समाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रुप ले लेते हैं?
भारत जैसे विविधताओं से परिपूर्ण देश में सामाजिक अंतरों का होना कोई असमान्य बात नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी शारीरिक क्षमता, समानता, रूप-रंग अलग-अलग है। सभी का व्यवसाय, पढ़ाई के विषय, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियाँ अलग-अलग होती है। इनका चुनाव लोगों की अपनी पसंद पर निर्भर करता है। इन्हीं सामाजिक विद्रोह के कारण सामाजिक समूह बनते हैं।
जब सामाजिक अंतर अन्य दूसरे अंतरों व विभिन्नताओं से भी विशाल हो जाते है तब वे विभाजन का रूप ले लेते है। इसके अतिरिक्त कई बार सामाजिक असमानताएँ अन्याय या विद्रोह का रूप ले लेती है। जैसे जाति-प्रथा, अमीर-गरीब, रंगभेद आदि इस प्रकार पीड़ित समूह एक हो जाते है और विद्रोह करते है जो बँटवारे का रूप ले लेते है। कई बार इन असमानताओ को स्वीकार करना असम्भव हो जाता है और सामाजिक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए अमेरिका में अश्वेत अमेरिकनों से नस्लवाद के आधार पर भेदभाव किया जाता है तो समाजिक अंतर सामाजिक विभाजन में बदल जाते है।