे देना कि उनकी अश्रुधारा बरस पड़े। कवि पिता की आँखों में आँसू नहीं चाहता है।

    Question 24
    CBSEENHN11012287

    कवि अपनी वास्तविक स्थिति को पिता से क्यों छिपाना चाहता है?

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र जेल में हैं। उस समय के सेनानियों को जेल में क्या यातनाएँ दी जाती थीं, उनसे पिता जी को अवगत कराना नहीं चाहता है। पिताजी सरल और भावुक स्वभाव के हैं। उनका मन वट वृक्ष के समान द्रवित होने लगता है। थोड़ी-सी परेशानी की बात सुनकर वे रोने लगते हैं। उन्हें सुखी चाहता हुआ कवि पिता से वास्तविकता छिपाना चाहता है।

    Question 25
    CBSEENHN11012288

    पिता के हृदय की तुलना बरगद से करने का कारण स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने अपनी ‘पिता’ शीर्षक कविता में अपने पिताजी के हृदय की तुलना वट वृक्ष से की है- “मन कि बड़ का झाडू जैसे।” पिताजी का हृदय कोमल और भावुक प्रकृति का है। जिस प्रकार बरगद के वृक्ष का कोई पत्ता टूट जाए, हलकी सी चोट लग जाए या टहनी टूट जाए तो बरगद के वृक्ष से दूध की धारा बहने लगती है, पिताजी का हृदय भी उसी प्रकार का है कि कोई छोटा-सा भी कष्ट हो या कोई अलग हो तो उनकी आँखों से आँसू बरसने लगते हैं। वियोग सहन न कर पाने के कारण पिता के हृदय की तुलना बरगद से की गई है।

    Question 26
    CBSEENHN11012289

    कवि सावन से अपने बारे में क्या-क्या बताने का अनुरोध करता है?

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र ‘पिता’ शीर्षक कविता में सावन को संदेशवाहक बनाकर भेजते हैं। कवि अपनी सुखात्मक अनुभूतियाँ सावन को बताना चाहता है। जिस बात से उनके पिता को सुख हो वह सब सावन को बताना चाहता है। वह सावन से कहता है कि पिताजी से कहना मैं यहाँ बिल्कुल सुखी हूँ मुझे यहां किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं है। मैं यहाँ पर अपना अध्ययन भी कर रहा हूँ और कभी-कभी कविताएँ भी लिख लेता हूँ। खूब खेलता-कूदता भी हूँ। सब प्रकार से मस्त और सुखी हूँ। कवि पिता के हृदय को कष्ट देने वाली बातें सावन को नहीं बताना चाहता है। कवि का अपने पिता से स्वाभाविक और आदर्श प्रेम है।

    Question 27
    CBSEENHN11012290

    ‘देखना कुछ बक न देना’ के स्थान पर ‘देखना कुछ कह न देना’ कहा जाता तो कविता के सौन्दर्य में क्या अंतर आ जाता?

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने ‘पिता’ शीर्षक कविता के अंतर्गत पिता को भेजे संदेश में सजीले सावन से कहा है-

    “देखना, कुछ बक न देना
    उन्हें कोई शक न देना।”

    यहाँ ‘देखना कुछ कह न देना’ प्रयोग किया जाता तो यह सामान्य कथन होता। कवि अपनी सारी बातें तो सावन को बताता है परन्तु सुखात्मक बातें ही पिता को संदेश में भेजना चाहता है। जो बातें पिता जी को कष्ट दे सकती हैं उन्हें बताने के लिए मना करता है। फिर भी अपनी गलती पर खीझ प्रकट करने के लिए कवि ने कहने की जगह ‘बकना’ क्रिया का प्रयोग किया है। ‘बकना’ का विशेष अर्थ है जो ‘कहना’ से स्पष्ट नहीं हो पाता। अत: यदि ‘बकना’ के स्थान पर ‘कहना’ प्रयोग किया जाता तो कविता की सहजता ही समाप्त हो जाती है अत: ‘बकना, प्रयोग ही सटीक और सार्थक है।

