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अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैंड की ग्रामीण जनता खुले खेत की व्यवस्था को किस दृष्टि से देखती थी? संक्षेप में व्याख्या करें। इस व्यवस्था को:
एक संपन्न किसान
एक मज़दूर
एक खेतिहर स्त्री
की दृष्टि से देखने का प्रयास करें ।
एक सम्पन्न किसान की दृष्टि से
सोलहवीं सदी में जब उन के दाम विश्व बाज़ार में चढ़ने लगे तो संपन्न किसान लाभ कमाने के लिए ऊन का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश करने लगे। इसके लिए उन्हें भेड़ों की नस्ल सुधारने और बेहतर चरागाहों की आवश्यकता हुई है। नतीजा यह हुआ कि साझा ज़मीन को काट- छाँट कर घेरना शुरु कर दिया गया ताकि एक की संपत्ति दूसरे से या साझा ज़मीन से अलग हो जाए। साझा जमीन पर झोपड़ियाँ डाल कर रहने वाले ग्रामीणों को उन्होंने निकाल बाहर किया और बाड़ाबंद खेतों में उनका प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया। अतः एक धनी किसान के लिए खुले खेत की पद्धति और दृष्टिकोण से लाभदायक थी।
एक मज़दूर की दृष्टि से
शुरू में मज़दूर अपने मालिक के साथ रहते हुए विभिन्न कामों में उसकी सहायता किया करते थे। किंतु 1800 ई.के आस-पास यह प्रथा गायब होने लगी। अब मज़दूरों को मज़दूरी दी जाने लगी तथा केवल फसल काटने के समय में उनकी सेवा ली जाने लगी। अपने लाभ को बढ़ाने के लिए मजदूरों पर होने वाले खर्चे में ज़मींदार लोग कटौती करने लगे। फलत: उनके लिए रोजगार अनिश्चित तथा आय अस्थाई हो गए। साल के अधिकतर समय उनके पास कोई काम नहीं था। अत: इस पद्धति का उनको फायदा नहीं था।
एक खेतिहर दृष्टि से
जब गरीब किसान घर से दूर खेतों में काम कर रहे होते थे तो महिलाएँ अपने-अपने घरों का काम कर रही होती थीं। एक खेतिहर महिला, पुरुष के कामों में भी हाथ बटाँती थी। इसके अतिरिक्त अन्य आवश्यक कार्यों का जैसे गौपालन, जलावन की लकड़ियों का संग्रह तथा संयुक्त क्षेत्र से फल-फूल का संग्रह की जिम्मेवारी भी महिलायें संभालती थीं। चूँकि, बाड़ायुक्त क्षेत्रों में प्रवेश निषिद्ध था फलतः उन्हें अपने कार्यों में कठिनाई होती थी। अत: यह पद्धति खेतिहर महिला के लिए भी लाभदायक थी।
इंग्लैंड में हुए बाड़ाबंदी आंदोलन के कारणों की संक्षेप में व्याख्या करें।
(i) जब ऊन के दाम विश्व बाजार में चढ़ने लगे तो संपन्न किसान लाभ कमाने के लिए ऊन का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश करने लगे। इसके लिए उन्हें पेड़ों की नस्ल सुधारने और बेहतर चरागाहों की आवश्यकता हुई।
(ii) अठारहवीं शताब्दी के मध्य से इंग्लैंड की आबादी तेजी से बढ़ी। 1750 से 1900 के बीच इंग्लैंड की आबादी चार गुना बढ़ गई। 1750 में कुल आबादी 70 लाख थी जो 1850 में 2.1 करोड़ और 1900 में 3 करोड़ तक जा पहुँची।
(iii) जैसे-जैसे शहरी आबादी बढ़ी वैसे-वैसे खाद्यान्नों का बाजार भी फैलता गया। खाद्यान्नों की माँग के साथ ऊन के दाम भी बढ़ने लगे।
(iv) किसानों ने बाजार में आई नई-नई फैशन मशीनों को खरीदना शुरू कर दिया।
कैप्टन स्विंग कौन था? यह नाम किस बात का प्रतीक था और वह किन वर्गों का प्रतिनिधित्व करता था?
