स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ स्वतंत्र भारत में राजनीति

    नियोजित विकास की राजनीति Here is the CBSE ������������������ Chapter 3 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ नियोजित विकास की राजनीति Chapter 3 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ नियोजित विकास की राजनीति Chapter 3 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 4
    CBSEHHIPOH12041325

    निम्नलिखित का मेल करें

     

    A. चरणसिंह (i) औद्योगिकरण
    B. पी०सी० महालनोबिस (ii) जोनिंग
    C. बिहार का अकाल (iii) किसान
    D. वर्गीज कूरियन (iv) सहकारी डेयरी

    Solution

    A.

    चरणसिंह

    (i)

    किसान

    B.

    पी०सी० महालनोबिस

    (ii)

    औद्योगिकरण

    C.

    बिहार का अकाल

    (iii)

    जोनिंग

    D.

    वर्गीज कूरियन

    (iv)

    सहकारी डेयरी

    Question 5
    CBSEHHIPOH12041326

    आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?

    Solution

    राष्ट्रवादी नेताओं के मन में यह बात बिलकुल साफ थी कि आज़ाद भारत की सरकार के आर्थिक सरोकार अंग्रेजी हुकूमत के आर्थिक सरोकारों से एकदम अलग होंगे तथा वे उनको पूरा करने के लिए आर्थिक प्रणालियाँ अपनाएँगे। विकास के मॉडल को लेकर भारतीय नेताओं में मतभेद था कि विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए। आजादी के वक्त हिंदुस्तान के सामने विकास के दो मॉडल थे। पहला उदारवादी-पूंजीवादी मॉडल था। यूरोप के अधिकतर हिस्सों और संयुक्त राज्य अमरीका में यही मॉडल अपनाया गया था और वहाँ यह मॉडल कारगर साबित हुआ। इस मॉडल एक मुख्य विशेषता यह होती हैं की आर्थिक क्रियाओं में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। अत:भारत के कई राजनेता व विचारक भारत को आधुनिक बनाने के लिए विकास के इसी मॉडल को अपनाने के पक्ष में थे।

    इसके विपरीत दूसरा मॉडल था: समाजवादी मॉडल, यह मॉडल समाजवादी मार्क्सवादी विचारधारा पर आधारित था। इसमें आर्थिक क्रियाओं में राज्य या सरकार का हस्तक्षेप होता है। इसे सोवियत संघ ने अपनाया था। भारतीय नेतृत्व में इस बात को लेकर मतभेद था कि विकास के किस मॉडल को अपनाया जाए। कुछ लोग पश्चिमी देशों की तरह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को अपनाने के पक्ष में थे तो कुछ लोग समाजवादी मॉडल को अपनाने के पक्ष में थे। इस प्रकार कुछ लोग औद्योगीकरण को उचित रास्ता मानते थे और इसके माध्यम से भारत को विकास की दशा की और मोड़ना चाहते थे। और कुछ लोगों की नजर में कृषि का विकास करना और ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को दूर करना सर्वाधिक जरूरी था।

    भारतीय नेतृत्व में दूसरा मतभेद निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र की प्राथमिकताओं को लेकर था। कुछ लोग निजी क्षेत्र को तथा कुछ लोग सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देने के पक्ष में थे। इन सभी विचारों को लेकर सरकार असमंजस में थी कि विकास के किस मॉडल को और किस क्षेत्र को पहले प्राथमिकता दी जाए। अंत में इन मतभेदों को बातचीत के द्वारा हल लिया गया। फलस्वरूप भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाया गया है जिसमें निजी व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों आते हैं। औद्योगीकरण और कृषि दोनों को समान रूप से महत्त्व देने का निर्णय लिया गया।

    Question 6
    CBSEHHIPOH12041327

    पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज़ पर सबसे ज्यादा जोर था? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?

