समष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ समष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय

    मुद्रा और बैंकिंग Here is the CBSE ������������������ Chapter 3 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ मुद्रा और बैंकिंग Chapter 3 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ मुद्रा और बैंकिंग Chapter 3 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 1
    CBSEHHIECH12013795

    वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है ? इसकी क्या कमियाँ है ?

    Solution

    वस्तु विनिमय प्रणाली: मुद्रा के बिना प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं का वस्तुओं के लिए लेन-देन वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है। अर्थात् इस प्रणाली में वस्तुओं के बदले वस्तुएँ ही खरीदी जाती हैं। उदाहरणार्थ, गेहूँ के बदले कपड़ा प्राप्त करना, किसी अध्यापक को उसकी सेवाओं का भुगतान अनाज के रूप में किया जाना इत्यादि।

    वस्तु-विनिमय की कमियाँ: वस्तु विनिमय की निम्नलिखित कमियाँ हैं:-

    1. आवश्कताओं के दोहरे संयोग का अभाव: वस्तु का वस्तु के साथ विनिमय तभी सम्भव हो सकता हैं जब दो ऐसे व्यक्ति परस्पर विनिमय करें जिन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता हो;अर्थात् पहले व्यक्ति की वस्तु की पूर्ति, दूसरे की माँग की वस्तु हो और दूसरे व्यक्ति की पूर्ति की वस्तु, पहले व्यक्ति की माँग की वस्तु हो। इस प्रकार दोहरे संयोग की समस्या उत्त्पन्न होती हैं।
    2. मूल्य के सामान्य मापदंड का अभाव: वस्तु विनिमय प्रणाली में ऐसी सामान्य इकाई का अभाव होता है, जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का माप किया जा सके; उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति गेहूँ का लेन-देन करना चाहता है तो उसे गेहूँ का मूल्य कपड़े के रूप में (1 किलो गेहूँ  = 1 मीटर कपड़ा), दूध के रूप में (1 किलो गेहूँ = 2 लीटर दूध) आदि बाज़ार में उपलब्ध हर वस्तु के रूप में पता होना चाहिए। यह जानना चाहे असंभव ना हो परंतु कठिन अवश्य है।
    3. वस्तु की अविभाज्यता: जो वस्तुएँ अविभाज्य होती हैं, उनकी विनिमय दर का निर्धारण करना विनिमय प्रणाली के अंतर्गत एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर देता है; जैसे एक भैंस तथा कुत्तों का विनिमय करने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
    4. मूल्य संचय का अभाव: यहाँ मूल्य का संचय वस्तुओं के रूप में हो सकता है, परंतु मूल्य को वस्तुओं के रूप में संचित करने में विभिन्न कठिनाइयाँ आती हैं। उदाहरण:
      1. मूल्यों को वस्तुओं के रूप में संचित करने में अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है।
      2. आलू, टमाटर, अनाज, फल आदि को संचित नहीं किया जा सकता, इसलिए वस्तुओं की दशा में, क्रय शक्ति को बचाकर रखना बहुत कठिन कार्य है।
      3. वस्तुओं के मूल्य में अंतर आ जाता हैं।
    5. भविष्य में भुगतान करने की समस्या: वस्तु विनिमय व्यवस्था में वस्तुओं का भविष्य में भुगतान करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती है। इस प्रणाली में ऐसी कोई इकाई नहीं होती जिसे स्थगित/भविष्य भुगतान के मानक के रूप में प्रयोग कर सकें। भुगतान की जाने वाली वस्तु की किस्म को लेकर विवाद भी उत्पन्न हो सकता है। इतना ही नहीं ब्याज का भुगतान करने की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

     

     

     

    Question 2
    CBSEHHIECH12013796

    मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है ?

    Solution

    मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

    1. विनिमय का माध्यम;
    2. मूल्य का मापक;
    3. भावी भुगतान का आधार;
    4. मूल्य संचय।

    मुद्रा निम्नलिखित प्रकार से वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती हैं:

    विनिमय का माध्यम: मुद्रा की सर्वप्रथम भूमिका यह है कि वह मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है। मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं और उससे प्राप्त राशि को अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय में प्रयोग करते हैं।

    मूल्य का मापक: मुद्रा मूल्य के मापक के रूप में भी कार्य करती हैं। विभिन्न वस्तुओं की कीमत को मुद्रा के रूप में दर्शाया जा सकता हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। इस प्रकार मुद्रा विनिमय के सामान्य मापक के अभाव की समस्या को हल कर देती है।