    Question 28
    CBSEENHN11012291

    कविता के आधार पर कवि के पिता के व्यक्तित्व का शब्दचित्र खींचिए।

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने कविता में पिता को याद करके उनका शब्दचित्र चित्रित किया है। कवि भवानी प्रसाद मिश्र के पिताजी सरल व्यक्तित्व के धनी और बहादुर प्रकृति के व्यक्तित्व हैं। उनकी भुजाएँ व्रज-सी शक्तिशाली हैं, परन्तु उनका हृदय तो मक्खन के समान कोमल है। वे अभी भी भाग-दौड़ सकते हैं और हँसी के ठहाके लगा सकते हैं। अभी भी उन पर वृद्धावस्था का कोई प्रभाव नहीं है। वे शेर से भी नहीं डरते हैं और उनकी आवाज में भारी दम है। वे प्रतिदिन गीता पाठ करते हैं तथा शारीरिक व्यायाम में दो सौ साठ दंड लगाते हैं। उनका हृदय बरगद के वृक्ष की भाँति कोमल और भावुक है। वे किसी का वियोग सहन नहीं कर पाते हैं। वे सभी का विशेष ध्यान रखते हैं। इसलिए कवि उनकी भावुक प्रकृति को समझकर उन्हें कोई कष्ट नहीं देना चाहता। कवि की इच्छा है कि वे सदैव प्रसन्न और सुखी बने रहें। इसीलिए हरे- भरे सावन से उन्हें धीरज देने की बात कहता है। उन्हें सभी संतानें प्रिय हैं इसीलिए किसी को अलग नहीं देख सकते।

    Question 29
    CBSEENHN11012292

    पिता की आँखों में आँसू आने का क्या कारण है?

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र के पिता सरल, सहज, भावुक व्यक्तित्व के स्वामी हैं। वे किसी भी संतान का वियोग सहन नहीं कर सकते। जैसे-बरगद का पला या टहनी टूटने पर उससे दूध निकलने लगता है वैसे ही किसी के वियोग की बात सुनकर उनकी आखों में आँसू आ जाते हैं। अपने पाँचवें बेटे भवानी को अपने साथ न पाकर और जेल में रहने की बात सुनकर पिता की आँख में आँसू आए होंगे।

    Question 30
    CBSEENHN11012293

    कवि के पिता के मन और बरगद के वृक्ष में क्या साम्य है?

    Solution

    ’पिता’ कविता में कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने पिता का मन बरगद के वृक्ष-सा बताया है- ‘मन कि बड़ का झाडू जैसे’ -बरगद के वृक्ष से यदि कोई पत्ता टूटता है या टहनी टूटती है तो दुख से दूध की धारा बहने लगती है। पिताजी का मन भी ऐसा ही है जब कोई अपना उनसे दूर होता है या अलग होता है तो से दुखी हो जाते हैं और उनकी अश्रुधारा बहने लगती है। वे सभी का ध्यान रखते हैं, इसलिए उन्हें धैर्य देने की आवश्यकता है।

    Question 31
    CBSEENHN11012294

    “और कहना मस्त हूँ मैं, यों न कहना अस्त हूँ मैं।” पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है?

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र ‘पिता’ नामक कविता में सावन द्वारा पिता को संदेश भेजते हैं। इस संदेश में वे सभी सुखात्मक पहलू पिता को बताना चाहते हैं, परन्तु दु:खात्मक पहलुओं को छिपाना भी चाहते हैं। वे सावन से कहते हैं कि मैं यहाँ हर प्रकार सुखी और मस्त हूँ खूब खाता-पीता हूँ, खेलता-कूदता हूँ, पढ़ता-लिखता रहता हूँ। मुझे यहाँ किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं है। यह सारा संदेश तो पिताजी से कहना परन्तु मेरी उदासी और जेल की यातनाओं की कोई बात पिताजी से मत कहना, नहीं तो उन्हें अपार कष्ट होगा और उनकी अश्रुधारा बहने लगेगी।

    Question 32
    CBSEENHN11012295

    ‘पिता’ कविता के आधार पर कवि की मानसिक दशा का वर्णन कीजिए।

    Solution

    कवि भवानी प्रसाद मिश्र को अपने परिवार से बेहद प्यार है। वह जेल में है, पर सावन के बरसते ही उसे अपने परिवार की याद आती है और सबसे अधिक वह अपने पिता को याद करता है। पिता का आकार-प्रकार, वेशभूषा का चित्र कवि की आँखों के सामने उपस्थित हो रहा है। उसे पिता की व्रज-सी भुजाएँ और मक्खन-सा हृदय भी याद आ रहा है। वह सोचता है कि पिता जी व्यायाम करके और गीता का पाठ करके जब नीचे आए होंगे और अपने पाँचवें पुत्र भवानी को नहीं देखा होगा तो उनकी आँखें भर आई होंगी। उनका स्वभाव और हृदय बरगद के वृक्ष जैसा है, जो थोड़ी-सी चोट से या पत्ता टूटने पर दूध की धारा बहाने लगता है। वे भी किसी प्रिय जन से विमुक्त होकर अश्रुधारा प्रवाह को नहीं रोक पाते हैं। वे परिवार के सभी? लोगों का विशेष ध्यान रखते हैं। उन्हें विशेष धैर्य देने की’ आवश्यकता है। कवि सावन की हवा से पिताजी को धैर्य देने की बात कहता है। सावन की झड़ी में कवि को घर की याद और भी तीव्र हो गई है।