कैप्टन स्विंग मज़दूरों द्वारा मशीनों का विरोध करने के लिए बाँटे गए पर्चे का एक रहस्यमय चरित्र था। मज़दूरों ने जमीदारों को धमकी भरे पत्र लिखे। इसमें चेतावनी दी गई कि वे मशीनों के प्रयोग को रोकें क्योंकि ये मज़दूरों से उनकी जीविका छीन रही हैं। इन पत्रों को कैप्टन स्विंग नमक एक रहस्यमय चरित्र द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था।
अमेरिका पर नए आप्रवासियों के पश्चिमी प्रसार का क्या प्रभाव पड़ा?
(i) श्वेत अप्रवासी पश्चिम की ओर बढ़े। उन्होंने एक बड़े-भूभाग को साफ किया और उस पर गेहूँ की खेती करने लगे।
(ii) 1860 के बाद मिसीसीपी नदी के पार स्थित विशालकाय मैदानों में प्रवासी आबादी का प्रसार हुआ। बाद के दशकों में यह समूचा क्षेत्र अमेरिकी गेहूँ उत्पादन का एक बड़ा क्षेत्र बन गया।
(iii) गेहूँ की माँग बढ़ने के साथ इसके दामों में भी उछाल आ रहा था। इससे उत्साहित होकर किसान गेहूँ उगाने की ओर झुकने लगे।
(iv) 1910 में अमेरिका की लगभग 4.5 करोड़ एकड़ ज़मीन पर गेहूँ की खेती की जा रही थी। 1919 में गेहूँ उत्पादन का क्षेत्रफल बढ़कर 7.4 करोड़ एकड़ यानि लगभग 65% ज़्यादा हो गया था।
अमेरिका में फ़सल काटने वाली मशीनों के फ़ायदे-नुकसान क्या-क्या थे?
फ़ायदे:
(i) इसने मानव श्रम में कटौती और कृषि उत्पादन में वृद्धि की। उदहारण: 1831 में सायरस मैक्कॉर्मिक ने एक ऐसे औज़ार का आविष्कार किया जो एक ही दिन में इतना काम कर देता था जितना कि 16 आदमी हँसियों के साथ कर सकते थे।
(ii) इन मशीनों से ज़मीन के बड़े टुकड़ों पर फसल काटने, ठूँठ निकालने, घास हटाने और ज़मीन को दोबारा खेती के लिए तैयार करने का काम बहुत आसान हो गया था। विद्युत से चलने वाली ये मशीनें इतनी उपयोगी थीं कि उनकी सहायता से सिर्फ़ चार व्यक्ति मिलकर एक मौसम में 2000 से 4000 एकड़ भूमि पर फ़सल पैदा कर सकते थे।
(iii) संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया के सबसे बड़े गेहूं उत्पादकों और निर्यातकों में से एक बन गया।
नुकसान:
(i) बिजली चालित मशीनों के आगमन से मज़दूरों की जरूरत काफी काम हो गई। यह मशीन बेरोज़गारी का कारण बनी। महायुद्ध के उपरांत उत्पादन की हालत यह हो गई थी की बाजार गेहूँ से अटा पड़ा था।
(ii) गेहूँ के दाम गिरने से आयत बाजार ढह गया था। 1930 के दशक की महामंदी का असर हर जगह दिखाई पड़ता था।
अमेरिका में गेहूँ की खेती में आएं उछाल और बाद में पैदा हुए पर्यावरण संकट से हम क्या सबक ले सकते हैं?
अमेरिका में गेहूँ की खेती में आएं उछाल और बाद में पैदा हुए पर्यावरण संकट को देखते हुए हम कह सकते हैं कि:
(i) हम पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता की सराहना करते हैं। यदि हम प्राकृतिक संसाधनों को आँख बंद करके नष्ट कर देते हैं, अंत में, सभी मानव अस्तित्व खतरे में होंगे। मनुष्य को पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए।
(ii) उन्नीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में गेहूँ पैदा करने वाले किसानों ने ज़मीन के हर संभव हिस्से से घास साफ़ कर डाली थी। ये किसान ट्रैक्टरों की सहायता से इस ज़मीन को गेहूँ की खेती के लिए तैयार कर रहे थे। रेतीले तूफ़ान इसी असंतुलन से पैदा हुए थे। यह सारा क्षेत्र रेत के एक विशालकाय कटोरे में बदल गया था यानी खुशहाली का सपना एक डरावनी हकीकत बनकर रह गया था।
(iii) प्रवासियों को लगता था कि वे सारी ज़मीन को अपने कब्ज़े में लेकर उसे गेहूँ की लहलहाती फ़सल में बदल डालेंगे और करोड़ों में खेलने लगेंगे। लेकिन तीस के दशक में उन्हें यह बात समझ में आई की के पर्यावरण के संतुलन का सम्मान करना कितना ज़रूरी है।
इससे हमें यह सिख मिलती कि हमें पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए तथा उसके साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए।
अंग्रेज़ अफ़ीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर क्यों दवाब दाल रहे थे?