    भावी भुगतान का आधार: साख आज की आधुनिक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का रक्त तथा जीवन बन चूका हैं। करोड़ों सौदों में तत्कालीन भुगतान नहीं किया जाता। देनदार यह वायदा करते हैं की वे भविष्य की किसी तारीख पर भुगतान करेंगे। उन स्थितियों में, मुद्रा भावी भुगतानों के आधार के रूप में कार्य करती हैं। ऐसा इसलिए संभव है, क्योंकि मुद्रा को सामान्य स्वीकृति प्राप्त है, इसका मूल्य स्थिर है, यह टिकाऊ तथा समरूप होती है। 

    मूल्य संचय: धन को मुद्रा के रूप में आसानी से संचित किया जा सकता हैं। मुद्रा को मूल्य की हानि किए बिना संचित किया जा सकता हैं। बचत सुरक्षित होती है तथा उन्हें आवश्यकता पड़ने पर उपयोग किया जा सकता हैं। इस प्रकार, मुद्रा वर्तमान तथा भविष्य के मध्य एक पुल का कार्य करती है। हालांकि मुद्रा के अतिरिक्त अन्य परिसंपत्ति भी मूल्य संचय का कार्य कर सकती है, परंतु, ये संपत्तियाँ दूसरी वस्तु के रूप में आसानी से परिवर्तनीय नहीं हो सकती हैं और इनकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता भी नहीं होगी। 

    Question 3
    CBSEHHIECH12013797

    संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है ?

    Solution

    संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में संव्यवहारों को पूरा करने के लिए मुद्रा की माँग से है।
         सूत्रों के रूप में, मुद्रा की संव्यवहार माँग
            (MTd) = k. T
    यहाँ,     k = धनात्मक अंश 
              T = एक इकाई समयावधि में संव्यवहारों का कुल मौद्रिक मूल्य  
    संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग और किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य में घनिष्ठ संबंध है। यदि अर्थव्यवस्था में किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य अधिक है तो मुद्रा की माँग भी अधिक होगी।

    Question 4
    CBSEHHIECH12013798

    मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रु० के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है। यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी ?

    Solution

    माना बंधपत्र की कीमत = x
          ब्याज की दर  = 5%
               समय  = 2 वर्ष 
    पहले वर्ष का ब्याज; 
              = x × 5100 = 5x100= x20...(i)
    दूसरे वर्ष के लिए बंधपत्र की कीमत;
                       = x + x20= 21x20 
    दूसरे वर्ष का ब्याज
                       = 21x20×5100= 21x20 × 5100=  21x400 ...(ii)
    कुल ब्याज;
        (i) + (ii)
    = x20 + 21x400= 20x + 21x400 = 41x400 

    चूँकि,
                      =41x400 = 500   x = 500 × 40041 = 4878.048 (approx)
    अत: बंधपत्र की कीमत  = 4,878 रूपए 

    Question 5
    CBSEHHIECH12013799

    भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है?

    Solution

    भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा की पूर्ति के वैकल्पिक मापों को चार रूपों में प्रकाशित करता है, नामत: M1, M2, M3 और M4
    ये सभी निम्नलिखित तरह से परिभाषित किये जाते हैं:
                M1 = C + DD + OD
                M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ 
                M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल आवधिक जमाएँ
                M4 = M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ 
    जहाँ ,
               C = जनता के पास करेंसी 
              DD = माँग जमाएँ 
              OD = रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ 
    M1 and M2 संकुचित मुद्रा (Narrow Money) कहलाती है। M3 और M4 को व्यापक मुद्रा (Broad Money) कहते हैं।
    M1 संव्यवहार के लिए सबसे तरल और आसान है, जबकि M4 इनमें सबसे कम तरल है।

    Question 6
    CBSEHHIECH12013800

    वैधानिक पत्र क्या है? कागज़ी मुद्रा क्या है ?

