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NCERT Solutions for Class 12 Help.html Aroh Bhag Ii Chapter 16 रजिया सज्जाद जहीर

रजिया सज्जाद जहीर Here is the CBSE Help.html Chapter 16 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Help.html रजिया सज्जाद जहीर Chapter 16 NCERT Solutions for Class 12 Help.html रजिया सज्जाद जहीर Chapter 16 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2025-26. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Help.html.

Question 1
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रजिया सज्जाद जहीर के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।

Solution

जीवन-परिचय: रजिया सज्जाद जहीर का जन्म 15 फरवरी, सन् 1917 को अजमेर (राजस्थान) में हुआ था। रजिया सज्जाद जहीर मूलत: उर्दू की कहानी लेखिका हैं। उन्होंने बी. ए. तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। विवाह के बाद उन्होंने इलाहाबाद से उर्दू में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1947 में वे अजमेर से लखनऊ आईं और वहाँ करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज में पढाने लगीं। सन् 1965 में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। उनका निधन 18 दिसबर, 1979 को हुआ।

आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों लिखे हैं। उन्होंने उर्दू में बाल-साहित्य की रचना भी की है। मौलिक सर्जन के साथ-साथ उन्होंने कई अन्य भाषाओं से उर्दू में कुछ पुस्तकों के अनुवाद भी किए हैं। रजिया जी की भाषा सहज, सरल व मुहावरेदार है। उनकी कुछ कहानियाँ देवनागरी में भी लिप्यंतरित हो चुकी हैं।

रजिया सज्जाद जहीर की कहानियो में सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भो में बदलते हुए पारिवारिक मूल्यों को उभारने का सफल प्रयास मिलता है। सामाजिक यथार्थ और मानवीय गुणों का सहज सामंजस्य उनकी कहानियों की विशेषता है। उनकी कहानियों की मात्रा सहज सरल और मुहावरेदार है।

प्रमुख रचनाएँ: जर्द गुलाब (उर्दू कहानी संग्रह)।

सम्मान: सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, उर्दू अकादमी, उत्तर प्रदेश, अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड।

Question 2
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उन सिख बीबी को देखकर साफिया हैरान रह गई थी, किस कदर वह उसकी माँ से मिलती थी। वही भारी भरकम जिस्म, छोटी-छोटी चमकदार आँखें, जिनमें नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी जगमगाया करती थी। चेहरा जैसे कोई खुली हुई किताब। वैसा ही सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा जैसा उसकी अम्मा मुहर्रम में ओढ़ा करती थी।

जब साफिया ने कई बार उनकी तरफ मुहब्बत से देखा तो उन्होंने भी उसके बारे में घर की बहू से पूछा। उन्हें बताया गया कि ये मुसलमान हैं। कल ही सुबह लाहोर जा रही हैं अपने भाइयों से मिलने, जिन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा। लाहौर का नाम सुनकर वे उठकर साफिया के पास आ बैठीं और उसे बताने लगीं कि उनका लाहौर कितना प्यारा शहर है। वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तसवीर।

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Question 3
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जब साफिया ने कई बार उनकी तरफ मुहब्बत से देखा तो उन्होंने भी उसके बारे में घर की बहू से पूछा। उन्हें बताया गया कि वे मुसलमान हैं। कल ही सुबह लाहौर जा रही हैं अपने भाइयों से मिलने, जिन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा। लाहौर का नाम सुनकर वे उठकर साफिया के पास आ बैठीं और उसे बताने लगीं कि उनका लाहौर कितना प्यारा है। वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तस्वीर। कीर्तन होता रहा। वे आहिस्ता-आहिस्ता बातें करती रही। साफिया ने दो-एक बार बीच में पूछा भी, “माता जी, आपको तो यहाँ आए बहुत साल हो गए होंगे।” “हों बेटी! जब हिंदुस्तान बना था तभी आए थे। वैसे तो अब यहाँ भी कोठी बन गई है। बिजनेस है, सब ठीक ही है, पर लाहौर याद आता है। हमारा वतन तो जी लाहौर ही है।”

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Question 4
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पंद्रह दिन यों गुजरे कि पता ही नहीं चला। जिमखाना की शामें, दोस्तों की मुहब्बत, भाइयों की खातिरदारियाँ-उनका बस न चलता था कि बिछुड़ी हुई परदेसी बहिन के लिए क्या कुछ न कर दें! दोस्तों, अजीजों की यह हालत है कि कोई कुछ लिए आ रहा है, कोई कुछ। कहाँ रखें, कैसे पैक करें, क्यों कर ले जाएँ-एक समस्या थी। सबसे बड़ी समस्या थी बादामी कागज की एक पुड़िया की जिसमें कोई सेर भर लाहौरी नमक था।

साफिया का भाई एक बहुत बड़ा पुलिस अफसर था। उसने सोचा कि वह ठीक राय दे सकेगा।

चुपके से पूछने लगी, “क्यों भैया, नमक ले जा सकते हैं?”

