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NCERT Solutions for Class 11 Base_url Aroh Chapter 15 भवानी प्रसाद मिश्र

भवानी प्रसाद मिश्र Here is the CBSE Base_url Chapter 15 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 Base_url भवानी प्रसाद मिश्र Chapter 15 NCERT Solutions for Class 11 Base_url भवानी प्रसाद मिश्र Chapter 15 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2025-26. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 Base_url.

Question 1
CBSEENHN11012264

भवानी प्रसाद मिश्र के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।

Solution

जीवन-परिचय-भवानी प्रसाद मिश्र आधुनिक हिन्दी कविता के समर्थ कवि हैं। वे प्रयोगवाद और नई कविता से सम्बद्ध रहे हैं। मिश्र जी ने व्यक्ति, जीवन, समाज और विश्व को नवीन दृष्टि एवं विस्तृत आयामों में देखा है। उनके गीतों ने आधुनिक हिन्दी कविता-को नई दिशा प्रदान की है।

जीवन-परिचय-मिश्र जी का जन्म सन् 1914 ई. में होशंगाबाद जिले (मध्य प्रदेश) के टिगरिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता पं. सीताराम मिश्र शिक्षा विभाग में अधिकारी थे तथा साहित्यिक रुचि के व्यक्ति थे। हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी तीन भाषाओं पर मिश्र जी का अच्छा अधिकार था। मिश्र जी को अपने पिता से साहित्यिक अभिरुचि और माँ गोमती देवी से संवेदनशील दृष्टि मिली थी। मिश्र जी ने हाई स्कूल की परीक्षा होशंगाबाद से, बीए, की परीक्षा 1935 में जबलपुर में रहकर उत्तीर्ण की। 1946 से 1950 ई. तक वे महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक रहे। 1952-1955 तक हैदराबाद में ‘कल्पना’ मासिक पत्रिका का संपादन किया। 1956-58 तक आकाशवाणी के कार्यक्रमों का संचालन किया। 1958-72 तक गाँधी प्रतिष्ठान, गाँधी स्मारक निधि और सर्व सेवा संघ से जुडे रहे तथा ‘संपूर्ण गाँधी वाङ्मय’ का सम्पादन किया।

मिश्र जी का बचपन मध्यप्रदेश के प्राकृतिक अंचलों में बीता, अत: वे प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति गहरा आकर्षण रखते हैं। उनकी कविताओं में सतपुड़ा-अंचल, मालवा-मध्यप्रदेश के प्राकृतिक वैभव का चित्रण मिलता है। वे अपने अंत समय यानी 1985 तक गाँधी प्रतिष्ठान से जुड़े रहे।

रचनाएँ-भवानी प्रसाद मिश्र के प्रकाशित काव्य-संग्रह इस प्रकार हैं-गीत फरोश, चकित है दुख, अंधेरी कविताएँ, गाँधी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, व्यक्तिगत, अनाम तुम आते हो, परिवर्तन जिए, कालजयी (खंडकाव्य) नीली रेखा तक, त्रिकाल संध्या, शरीर, कविता, फसलंह और फूल, तूस की आग और शतदल।

‘गीतफरोश’ मिश्र जी का प्रथम काव्य-संकलन है। उनकी अधिकांश कविताएँ प्रकृति-चित्रण से संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिकता और राष्ट्रीय भावनाओं से युक्त कविताएँ भी हैं।

‘चकित है दुख’ की कविताओं में उनकी आस्था और जिजीविषा व्यक्त हुई है। ‘अँधेरी कविताएँ’ दुख और मृत्यु के प्रति अपनी ईमानदार स्वीकृति से उत्पन्न आशा और उल्लास की कविताएँ हैं। ‘गांधी पंचशती’ की कविताओं में मिश्रजी ने गांधी जी को अपनी मार्मिक श्रद्धांजलि अर्पित की है। 1971 में उनका ‘बुनी हुई रस्सी’ काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ। 1972 में इसे साहित्य-अकादमी ने पुरस्कृत किया। आपातकाल-1977) के दौरान उन्होंने ‘त्रिकाल संध्या, की कविताएँ लिखीं।

साहित्यिक विशेषताएं (काव्य-सौष्ठव -भवानी प्रसाद मिश्र ने अपनी काव्य-दृष्टि स्वयं निर्मित की है। हालाकि वे बहुत से प्राचीन कवियों से प्रभावित हुए, लेकिन उन्होंने किसी कवि को एकमात्र आदर्श मानकर उसका अंध-अनुसरण नहीं किया। उन्होंने स्वयं ‘तार सप्तक’ के वक्तव्य में कहा है-’

“मुझ पर किन-किन कवियों का प्रभाव पड़ा है यह भी एक प्रश्न है। किसी का नहीं। पुराने कवि मैंने कम पड़े, नए जो कवि मैंने पड़े, मुझे जँचे नहीं। मैंने जब लिखना शुरू किया तब श्री मैथिलीशरण गुप्त और श्री सियारामशरण गुप्त को छोड़ दें तो छायावादी कवियों की धूम थी। निराला प्रसाद और पंत फैशन में थे। ये तीनों ही बड़े कवि मुझे लकीरों में अच्छे लगते थे। किसी एक की भी पूरी कविता नहीं भायी तो उनका प्रभाव क्या पड़ा।....जेल में मैंने बँगला सीखी और कविता- ग्रंथ गुरुदेव (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) के प्राय: सभी पढ़ डाले। उनका बड़ा असर पड़ा।”