    Solution

    वैधानिक पत्र अथवा वैधानिक मुद्रा (Legal Tender Money): इससे अभिप्राय उस मुद्रा से है जिससे विधि (कानून) का समर्थन प्राप्त है और कोई भी व्यक्ति इसे अस्वीकार नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, भारतवर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए ₹ 100 रुपए के नोटों को लेने या देने से कोई व्यक्ति मना नहीं कर सकता और अगर यदि वह ऐसा करता पाया जाता है तो वह कानूनी तौर पर दंड का भागी होगा।

    कागज़ी मुद्रा (Fiat Money): इससे अभिप्राय भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी करेंसी नोट और सिक्के से हैं। इसका सोने और चांदी के सिक्कों की तरह कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता और यह सरकार के आदेश पर प्रचलित होती है। इस मुद्रा को आदेश मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है; जैसे भारत में मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा जारी की गई कागज़ी मुद्रा।

    Question 7
    CBSEHHIECH12013801

    उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?

    Solution

    भारतीय रिजर्व बैंक की देश की मौद्रिक प्राधिकरण की संपूर्ण देयता को मौद्रिक आधार या उच्च शक्तिशाली मुद्रा कहते है। इसमें करेंसी (आम जनता के साथ संचरण में नोट और करेंसी तथा व्यावसायिक बैंक की कोष्ठ नकदी राशि) तथा व्यावसायिक बैंक और भारत सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक में रखी गई जमा आते है। यदि कोई आम जनता भारतीय रिजर्व बैंक को करेंसी नोट प्रस्तुत करती है, तो रिजर्व बैंक को उस मुद्रा के मूल्य पर अंकित मूल्य की राशि के बराबर का भुगतान करना होता है।

    Question 8
    CBSEHHIECH12013802

    मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगे? मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में किस अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है?

    Solution

    मुद्रा गुणक से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में मुद्रा के स्टॉक और शक्तिशाली मुद्रा के स्टॉक के अनुपात से हैं। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निर्धारित किया जाता हैं:

    मुद्रा गुणक = M/H
    यहाँ,
        M = मुद्रा का स्टॉक 
        H = शक्तिशाली मुद्रा
    चूँकि मुद्रा का स्टॉक सामान्यता शक्तिशाली मुद्रा के मूल्य से अधिक होता है, इसलिए मुद्रा गुणक का मूल्य 1 से अधिक होता है। 
    मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में निम्नलिखित अनुपातों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है:
    1. करेंसी जमा अनुपात: करेंसी जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है: 
                  करेंसी जमा अनुपात  = CU/DD
    यहाँ,                 CU = लोगों के पास रखी हुई करेंसी 
                          DD = व्यवसायिक बैंक की कोष्ठ नकदी
     
    2. रिज़र्व जमा अनुपात: रिज़र्व जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है: 
           रिज़र्व जमा अनुपात = व्यावसायिक बैंक का रिज़र्व /व्यावसायिक बैंक का कुल जमा 
            

    Question 9
    CBSEHHIECH12013803

    Solution

    साख निर्माण: साख सृजन व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। साख के एक पक्ष को दूसरे पक्ष द्वारा एक निश्चित व्याज की दर पर वित्त उपलब्ध कराने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। साख मौद्रिक एवं व्यावसायिक प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    साख सृजन प्रक्रिया:व्यावसायिक बैंकों में जमाकर्ताओं का चालू खाता होता है तथा वे चैकों के द्वारा अपने दायित्वों को वहन करते हैं। इन बैंकों के पास माँग जमा के विस्तार एवं संकुचन की शक्ति होती है। इन शक्तियों को साख सृजन अथवा साख संकुचन कहते हैं। जब कभी बैंक ऋण देता है, यह जमा का सृजन करता है। व्यावसायिक बैंक अपने ऋण तथा निवेश को कई गुणा करने में सक्षम होते हैं तथा इस प्रकार जमाओं को कई गुणा कर देते हैं। नकद की छोटी सी मात्रा ऋण तथा अग्रिम की गुणाओं द्वारा जमाओं को कई गुणा बढ़ाते हैं। इस प्रकार, व्यावसायिक बैंक साख का सृजन करते हैं।

    Question 10
    CBSEHHIECH12013804

    भारतीय रिजर्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है ?

    Solution
    1. केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों के लिए अंतिम ऋणदाता (Lender of Last Resort) के रूप में कार्य करता है, जब व्यावसायिक बैंक जमाकर्ताओं के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने में असफल होते हैं, तो केंद्रीय बैंक उनके बचाव के लिए आता है। ऐसे समय में भारतीय रिजर्व बैंक व्यावसायिक बिलों की पुनः कटौती करके अथवा प्रतिभूतियों की जमानत पर ऋण प्रदान करता है।

    2. ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यवसायिक बैंक को अपने ग्राहकों की नकद मुद्रा की माँग के भुगतान के लिए कभी-कभी अधिक मात्रा में मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में जब व्यवसायिक बैंक अपने ग्राहकों की माँग की पूर्ति अपने साधनों से नहीं कर पाते तो वे भारतीय बैंक से सहायता की माँग करते हैं तथा भारतीय रिज़र्व बैंक अंतिम ऋणदाता के रूप में अनिवार्य रूप से उनकी सहायता करता है।

    Question 11
    CBSEHHIECH12013805

    भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के कौन-कौन से उपकरण है ? बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक किस प्रकार मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है ?