    Solution

    प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951 - 1956) की कोशिश देश को गरीबी के मकड़जाल से निकालने की थी। योजना को तैयार करने में जुटे विशेषज्ञों में एक के.एन. राज थे। भारतीय नेतृत्व ने यह अनुभव किया कि विभाजन के बाद क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसलिए पहली पंचवर्षीय योजना में ज्यादा जोर कृषि- क्षेत्र पर था। इसी योजना के अंतर्गत बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। विभाजन के कारण कृषि- क्षेत्र को गहरी मार लगी थी और इस क्षेत्र पर तुरंत ध्यान देना जरूरी था। भाखड़ा-नगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशि आबंटित की गई।

    इसके विपरीत दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों की एक टोली ने यह योजना तैयार की थी। पहली योजना का मूलमंत्र था धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से संरचनात्मक बदलाव करने की थी। इसके लिए हर संभव दिशा में बदलाव की बात तय की गई थी। जैसे की सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। वास्तव में औद्योगीकरण पर दिए गए इस जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया।

    Question 7
    CBSEHHIPOH12041328

    हरित क्रांति क्या थी? हरित क्रांति के दो सकरात्मक तथा दो नकरात्मक परिणामों का उल्लेख करें।

    Solution

    खाद्यान्न संकट के चलते भारत विदेशी खाद्य-सहायता पर निर्भर हो चला था, खासकर संयुक्त राज्य अमरीका के। संयुक्त राज्य अमरीका ने इसकी एवज में भारत पर अपनी आर्थिक नीतियों को बदलने के लिए ज़ोर डाला। सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे, शुरू-शुरू में सरकार ने उनको ज़्यादा सहायता देने की नीति अपनाई थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम हैं वे कम समय में उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकतेहैं। सरकार ने उच्च गुणवता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात की भी गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा। यही उस परिघटना की शुरुआत थी जिसे' हरित क्रांति ' कहा जाता है।

    हरित क्रांति के दो सकरात्मक परिणाम:
    (i)  इस प्रक्रिया में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज़्यादा फायदा हुआ। हरित क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ (ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बड़ी) और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई।
    (ii) इससे समाज के विभिन्न वर्गो और देशों के अलग- अलग इलाकों के बिच धुर्वीकरण तेज़ गति से हुआ।

    हरित क्रांति के दो नकरात्मक परिणाम:
    (i)  इससे गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर और अधिक हो गया।
    (ii) दूसरे, हरित क्रांति केकारण कृषि में मंझोलेदर्जे केकिसानोंयानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वालेकिसानोंका उभार हुआ।

    Question 8
    CBSEHHIPOH12041329

    दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे।

    Solution

    स्वतंत्र प्राप्ति के पश्चात, विकास को गति देने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में ज़्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर था। जबकि दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। कुछ लोगों को मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति का अभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुँची। जेसी कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका प्रस्तुत किया था। जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था।

    चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केंद्र में रखने की बात बड़े सुविचारित और दमदार ढंग से उठायी थी। चौधरी चरण सिंह कांग्रेस पार्टी में थे और बाद में उससे अलग होकर इन्होंने भारतीय लोकदल नामक पार्टी बनाई। उन्होंने कहा कि नियोजन से शहरी और औद्योगिक तबके समृद्ध हो रहे हैं और इसकी कीमत किसानों और ग्रामीण जनता को चुकानी पड़ रही है।

    कई अन्य लोगों का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता। इन लोगों का तर्क था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति अवश्य ही अपनायी गई थी।

    राज्य ने भूमि-सुधार और ग्रामीण निर्धनों के बीच संसाधन के बँटवारे के लिए कानून बनाए। नियोजन में सामुदायिक विकास के कार्यक्रम तथा सिंचाई परियोजनाओं पर बड़ी रकम खर्च करने की बात मानी गई थी। नियोजन की नीतियाँअसफल नहीं हुईं। दरअसल, इनका कार्यान्वयन ठीक नहीं हुआ क्योंकि भूमि-संपन्न तबके के पास सामाजिक और राजनीतिक ताकत ज्यादा थी । इसकेअतिरिक्त, ऐसेलोगोंकी एक दलील यह भी थी कि यदि सरकार कृषि पर ज्यादा धनराशि खर्च करती तब भी ग्रामीण गरीबी की विकराल समस्या का समाधान न कर पाती।

    Question 9
    CBSEHHIPOH12041330

    ''अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर ज़ोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज़्यादा बेहतर तरीके से होता।'' इस विचार के पक्ष या विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।