मिश्र जी गांधी जी से सबसे अधिक प्रभावित हुए। उन्होंने कविता के क्षेत्र में गांधी दर्शन को पूरी तरह अपनाया। फलत: उनकी ख्याति एक गांधीवादी कवि के रूप में है। उनका खंडकाव्य ‘कालजयी’ भी गांधी जी के प्रति उनके अटूट विश्वास और आस्था का परिचायक है।

‘गीत फरोश’ संकलन की रचनाओं को लिखते समय आर्थिक संकट से जूझ रहा था। उसे इस बात का दुख था कि उसने पैसे लेकर गीत लिखे। इस तकलीफदेह पृष्ठभूमि पर लिखी गई ‘गीत फरोश’ कविता कवि -कर्म के प्रति समाज और स्वयं के बदलते हुए दृष्टिकोण को उजागर करती है। इसमें व्यंग्य के साथ-साथ वस्तु -स्थिति का मार्मिक निरूपण भी है।

भवानीप्रसाद मिश्र की कविताएं भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से बहुत अधिक प्रभावशाली हैं। इनकी कविताओं के भाव की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-

संवेदनशीलता-मिश्र जी की कविताओं में सर्वत्र संवेदनशीलता पाई जाती है। उनकी कविताएँ - सतपुडा के जंगल, घर की आशा - गीत आदि में उनकी गहरी संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं। ‘घर की याद’ कविता से एक उदाहरण दृष्टव्य है,-

माँ कि जिसकी स्नेह- धारा,
का यहाँ तक पसारा।
उसे लिखना नहीं आता,
जो कि उसका पत्र पाता।

सामाजिकता का बोध-मिश्र जी की कविताएँ व्यक्तिवादी नहीं हैं। वे सामाजिक भाव- बोध से संपन्न हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में सामाजिक अन्याय, शोषण, अभाव आदि का चित्रण किया है। उनकी जन-चेतना संबंधी कविताओं में निम्न -मध्यमवर्गीय समाज अभावग्रस्त जीवन का चित्रण हुआ है।

प्रकृति-चित्रण-मिश्र जी प्रकृति-प्रेमी कवि हैं। उनका प्रकृति-चित्रण कलात्मक है। आकाश, समुद्र, पृथ्वी, बादल, फूल, नदी, पक्षी, वन, पर्वत आदि सभी ने उन्हें प्रभावित किया है। ‘सतपुड़ा के जंगल’ का एक चित्रण:

सतपुड़ा के घने जंगल
नाँद में डुबे हुए से ऊँघते अनमने जंगल।
सड़े पत्ते, गले पत्ते, हरे पत्ते, जले पत्से
वन्य-पथ को बैक रहे से पंक-दल में पले पत्ते।

गांधीवादी दर्शन-गांधीवाद ने आपको भीतर तक प्रभावित किया है। मिश्र जी के काव्य में सत्य, अहिंसा, खादी के प्रति मोह, हिन्दू -मुस्लिम एकता, राष्ट्रभाषा का महत्त्व, श्रम की महत्ता जैसे बहुमूल्य विचारों ने स्थान पाया है। अस्पृश्यता की समाप्ति का सपना सब साकार होगा। जब-

यह अछूत है वह काला -फेरा है
यह हिन्दू वह मुसलमान है
वन मजदूर और मैं धनपति
यह निर्गुण वह गुण निधान है
ऐसे सारे भेद मिटेंगे जिस दिन अपने
सफल उसी दिन होंगे गांधी जी के सपने।

व्यंग्य भावना-मिश्र जी एक कुशल व्यंग्यकार भी हैं। उनके व्यंग्य कटु तीखे, चुटीले और मर्मस्पर्शी होते हुए भी विनोद की मिठास लिए होते हैं। ‘चकित है दुख’ की एक कविता से उदाहरण प्रस्तुत है-

बैठकर खादी की गादी पर ढलती हैं प्यालियाँ
भाषण होते हैं अंग्रेजी में गांधी पर
बजती हैं जोर-जोर से तालियाँ।

भाषा-शैली-मिश्र जी की भाषा-शैली अत्यंत सहज और बोलचाल की भाषा के निकट है, वे स्पष्ट घोषणा करते हैं-

जिस तरह हम बोलते हैं
उस तरह तू लिख।

यही उनकी भाषा का मूलमंत्र है। आत्मीयता ये युक्त, आडम्बर से मुक्त, औपचारिकता से दूर होने पर ही मिश्र जी की कविता की भाषा बनती है। जीवन के गंभीर सत्यों का उद्घाटन वे सीधे-सरल शब्दों में कर देते हैं। ‘गीत फरोश’ और कालजयी (खंड काव्य) में उनकी भाषा का संस्कृतनिष्ठ रूप अवश्य दिखाई पड़ता है।

प्रतीक-विधान की दृष्टि से मिश्र जी का काव्य पर्याप्त सम्पन्न है। मिश्र जी ने अपनी प्रारंभिक रचनाओं में परंपरागत छंदों का प्रयोग किया है, पर बाद की रचनाएँ छंद के बंधन से मुक्त हैं। कहीं-कहीं लोकगीत शैली का प्रयोग भी मिलता है-

पीके फूटे आज प्यार के पानी बरसा री

मिश्र जी के काव्य में बिम्बों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उनके बिंब और प्रतीक बहुत स्पष्ट एवं सहज हैं। उनमें कहीं भी जटिलता या बोझिलता नहीं मिलती। अभिव्यक्ति की सहजता, आत्मीयता और कलात्मकता उनकी काव्य-शैली की विशेषताएँ हैं।

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