    Question 33
    CBSEENHN11012296

    इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।

    Solution

    कवि भवानीप्रसाद मिश्र की ‘घर की याद’ एक प्रसिद्ध कविता है। इस कविता की रचना जेल में की गई है। ‘घर की याद’ के अंतर्गत कवि को सावन की बरसात की झड़ी में जेल में पिता जी की याद आती है। अब कवि को बरसते पानी के साथ-साथ अपना घर स्मृति-पटल पर दिखाई देता है। पिता के प्रति सच्चे पितृ-प्रेम का प्रदर्शन इस ‘पिता’ कविता का मुख्य लक्ष्य है। इस कविता में कवि सावन द्वारा पिताजी को संदेश भेजता है। संदेश में सावन को अपना सबकुछ बता देता है, परन्तु केवल सुखात्मक अनुभूतियों से ही पिता को अवगत कराना चाहता है। कवि की जेल की यातनाओं को जानकर पिताजी दुखी होंगे और आँसू बहाएंगे। इसलिए कवि सावन से सब कुछ बकने के लिए मना करता है। पिताजी इस उस में भी बुढ़ापे से दूर हैं क्योंकि वे दौड़- भाग करते हैं, काम करते हैं, रोज व्यायाम करते हैं, खूब हँसमुख हैं। उनका शरीर विशाल है और व्रज के समान मजबूत भुजाएँ हैं परन्तु उनका हृदय बरगद के वृक्ष की भाँति संवेदनशील और कोमल है।

    Question 34
    CBSEENHN11012297

    निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।

    पिताजी भोले बहादुर
    चख- भुज नवनीत-सा उर।

    Solution

    प्रस्तुत पंक्तियों में कवि भवानीप्रसाद मिश्र रे खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। भाषा सरल, सहज और तत्सम शब्दावली युक्त है। ‘व्रज- भुज’ में रूपक और ‘नवनीत-सा उर’ में उपमा अलंकार का प्रयोग है। पिता के स्वभाव का शब्दचित्र अंकित करते हुए कवि ने उन्हें सरल और भोले स्वभाव के बहादुर व्यक्तित्व वाला बताया है। उनकी भुजाएँ व्रज-सी मजबूत हैं, परन्तु हृदय तो मक्खन-सा मुलायम और कोमल है। इस प्रकार कवि के पिता बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी हैं।

    Question 35
    CBSEENHN11012298

    निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।

    पिताजी का वेश मुझको
    दे रहा है क्लेश मुझको,
    देह एक पहाड़ जैसे,
    मन कि बड़ का झाडू जैसे।

    Solution

    प्रस्तुत पंक्तियों में कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। सादगी और ताजगी युक्त सरल और सहज भाषा का प्रयोग तत्सम शब्दावली और स्थानीय शब्दावली के साथ किया गया है। पहाड़, झाडू, बड़, जैसे स्थानीय शब्दों का सटीक प्रयोग है। उपमा अलंकार की छटा द्रष्टव्य है।

    कवि को पिताजी की वेशभूषा और व्यक्तित्व दोनों याद आ रहे हैं। इसीलिए कवि को कष्ट हो रहा है। पिताजी का शरीर विशाल आकार वाला है पर हृदय तो वट वृक्ष की भाँति कोमल है। वे थोडा-सा भी कष्ट या किसी को वियोग सहन नहीं कर पाते। यही जानकर कवि का कष्ट हो रहा है।

    Question 36
    CBSEENHN11012299

    निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
    हे सजीले हरे सावन
    हे कि मेरे पुण्य-पावन
    तुम बरस लो, वे न बरसें
    पाँचवें को वे न तरसे।