    Solution

    भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण निम्नलिखित हैं:

    मात्रात्मक विधि:

    (क) बैंक दर नीति: भारतीय रिजर्व बैंक जिस दर पर व्यवसायिक बैंकों को ऋण देते हैं ,उसे कटौती दर या बैंक दर कहते हैं। इसे (Repo Rate) भी कहते हैं। यदि अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी दबाव है तो बैंक दर को बढ़ा दिया जाता है। दूसरी और आर्थिक मंदी के समय भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंक दर कम कर दी जाती है। कटौती की दर बढ़ाकर या घटाकर भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों द्वारा ऋण की लागत को प्रत्यक्ष रूप से तथा ब्याज की दर और ऋण की स्थिति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता हैं। 
    (ख) खुले बाजार की क्रियाएँ: भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से हैं। जब अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी दवाब होता है तो भारतीय रिजर्व बैंक प्रतिभूतियाँ बेचता है। जिससे बैंकों की ऋण देने की क्षमता कम हो जाती है। दूसरी ओर जब अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी होती है तो वह प्रतिभूतियाँ खरीदता है जिससे बैंकों की ऋण देने की क्षमता बढ़ जाती है।
    (ग) विभिन्न कोष अनुपात:

    1. नकद कोष अनुपात (CRR): प्रत्येक वाणिज्यिक बैंक को अपनी जमा का एक न्यूनतम प्रतिशत कानूनी तौर पर केंद्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है। यह दर केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित की जाती है। जब अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी दबाव होता है तो इस अनुपात को बढ़ा दिया जाता है, इसके विपरीत आर्थिक मंदी के समय CRR को कम कर दिया जाता है।
    2. वैधानिक तरलता अनुपात (SLR): इससे तात्पर्य वाणिज्यिक बैंकों की तरल परिसंपत्तियों से है जो उन्हें अपनी कुल जमाओं के एक न्यूनतम प्रतिशत के रूप में दैनिक आधार पर अपने पास रखनी होती है, ताकि वे अपने जमाकर्ताओं की नकद माँग को पूरा कर सकें। SLR में भी की स्थिति में वृद्धि की जाती है, ताकि बैंक की साख निर्माण क्षमता को कम किया जा सके।  

    गुणात्मक विधि:
    (क) सीमान्त कटौती
    (ख) नैतिक दवाब
    (ग) चयनित साख नियंत्रण

    बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा पूर्ति का स्थिरीकरण: बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक स्थिरीकरण के द्वारा मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है। स्थिरीकरण भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी विनिमय अंत: प्रवाह में वृद्धि के विरुद्ध मुद्रा की पूर्ति को स्थायी रखने के लिए किए गए हस्तक्षेप से है। स्थिरीकरण के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी विनिमय की मात्रा के बराबर की मात्रा में सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री खुले बाजार में करता है जिससे अर्थव्यवस्था में कुल पूर्ति अपरिवर्तित रहती है।

    Question 12
    CBSEHHIECH12013806

    मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध क्यों होता है ?

    Solution

    मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध होता है। इसका अर्थ यह है कि अधिक ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग कम होगी और कम ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग अधिक होगी। यदि ब्याज दर अधिक है तो लोग बंधपत्र अधिक खरीदेंगे और कम मुद्रा रखना चाहेंगे। यदि ब्याज दर कम है तो लोग बंधपत्र में निवेश कम अथवा नहीं करेंगे और अपने पास मुद्रा रखेंगे।

    Question 13
    CBSEHHIECH12013807

    तरलता पाश क्या है?