    Solution

    विकास के दो जाने-माने मॉडल निजी क्षेत्र एवं सावर्जनिक क्षेत्र योजनाकारों के समक्ष थे। पूँजीवादी मॉडल में विकास का काम पूर्णतया निजी क्षेत्र के भरोसे होता है। भारत ने यह रास्ता नहीं अपनाया। भारत ने विकास का समाजवादी मॉडल भी नहीं अपनाया जिसमें निजी संपत्ति को खत्म कर दिया जाता है और हर तरह केउत्पादन पर राज्य का नियंत्रण होता है। इन दोनों ही मॉडल की कुछ एक बातों को ले लिया गया और अपने देश में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया गया। अर्थात् भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया। 

    यहाँ पर उपरोक्त प्रश्न में यह मुद्दा उठाया गया है कि प्रारंभ में अर्थव्यवस्था में राज्य की क्या भूमिका रही और यह कहा गया है कि प्रारंभ में भारतीय नीति-निर्माताओं ने राज्य की भूमिका को महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया। अगर शुरुआत में ही निजी क्षेत्र का पक्ष लिया जाता अर्थात् निजी क्षेत्र के मॉडल को अपनाया जाता तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर होता। इस विचार के पक्ष व विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं:

    पक्ष- यदि भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को छूट दी जाती तो भारत में औद्योगिक विकास अधिक होता,,जिससे देश के विकास में भी वृद्धि होती। देश में गरीबी पर भी कुछ हद तक नियंत्रण किया जा सकता था। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी भारत और भी आगे निकल सकता था तथा लोगों को रोजगार के अधिक अवसर भी मिलते।

    विपक्ष- लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी के हितों का ध्यान रखने के बारे में विचार विमर्श होता हैं। निजी क्षेत्र में छूट देने से समाज में प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता का वातावरण बना रहता हैं जिससे समाज के आर्थिक वर्गों के बीच असमानता एंव विषमताएँ बढ़ जाती हैं। निजी क्षेत्रों के अधिक आगमन से पूंजीपतियों का विकास होता हैं तथा सामाजिक न्याय की अवहेलना भी होती हैं। इतना ही नहीं निजी क्षेत्रों के हस्तक्षेप से कृषि की भी अवहेलना होती हैं।

    Question 10
    CBSEHHIPOH12041331

    निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:

    आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपी। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धांत अपनाया। उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेंद्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाईं और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज़ ठहराया गया।

                                                                                                - फ्रैंकीन फ्रैंकल 

    (क) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?
    (ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका संबंध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
    (ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और इसके प्रांतीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोध था?

    Solution

    (क) लेखक यहाँ पर कांग्रेस पार्टी के बीच चल रहे अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही कांग्रेस पार्टी में विकास की नीतियों को लेकर आपस में काफी मतभेद हुआ। कुछ लोग सावर्जनिक क्षेत्र के पक्ष में थे। तो कुछ लोग पूंजीवादी विचारधारा के समर्थक थे। अर्थात् वे निजी क्षेत्र के मॉडल को अपनाना चाहते थे। अंत में ऐसे अंतर्विरोध को टालने के लिए इन दोनों ही मॉडल की कुछ बातों को ले लिया गया और इन्हे मिश्रित- अर्थव्यवस्था के रूप में लागू किया गया ताकि भारत में विकास का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे। अगर इस अंतर्विरोध को नहीं सुलझाया जाता तो देश में राजनीतिक अस्थिरता उत्पान हो जाती। जिससे देशी की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ता।

    (ख) लेखक की यह विचारधारा काफी सही प्रतीत होती हैं कि कांग्रेस पार्टी दोनों विचारधाराओं-पूँजीवादी एवं समाजवादी-को बढ़ावा दे रही थी। इसका कारण यह भी है कि पार्टी अपने सभी वर्गों या गुटों को विश्वास में लाना चाहती थी। कुछ हद तक उस पर पूंजीवादियों तथा उद्योगपतियों का भी दवाब था। फलस्वरूप उसने मिश्रित- अर्थव्यवस्था को ही लागू किया।  

    (ग) कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और इसके प्रांतीय नेताओं के बीच अंतर्विरोध किसी बात पर पूर्णतया नहीं था। बहुत से प्रांतो में अलग राजनीतिक दल बनाए गए। कुछ ने पूंजीवादियों नीतियों पर अधिक ज़ोर दिया तथा कुछ ने समाजवादी नीतियों पर। 

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