वह हैरान होकर बोला, “नमक? तो नहीं ले जा सकते, गैरकानूनी है और... और नमक का आप क्या करेंगी? आप लोगों के हिस्से में तो हमसे बहुत ज्यादा नमक आया है।”

वह झुँझला गई, “मैं हिस्से-बखरे की बात नहीं कर रही हूँ, आया होगा। मुझे तो लाहौर का नमक चाहिए, मेरी माँ ने यही मँगवाया है।”

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Question 5
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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
अब तक साफिया का गुस्सा उतर चुका था। भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी। नमक की पुड़िया ले तो जानी है, पर कैसे? अच्छा, अगर इसे हाथ में ले लें और कस्टमवालों के समाने सबसे पहले इसी को रख दें? लेकिन अगर कस्टमवालों ने न जाने दिया! तो मजबूरी है, छोंड़ देंगे। लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी माँ से किया था? हम अपने को सैयद कहते हैं। फिर वायदा करके झुठलाने के क्या मायने? जान देकर भी वायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे? अच्छा, अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख लिया जाए तो इतने कीनुओं के ढेर में भला कौन इसे देखेगा? और अगर देख लिया? नहीं जी, फलों की टोकरियाँ तो आते वक्त भी नहीं देखी जा रही थीं। उधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है, फिर देखा जाएगा।

1. साफिया पर गुस्सा क्यों चढ़ा था?
2. अब क्या स्थिति हो गई?
3. किसने, किससे क्या वायदा किया था? वायदे के प्रति उसका क्या दृष्टिकोण है?
4. साफिया ने किस चीज को कहाँ दिखाया?





Easy
Question 6
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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”
साफिया कस्टम के जंगले से निकलकर दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई और वे वहीं खड़े रहे।
प्लेटफार्म पर उसके बहुत-से दोस्त, भाई रिश्तेदार थे, हसरत भरी नजरों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बड़ी। अटारी में पाकिस्तान पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक जबान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही-सी थीं जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।

1. किसके चलने पर कौन खड़े हो गए? उन्होने क्या कहा?
2. प्लेटफार्म पर क्या दृश्य था?
3. लेखिका की समझ में क्या बात नहीं आती थी?
4.  इस गद्याशं में क्या बात उभर कर आती है?






Easy
Question 7
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जब उसका सामान कस्टम पर जाँच के लिए बाहर निकाला जाने लगा तो उसे एक झिरझिरी-सी आई और एकदम से उसने फैसला किया कि मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं जाएगा, नमक कस्टमवालों को दिखाएगी वह। उसने जल्दी से पुड़िया निकाली और हैंडबैग में रख ली, जिसमें उसका पैसों का पर्स और पासपोर्ट आदि थे। जब सामान कस्टम से होकर रेल की तरफ चला तो वह एक कस्टम अफसर की तरफ बड़ी। ज्यादातर मेजें खाली हो चुकी थीं। एक-दो पर इक्का-दुक्का सामान रखा था। वहीं एक साहब खड़े थे-लंबा कद, दुबला-पतला जिस्म, खिचड़ी बाल, आँखों पर ऐनक। वे कस्टम अफसर की वर्दी पहने तो थे मगर उन पर वह कुछ जँच नहीं रही थी। साफिया कुछ हिचकिचाकर बोली, “मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ।”

उन्होंने नजर भरकर उसे गौर से देखा। बोले, “फरमाइए।”

उनके लहजे ने साफिया की हिम्मत बढ़ा दी, “आप..आप कहाँ के रहने वाले हैं?”

उन्होंने कुछ हैरान होकर उसे फिर गौर से देखा, “मेरा वतन देहली है, आप भी तो हमारी ही तरफ की मालूम होती हैं, अपने अजीजों से मिलने आई होंगी?”

“जी हाँ। मैं लखनऊ की हूँ। अपने भाइयों से मिलने आई थी। वे लोग इधर आ गए हैं। आपको भी तो शायद इधर आए?”

“जी, जब पाकिस्तान बना था तभी आए थे, मगर हमारा वतन तो देहली ही है।”

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