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सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारकों की चर्चा करें।
सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारक निम्नलिखित है-
(i) लोगों में अपनी राजनीति के प्रति आग्रह की भावना- यदि अपनी अलग पहचान बनाने के लिए एक व्यक्ति स्वयं को सबसे विशिष्ट और महत्वपूर्ण मानने लगे तो इससे आपसी सामंजस्य नहीं बैठ पता। लोग राष्ट्र पहचान की भावना को पहले रखते हैं तो कोई ऐसी कोई समस्या पैदा नहीं होती। उदाहरण के लिए बेल्जियम के अधिकतर लोग, चाहे वह डच या जर्मन बोलते हो वह खुद को बेल्जियाई ही मानते है।
(ii) समुदाय की माँगों के प्रति राजनीतिक दल- दूसरा कारक है राजनितिक दलों को संविधान के अंतर्गत रहकर कार्य करना और ऐसी किसी मांग को न उठाना जो दूसरे समुदायों को नुकसान पहुँचाने वाली हो तथा ऐसी मांग को मान लेना जिससे दूसरे समुदायों को कोई नुकसान न हो और जो संवैधानिक भी हो। उदाहरण के लिए यदि श्रीलंका में केवल सिंहलियो के हितों की मांग और तमिलों की अवहेलना की जाएगी तो हमेशा संघर्ष और गृहयुद्ध का वातावरण बना रहेगा। ऐसे में राजनीति दलों का यह कर्तव्य है कि सभी सामाजिक वर्गों के हितों का ध्यान रखें।
(iii) विभिन्न समूहों की माँगों के प्रति प्रतिक्रिया- यदि सरकार सत्ता में भागीदारी करने और अल्पसंख्यक समुदायों की उचित माँगों को ईमानदारी से स्वीकार करती है, तो सामाजिक बँटवारा खतरे का रूप धारण नहीं करता। यदि सरकार राष्ट्रीय एकता के नाम पर इन माँगों को दबाती है तो इसका परिणाम हमेशा विपरीत होता है। उदाहरण के लिए बेल्जियम की सरकार सत्ता में भागीदारी में विश्वास रखती है, सभी सामाजिक वर्गों को प्रशासनिक गतिविधियों में भागीदार बनाती है तो कोई समस्या पैदा नहीं होती। लेकिन श्रीलंका की सरकार अनेक वर्गों को शासन तंत्र से अलग रखती है इससे न तो केवल संघर्ष और कलह उत्पन्न होगा अपितु देश का विभाजन भी हो सकता है।
समाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रुप ले लेते हैं?
भारत जैसे विविधताओं से परिपूर्ण देश में सामाजिक अंतरों का होना कोई असमान्य बात नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी शारीरिक क्षमता, समानता, रूप-रंग अलग-अलग है। सभी का व्यवसाय, पढ़ाई के विषय, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियाँ अलग-अलग होती है। इनका चुनाव लोगों की अपनी पसंद पर निर्भर करता है। इन्हीं सामाजिक विद्रोह के कारण सामाजिक समूह बनते हैं।
जब सामाजिक अंतर अन्य दूसरे अंतरों व विभिन्नताओं से भी विशाल हो जाते है तब वे विभाजन का रूप ले लेते है। इसके अतिरिक्त कई बार सामाजिक असमानताएँ अन्याय या विद्रोह का रूप ले लेती है। जैसे जाति-प्रथा, अमीर-गरीब, रंगभेद आदि इस प्रकार पीड़ित समूह एक हो जाते है और विद्रोह करते है जो बँटवारे का रूप ले लेते है। कई बार इन असमानताओ को स्वीकार करना असम्भव हो जाता है और सामाजिक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए अमेरिका में अश्वेत अमेरिकनों से नस्लवाद के आधार पर भेदभाव किया जाता है तो समाजिक अंतर सामाजिक विभाजन में बदल जाते है।
सामाजिक विभाजन किस तरह से राजनीती को प्रभावित करते हैं? दो उदाहरण भी दीजिए।
सामाजिक विभाजन राजनीति को भी प्रभावित करते हैं। कई बार इन विभाजनों का फायदा उठाकर राजनितिक होड़ अपने फायदे देखती है। लोकतंत्र में विभिन्न राजनितिक पार्टियों की प्रतिद्वंदिता के कारण समाज में फुट की स्थिति उत्पन्न होती है। राजनितिक पार्टियाँ वोट पाने के लिए इन विभाजनों को ओर बढ़ावा देती है। यदि समाज में व्याप्त विभाजन के हिसाब से राजनीतिक दल होड़ करने लगे तो वह विभाजन में बदल सकता है और देश में विभाजन हो सकता है। ऐसे अनेक देशो में हुआ भी है।
उदाहरण के लिए:
(i) उत्तरी आयरलैंड- उत्तरी आयरलैंड लंबे समय से जातीय और राजनितिक टकराव की स्थिति में रहा।अंत में 1998 ई में दोनों पक्षों में समझौता हुआ और यह हिंसक आंदोलन समाप्त हुआ।
(ii) यूगोस्लाविया- यूगोस्लाविया में सामाजिक और राजनितिक विभाजन का अंत सुखद नहीं रहा। वहाँ देश का विभाजन होने का कारण राजनीतिक दलों की होड़ रही क्योंकि वहां की सरकार ने सभी वर्गों को सत्ता की भागीदारी में साथ लेने का प्रयास नहीं किया। अतः वहाँ 6 गणतंत्र और 8 राज्य बन गए।
...............सामाजिक अंतर गहरे सामाजिक विभाजन और तनावों की स्थिति पैदा करते हैं। ..............सामाजिक अंतर सामान्य तौर पर टकराव की स्थिति तक नहीं जाते।
अतिच्छदित (ओवरलैपिंग)
,सामाजिक विभाजनों को सँभालने के संदर्भ में इनमें से कौन- सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?
लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया राजनीति पर पर पड़ती है।
लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है।
लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।
D.
लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर के 1963 के प्रसिद्ध भाषण के निम्नलिखित अंश को पढ़े। वे किस सामाजिक विभाजन की बात कर रहे हैं? उनकी उम्मीदें और आशंकाएँ क्या-क्या थी? क्या आप उनके बयान और मैक्सिको ओलंपिक की उस घटना में कोई संबंध देखते हैं जिसका जिक्र इस अध्याय में था?
'मेरा एक सपना है कि मेरे चार नन्हें बच्चे एक दिन ऐसे मुल्क में रहेंगे जहाँ उन्हें चमड़ी के रंग के आधार पर नहीं, बल्कि उनके चरित्र के असल गुणों के आधार पर परखा जाएगा। स्वतंत्रता को उसके असली रूप में आने दीजिए। स्वतंत्रता तभी कैद से बहार आ पाएगी जब यह हर बस्ती, हर गाँव तक पहुँचेगी, हर राज्य और हर शहर में होगी और हम उस दिन को ला पाएँगे। जब ईश्वर की सारी संतानें- अश्वेत स्त्री पुरुष, गोरे लोग, यहूदी तथा गैर-यहूदी, प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक-हाथ में हाथ डालेंगी और इस पुरानी नीग्रो प्रार्थना को गाएँगी - 'मिली आज़ादी, मिली आज़ादी! प्रभु बलिहारी, मिली आज़ादी!' मेरा एक सपना है कि यह देश उठ खड़ा होगा और अपने वास्तविक स्वभाव के अनुरूप कहेगा, 'हम इस स्पष्ट सत्य को मानते हैं कि सभी लोग सामान है।'
(i) मार्टिन लूथर किंग जूनियर इस अनुच्छेद में रंग भेद और जाति प्रथा द्वारा समाज के बँटवारे की बात कर रहे है।
(ii) वे एक ऐसे देश का सपना देख रहे है जहाँ सबके साथ समानता का व्यवहार हो। जहाँ रंग के आधार पर भेदभाव न हो। उनकी आशंकाएँ और चिंताए ये है कि उन्होने अपने चार नन्हें बच्चों के लिए एक ऐसे राष्ट्र का सपना देखा है, जहाँ लोगो को उनके रंग के आधार पर नहीं बल्कि उनके चरित्र के गुणों के आधार पर परखा जायेगा।
(iii) हाँ उनका भाषण चमड़ी के रंग को लेकर बनाये गए विभाजन को दर्शाता है क्योंकि ऐसा ही काले, एफ्रो-अमेरिकन खिलाडियों द्वारा मैक्सिको ओलंपिक के दौरान प्रदर्शित किया था। अतः दोनों में स्पष्ट सम्बन्ध दिखता है।
लोकतंत्र को बेहतर बनाने वाले किन्हीं तीन मूल्यों का विश्लेषण कीजिए।
लोकतंत्र को बहेतर बनाने वाले मूल्य -
(i) गलतियों को सुधारने की गुंजाइश रखना।
(ii) व्यक्ति की गरिमा बढ़ाना।
(iii) नागरिकों को समानता प्रदान करना।
(iv) फैसला करने में गुणवत्ता का बढ़ाना।
(v) टकरावों को हल करने में तरीके प्रदान करना।
'नागरिकों की गरिमा और आजादी को सुरक्षित रखने के लिए लोकतंत्र अति महत्त्वपूर्ण है।' तर्क देकर कथन की पुष्टि कीजिए।
नागरिकों की गरिमा और आजादी को सुरक्षित रखने में लोकतंत्र -
(i) गरिमा और आजादी की चाह ही लोकतंत्र का आधार है।
(ii) कानूनी आधार जो सिध्दांत व्यक्ति की गरिमा और आजादी स्वीकार्य है।
(iii) महिलाओं के साथ सम्मान और समानता का व्यव्हार लोकतान्त्रिक समाज के आवश्यक आधार हैं।
(iv) लोकतंत्र समानता पर आधारित है।
(v) भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था ने कमजोर और भेदभाव का शिकार हुई जातियों के लोगों के समान दर्जे और सामान अवसर के दावे को बल दिया है।
लोकतांत्रिक सरकारें किस प्रकार अन्य प्रकार की सरकारें से बेहतर हैं? तुलना कीजिए।
(i) लोकतान्त्रिक सरकारों का अपना औपचारिक संविधान होता है, जबकि अन्य प्रभार की सरकारों का नहीं।
(ii) वे नियमित चुनाव कराती हैं, जबकि अन्य प्रकार की सरकारें चुनाव नहीं कराती हैं।
(iii) इनमें राजनीतिक दल होते हैं, जबकि अन्य प्रकार की सरकारों में नहीं।
(iv) वे अपने नागरिकों को बुनियादी अधिकारों की गारंटी देती हैं। अन्य नहीं।
(v) इस प्रकार की सरकारें कमियों के सुधार का अवसर प्रदान करतीं हैं, जबकि अन्य प्रकार की सरकारें ऐसा प्रावधान नहीं करतीं हैं।
(vi) इस प्रकार की सरकार सामाजिक विविधताओं में सामंजस्य बैठती है, जबकि अन्य प्रकार के सरकार सामंजस्य नहीं बैठती हैं।
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