    Solution

    तरलता पाश एक ऐसी स्थिति है जिसमें ब्याज की दर अति निम्न होती है और हर निवेशक भविष्य में ब्याज दर में वृद्धि की आशा रखता है। परिणाम-स्वरूप निवेशकों को बॉण्ड में निवेश करना आकर्षक नहीं लगता। ऐसी हालत में लोग बॉण्ड्स बेचकर मुद्रा अपने पास इकट्ठी करते जाते हैं, क्योंकि ऐसी स्थिति में बॉण्ड्स ऐसी परिसम्पति ना के बराबर आय प्रदान करती है। इससे मुद्रा के लिए सट्टेबाज़ी की माँग अनंत या पूर्ण लोचदार हो जाती है। इसे नीचे दिए गए चित्र में दिखाया गया है।
    ब्याज दर = 2% के बाद मुद्रा माँग वक्र X-अक्ष के समांतर हो गया है। इस स्थिति को तरलता पाश या तरलता फंदा कहा जाता है। इस स्थिति मौद्रिक अधिकारियों के लिए एक कठिन चुनौती है क्योंकि इस स्थिति में मौद्रिक नीति द्वारा भी साख व मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित नहीं किया जा सकता।   

    Question 14
    CBSEHHIECH12013808

    व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।

    Solution

    वेबसाइट बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं :

    1. जमा स्वीकार करना: वेबसाइट बैंक व्यक्तियों, व्यावसायिक फर्मों और अन्य संस्थाओं से निम्नलिखित रूपों में जमाएँ स्वीकार करते हैं।
      1. चालू जमा खाता:यह ऐसी जमा होती है जिनका भुगतान बैंकों को खाता-धारियों की माँग पर तत्काल करना होता है। इस खाते में जमा राशियाँ, माँग जमा कहलाती है क्योंकि माँगने पर कभी भी निकलवा सकते हैं। इस खाते में बैंक ब्याज नहीं देता बल्कि उनसे कुछ-ना-कुछ लेते हैं।
      2. बचत खाता: यह खाता छोटी-छोटी बचतों को प्रोत्साहित करने के लिए होता है। यह परिवारों के लिए लाभदायक है, जिनको एक बार रुपए जमा कराने के बाद तुरंत जरूरत नहीं पड़ती है। बचत खाते में जमा राशि पर से 4 - 5% ब्याज प्राप्त होता हैं।
      3. सावधि खाता: सावधि जमा वह होती है जिसकी परिपक्वता की अवधि निर्धारित होती है। इसमें दीर्घ व निश्चितकाल के लिए जमा स्वीकार की जाती है, इसलिए इस खाते में ब्याज की रकम अधिक होती है। एक निश्चित अवधि पूरा होने के पश्चात ही इसमें जमा राशि को निकलवा सकते हैं।
    2. ऋण देना: बैंक का दूसरा मुख्य कार्य ग्राहकों को ऋण देना है। बैंक दूसरे लोगों से जमा स्वीकार करते हैं, तत्पश्चात एक निश्चित भाग सुरक्षा कोष में रखकर, शेष राशि व्यापारियों एवं उद्यमियों को ब्याज पर उधार देते हैं। वास्तव ब्याज ही बैंक की आय का मुख्य स्त्रोत हैं।
    3. एजेंसी कार्य: बैंक अपने ग्राहकों का एजेंट के रूप में भी कार्य करता है जिसके लिए बैंक कुछ कमीशन लेता है। बैंक द्वारा प्रदत एजेंसी सेवाएँ निम्नलिखित है:
      1. नकद कोषों का हस्तांतरण: बैंक-ड्राफ्ट उधार खाते की चिट्ठी तथा अन्य साख-पत्रों द्वारा बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान को रकम का स्थानांतरण करता हैं ये सेवा कम लागत, शीघ्रता और सुरक्षा-युक्त होती हैं।
      2. बैंक अपने ग्राहकों के लिए कंपनियों के शेयर बेचना और खरीदना है या कंपनियों के नाम पर हिस्सेदारी में लाभ को बाँटता है।

      3. नगद संग्रह करना: बैंक अपने ग्राहकों के लिए उनके आदेश पर चेक, धनादेश हुंडियों आदि की रकम उनके दाताओं से वसूल करता है।

      4.  

        ग्राहकों को आयकर संबंधी परामर्श देता है और उनके आयकर का भुगतान भी करता है।

    4. सामान्य उपयोगी सेवाएँ: बैंक द्वारा उपलब्ध अन्य उपयोगी सेवाएँ निम्नलिखित है:
      1. विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय।
      2. पर्यटक तथा उपहार चैक जारी करना।
      3. कीमती वस्तुओं को लॉकरों में संभालकर रखना।
      4. प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था करना।

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