    Solution

    प्रस्तुत पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। तत्सम, तद्भव शब्दावली के साथ स्थानीय शब्दों के प्रयोग सार्थक रूप से हुए हैं। कवि ने सावन के लिए ‘सजीले’ और ‘हरे’ विशेषणों के साथ ‘पुण्य-पावन’ पदावली का भी प्रयोग किया है। ‘पुण्य-पावन’ में अनुप्रास और ‘बरसने’ में यमक अलंकार का प्रयोग है। भाषा सरल, सहज और जनसाधारण के योग्य है। कवि ने सावन के लिए सजीले और हरे विशेषणों का प्रयोग करके संदेशवाहक का मान बढ़ाया है, साथ ही उसे पुण्य’ पावन कहकर सम्बोधित किया है। कवि सावन को तो खूब बरसने की स्वीकृति देता है परन्तु पिता की अश्रुधारा सहन नहीं होती। इसलिए कवि सावन को ऐसी बात कहने से मना करता है कि उसके पिताजी को क्लेश हो और उनकी आँखों में आँसू आएँ। कवि यह भी नहीं चाहता कि पिता जी पाँचवें पुत्र भवानी से मिलने के लिए आतुर हो जाएँ।

    Question 37
    CBSEENHN11012300

    निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।

    देखना कुछ बक न देना
    उन्हें कोई शक न देना।

    Solution

    प्रस्तुत पंक्तियों में कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। भाषा सरल, सहज और स्वाभाविक है। कवि ने ‘शक’ और ‘बक’ दो तुकान्त शब्दों का सटीक प्रयोग किया है। कवि ने सा. को अपने बारे में अनेक बातें बताई है किन्तु वह नहीं चाहता कि सारी बातें पिताजी से कही जाएँ। वह कुछ बातें छिपाना चाहता है, अत: सावन से कहता है, ‘देखना कुछ बक न देना।’ वह सावन को सावधान करता है कि पिताजी के सामने कुछ अकथ्य प्रलाप मत कर देना। वे यह अकथ्य सुनकर दुखी होंगे और मेरे ऊपर शक करेंगे। इसलिए तू ऐसा सारगर्भित और सुखात्मक ही पिताजी को बताना कि उनका मुझ पर विश्वास बना रहे और मेरे ऊपर शक न करें।’

    Question 38
    CBSEENHN11012301

    पठित कविता ‘पिता’ के आधार पर भवानीप्रसाद मिश्र की भाषा-शैली की समीक्षा कीजिए।

    Solution

    भवानी प्रसाद मिश्र की भाषा खड़ी बोली है। उनकी भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक और जनसाधारण योग्य है। छन्दमुक्त कविता उन्हें अभीष्ट है।

    मिश्र जी की भाषा की सादगी और ताजगी पाठकों को अपनी ओर खींच लेती है। इनकी भाषा संवेदनशील और भावपूर्ण है। संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ स्थानीय और विदेशी शब्दों का प्रयोग मिश्र जी की भाषा को सहज और स्वाभाविक बना देता है। मानवीय भावों के सम्प्रेषण में इनकी भाषा पूर्ण सक्षम है। इनकी भाषा में कृत्रिमता का सर्वथा अभाव है। ‘घर की याद’ मिश्र जी की संस्मरणात्मक कविता है। ‘पिता’ शीर्षक कविता उसी का अंश है। इस कविता में मिश्र जी ने पिता जी के स्मरण चित्र चित्रित किए हैं- “पिताजी भोले, बहादुर, व्रज- भुज नवनीत सा उर।” अनेक तत्सम शब्दों के साथ स्थानीय शब्दों का प्रयोग भी किया है। तिर रहा है, हिचके, बिचके, बोल, पहाड़, बड़, खम स्थानीय शब्दों के साथ फ्रिक, मजे, शक, खुद, बक आदि विदेशी भाषा के शब्द है। इस कविता में अनेक मुहावरे हिचकना-बिचकना, नैनों में जल छाना, जी चीर देना का सटीक प्रयोग हुआ है। अनेक स्थान पर अनुप्रास, रूपक, उपमा, मानवीकरण अलंकारो का प्रयोग हुआ है। कविता की भाषा अत्यधिक सरल और संवेदनशील है और कवि के मानवीय भावों को स्पष्ट करने में सक्षम है। अनेक स्थानों पर चित्रात्मकता प्रधान रही है। पिता का हृदय बड़ के वृक्ष की भाँति संवेदनशील बताया गया है। कवि के अतुलनीय पितृ प्रेम को उनकी भाषा पूर्णरूप से वर्णन करने में सफल है।

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