(i) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से चाय और रेशन खरीदकर इंग्लैंड में बेचा करती थी। चाय का व्यापार दिनोंदिन महत्वपूर्ण होता गया लेकिन इंग्लैंड में इस समय ऐसी किसी वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता था जिसे चीन के बाजार में आसानी से बेचा जा सके।
(ii) ब्रिटिश व्यापारी चाय के बदले चाँदी के सिक्के दिया करते थे। यह इंग्लैंड के खजाने को खाली करता था।
(iii) चाँदी के इस क्षय को रोकने के लिए वे चीन में अफीम का व्यापार करना चाहते थे। जहाँ चीन अफ़ीमचियों का देश बन गया था वहीं इंग्लैंड का चाय व्यापार दिनोंदिन प्रगति कर रहा था। अफ़ीम के इस अवैध व्यापार से हासिल की गई राशि का इस्तेमाल चाय खरीदने के लिए किया जा रहा था।
(iv) अंग्रेज़ों के लिए अफ़ीम का भारत से लेकर चीन निर्यात करना सस्ता साबित हुआ।
भारतीय किसान अफ़ीम की खेती के प्रति क्यों उदासीन थे?
भारतीय किसान अफ़ीम की खेती के लिए निम्नलिखित कारणों से उदासीन थे:
(i) सबसे पहले किसानों को अफ़ीम की खेती के लिए सबसे उर्वर ज़मीन पर करनी होती थी। खासतौर पर ऐसी ज़मीन पर जो गाँव के पास पड़ती थी। आमतौर पर ऐसी उपजाऊ ज़मीन पर किसान दाल पैदा करते थे। अच्छी और उर्वर ज़मीन पर अफ़ीम बोने का मतलब दाल की पैदावार से हाथ धोना था। उन्हें दाल की फ़सल के लिए कम उर्वर ज़मीन का इस्तेमाल करना पड़ रहा था। खराब ज़मीन में दालों का उत्पादन न केवल अनिश्चित रहता था बल्कि उस की पैदावार भी काफी कम रहती थी।
(ii) दूसरे बहुत सारे किसानो के पास ज़मीन थी ही नहीं। अफ़ीम की खेती के लिए ऐसे किसानों को भू-स्वामियों को लगान देना पड़ता था। वे इन भूस्वामियों से बटाई पर ली गई ज़मीन पर अफ़ीम उगाते थे। गाँव के पास की ज़मीन की लगान दर बहुत ऊँची रहती थी।
(iii) तीसरे अफ़ीम की खेती बहुत मुश्किल से होती थी। अफ़ीम के नाज़ुक पौधों को जिंदा रखना बहुत मेहनत का काम था। अफ़ीम बोने के बाद किसान दूसरी फ़सलों पर ध्यान नहीं दे पाते थे।
(iv) अंत में, सरकार अफ़ीम बोने के बदले किसानों को बहुत कम दाम देती थी। किसानों के लिए सरकारी मूल्य पर अफ़ीम पैदा करना घाटे का सौदा था।
इंग्लैंड के गरीब किसान थ्रेशिंग मशीनों का विरोध क्यों कर रहे थे?
(i) गरीबों के लिए सांझा ज़मीन जिन्दा रहने का बुनियादी साधन थी।
(ii) इसी ज़मीन के दम पर वे अपनी आय में कमी को पूरा करते, अपने जानवरों को पालते थे और जब फसल चौपट हो जाती तो यही ज़मीन उन्हें संकट से उबारती थी।
(iv) भूस्वामियों ने उत्पादन बढ़ाकर ज्यादा लाभ कमाने के लिए थ्रेशिंग मशीन को ख़रीदा।
(v) गरीब एवं मज़दूरों को मशीनें उनकी आजीविका से बेदखल कर रहे थीं।
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