भारतीय इतिहास के कुछ विषय I Chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ
  • NCERT Solution For Class 12 इतिहास भारतीय इतिहास के कुछ विषय I

    ईंटें मनके तथा अस्थियाँ Here is the CBSE इतिहास Chapter 1 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 इतिहास ईंटें मनके तथा अस्थियाँ Chapter 1 NCERT Solutions for Class 12 इतिहास ईंटें मनके तथा अस्थियाँ Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 इतिहास.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028248

    हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।

    Solution

    I. हड़प्पा शहरों के लोगों के लिए भोजन के निम्नलिखित सामान उपलब्ध थे:
    1. अनाज: गेहूं, जौ, मसूर, मटर, ज्वार, बाजरा, तिल, सरसों, राई, चावल आदि।
    2. मवेशियों, भेड़, बकरी, भैंस, सुअर का मांस।
    3. हिरण, सूअर, घड़ियाल आदि जैसे जंगली प्रजातियों का मांस।
    4. पौधे और उनके उत्पाद।

    इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान निम्नलिखत हैं:
    1. किसानों द्वारा अनाज उपलब्ध करवाया जाता था।
    2. जैसे कि मवेशी, भेड़, बकरी, भैंस इत्यादि पालतू थे, हड़प्पा स्वयं इनसे मांस प्राप्त करते थे।
    3. जानवरों की जंगली प्रजातियों के मांस के बारे में हमें यकीन नहीं है कि हड़प्पा ने इसे कैसे प्राप्त किया, लेकिन हम अनुमान लगा सकते हैं कि यह या तो शिकार समुदाय हो सकता है या शायद कुछ हड़प्पा-निवासी स्वयं ही इन जानवरों का शिकार करते थे।
    4. पौधों और उनके उत्पादों के लिए हड़प्पा-निवासी स्वयं इसे इकट्ठा कर लेते थे।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028249

    पुरातत्त्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक- आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौन सी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?

    Solution

    पुरातत्त्वविद निम्नलिखित विधियों और तकनीकों को अपनाकर हड़प्पा समाज में सामाजिक-आर्थिक मतभेदों का पता लगाते हैं:

    1. शवाधान:
             a. शवाधान गत में अंतर।
             b  शवाधान में पूरावस्तुओं की उपस्थिति।

    पुरातत्वविदों ने पाया है कि शवाधान में अंतर होता है:

    a. कुछ कब्रें सामान्य बनी होती हैं तो कुछ कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई होती है।

    b. यद्यपि हड़प्पा निवासियों ने शायद ही कभी अपने किसी की मृत्युं के साथ कीमती सामग्री को दफनाया था, हालांकि कुछ कब्रों में मिट्टी के बर्तन, गहने,आभूषण शामिल थे जो अर्द्ध कीमती पत्थरों से बने थे।

    2. 'विलासिता' की वस्तुओं की खोज:

    1. पुरातत्त्वविद उन वस्तुओं को कीमती मानते थे जो दुर्लभ हों अथवा महँगी, स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों से बनी हों।
    2. महँगे पदार्थो से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में केंद्रित हैं और छोटी बस्तियों में ये विरले ही मिलती हैं।

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028250

    क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइए।

    Solution
    1. ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया और फिर इसके साथ घर बनाए गए थे। प्रत्येक घर के गंदे पानी की निकासी एक पाईप से होती थी जो सड़क और गली की नाली से जुड़ी होती थी।
    2. शहरों में नक्शों से जान पड़ता है कि सड़कों और गलियों को लगभग एक ग्रिड प्रणाली से बनाया गया था और वह एक दूसरे को समकोण काटती थी ।
    3. जल निकासी कि प्रणाली बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह कई छोटी बस्तियों में भी दिखाई पड़ती हैं। उदहारण के लिए लोथल में आवासों के बनाने के लिए जहाँ कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया हैं वहीँ नालियों को पक्की ईंटों से बनाया गया हैं।
    Question 4
    CBSEHHIHSH12028251

    हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

    Solution

    मनकों के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थों की विविधता उल्लेखनीय है:
    इसमें कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का), जैस्पर, स्फटिक, क़्वार्ट्ज़ और सेलखड़ी जैसे पत्थर; ताँबा, काँसा तथा सोने जैसे धातुएँ; तथा शंख, फ़यॉन्स और पक्की मिट्टी, सभी का प्रयोग मनके बनाने में होता था। कुछ मनके दो या उससे अधिक पत्थरों को आपस में जोड़कर बनाए जाते थे और कुछ सोने के टोप वाले पत्थर के होते थे।

    मनका बनाने की प्रक्रिया:

    1. पहला चरण (मनके को आकर देना): सबसे पहले, मनके बनाने की प्रक्रिया में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थीं। उदहारण के तोर पर सेलखड़ी जो एक मुलायम पत्थर है, पर आसानी से कार्य हों जाता था।
    2. दूसरा चरण: (मनके को रंग देना): इसमें पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था। 
    3. तीसरा चरण: पत्थरों के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था और फिर बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अंतिम रूप दिया जाता था।
    4. चौथा (अंतिम चरण): प्रक्रिया के अंतिम चरण में घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करना शामिल थे। चंहुदड़ो , लोथल और हाल ही में धौलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण मिले हैं।

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028252

    मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए

    Solution

    मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है।

    1. नियोजित शहरी केंद्र: यह नगर दो भागों में विभाजित था, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमश: दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है।दुर्ग कि ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ कि संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा हुआ गया था जिसका अर्थ है कि इस निचले शहर से अलग किया गया था। निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नीवं का कार्य करते थे। दुर्ग क्षेत्र के निर्माण तथा निचले क्षेत्र में चबूतरों के निर्माण के लिए विशाल संख्या में श्रमिकों को लगया गया होगा।
    2. प्लेटफार्म: इस नगर की यह विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण किया जाता होगा। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन। इसकी पूर्व योजना का पता ईंटों से भी लगता है। यह ईंटें भट्टी में पक्की हुई, धुप में सुखी हुई, अथवा एक निश्चित अनुपात की होती थीं। इस प्रकार की ईंटें सभी हड्डपा बस्तियों में प्रयोग में लायी गयी थीं। 
    3. गृह स्थापत्य: (i) मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। घरों की बनावट में समानता पाई गयी है। ज्यादातर घरों में आँगन होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। (ii) हर घर का ईंटों से बना अपना एक स्नानघर होता था जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थी।
    4. दुर्ग:दुर्ग में कई भवन ऐसे थे जिनका उपयोग विशेष सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया गया था। निम्नलिखित दो संरचनाएं सबसे महत्वपूर्ण थीं: (i) मालगोदाम,(ii) विशाल स्नानागार। इसकी विशिष्ट संरचनाओं के साथ इनके मिलने से इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि इसका प्रयोग किसी प्रकार के विशेष आनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।
    5. नालियों की व्यवस्था: मोहनजोदड़ो नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत नियोजित तरीके से किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। प्रत्येक घर के गंदे पानी की निकासी एक पाईप से होती थी जो सड़क गली की नाली से जुड़ा होता था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों से नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवशयक था।
    6. सड़कें और गालियाँ: जैसे ज्ञात होता है कि सड़कें और गालियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 चौड़ी थीं, इससे 'प्रथम सड़क' कहा गया है। बाकि सड़कें 3.6 से  4 मीटर तक चौड़ी थीं। गालियाँ एक गलियारें 1.2 मीटर या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के निर्माण से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028253

    हड्डपा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवशयक कच्चे माल की सूची बनाइए तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे ?

    Solution

    हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची:

    (i) चिकनी मिट्टी, (ii) पत्थर, (iii) ताम्बा, (iv) कांसा, (v) सोना, (vi) शंख, (vii) कार्निलियन, (viii) स्फटिक, (ix) क्वार्ट्ज़ (x) सेलखड़ी, (xi) लाजवर्द मणि, (xii) कीमती लकड़ी, (xiii)कपास, (xiv) उन, (xv) सुइयाँ, (xvi)फ्यान्स, (xvii) जैस्पर, (xviii) चकियाँ इत्यादि

    कच्चे माल की सूची में से कई चीज़ें स्थानीय तौर पर मिल जाती थी जैसे: मृदा, लकड़ी परन्तु अधिकतर जैसे पत्थर, धातु, अच्छी गुणवत्ता वाली लकड़ी, इत्यादि बाहर से मंगवाई जाती थीं।

    कच्चे माल को प्राप्त करने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया गया था और ये थे:

    1. बस्तियों की स्थापना: हड़प्पा के लोगों ने उन स्थानों पर अपनी बस्तियों की स्थापना की जहाँ कच्ची सामग्री आसानी से उपलब्ध थी। उदाहरण के लिए नागेश्वर और बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था। इसी तरह अफगानिस्तान में शोर्तुघई जो अत्यन्त कीमती माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि के सबसे अच्छे स्त्रोत्र के पास स्थित था तथा लोथल जो कार्नेलियन, सेलखड़ी(दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से)और धातु (राजस्थान से) के स्त्रोत्रों के निकट स्थित था।
    2. अभियानों से माल प्राप्ति: अभियानों का आयोजन करके कच्चा माल प्राप्त करने की यह एक अन्य निति थी। इन अभियानों के माध्यम से वे स्थानीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क स्थापित करते थे। इन स्थानीय लोगों से वे वस्तु विनिमय से कच्चा माल प्राप्त करते थे। ऐसे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताम्बा तथा दक्षिण भारत में कर्नाटक क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई पुरा वस्तुओं तथा कला तथ्यों के साक्ष्य मिले हैं। पुरातत्ववेताओं ने खेतड़ी क्षेत्र से मिलने वाले साक्ष्यों को गणेश-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया हैं जिसके विशिष्ट मृदभांड हड़प्पा से भिन्न है।
    3. सुदूर क्षेत्रों से संपर्क: हड़प्पा सभ्यता के नगरों का पश्चिम एशिया की सभ्यताओं के साथ संपर्क था। उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया हड़प्पा सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से बहुत दूर स्थित था फिर भी इस बात के साक्ष्य मिले रहे है कि इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापारिक सम्बन्ध था।
      (i) तटीय बस्तियाँ: यह व्यापारिक संबंध समुद्रतटीय क्षेत्रों के समीप से (समुद्री मार्गो से) यात्रा करके स्थापित हुए थे। मकरान तट पर सोटकाकोह बस्ती तथा सुत्कगेंडोर किलाबंद बस्ती इन यात्राओं के लिए आवशयक राशन-पानी उपलब्ध कराती होगी। 
      (ii) मगान: ओमान की खाड़ी पर स्थित रसाल जनैज भी व्यापर के लिए महत्वपूर्ण बन्दरगाह थी। सुमेर के लोग ओमान के मगान के नाम से जाने जाते थे। मगान में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी वस्तुएँ; जैसे मिट्टी का मर्तबान, बर्तन, इंदरगोप के मनके, हाथी-दाँत अथवा धातु के कला तथ्य मिले हैं।
      (iii) दिलमुन: फारस की खाड़ी में भी हड़प्पाई जहाँ पहुँचते थे। दिलमुन तथा पास के तटों पर जहाज जाते थे। दिलमुन से हड़प्पा के कलातथ्य तथा लोथल से दिलमुन की मोहरें प्राप्त हुई हैं। 
      (iv) मेसोपोटामिया: वस्तुत दिलमुन (बहरीन के द्वीपों से बना) मेसोपोटामिया का प्रवेश द्वार था। मेसोपोटामिया के लोग सिंधु बेसिन को मेलुहा के नाम से जानते थे। मेसोपोटामिया के लेखों में मेलुहा से व्यपारिक संपर्क का उल्लेख है। पुरातात्विक साक्ष्यों से ज्ञात हुआ है कि मेसोपोटामिया में हड़प्पा की मुद्राएँ, तौल, मनके, चौसर के नमूने, मिट्टी की छोटी मूर्तियाँ मिली हैं।  इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पाई लोग मेसोपोटामिया से व्यापर संपर्क रखते थे तथा सम्भवत: वे यहाँ से चाँदी एवं उच्च स्तर की लकड़ी प्राप्त करते थे। 

    Question 7
    CBSEHHIHSH12028254

    चर्चा कीजिए की पुरातत्वविद् किस प्रकार अतीत का पुनःनिर्माण करते हैं।

    Solution

    पुरातत्वविदों को खुदाई के दौरान अनेक प्रकार के शिल्प तथ्य प्राप्त होते हैं। वे इन शिल्प तथ्यों को अन्य वैज्ञानिकों की मदद से अन्वेषण व विश्लेषण करके व्याख्या करते हैं। इस कार्य में वर्तमान में प्रचलित प्रक्रियाओं, विश्वासों आदि का भी सहारा लेते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संबंध में पुरातत्वविदों के अग्रलिखित निष्कर्षों से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि वे किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं:

    1. जीवन निर्वाह का आधार कृषि: पुरावशेषों तथा पुरावनस्पतिज्ञों की मदद से पुरातत्वविद् हड़प्पा सभ्यता की जीविका निर्वाह प्रणाली के संबंध में निष्कर्ष निकालते हैं। उनके अनुसार नगरों में अन्नागारों का पाया जाना इस बात का प्रतीक है कि इस सभ्यता के लोगों के जीवन निर्वाह का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी। गेहूँ की दो किस्में पैदा की जाती थीं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन से गेहूँ और जौ प्राप्त हुए है। गुजरात में ज्वार और रागी का उत्पादन होता था। हड़प्पा सभ्यता के लोग सम्भवत: दुनिया में पहले थे जौ कपास का उत्पादन करते थे। इसके साक्ष्य मेहरगढ़,मोहनजोदड़ो, आदि स्थानों से मिले हैं।
    2. पशुपालन व शिकार: इसी प्रकार सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पूरा-प्राणिविज्ञानियों के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे। ऊँटों की हड्डियाँ बड़ी मात्रा में पाई गई है। इसके अतिरिक्त भालू ,हिरण, घड़ियाल जैसे पशुओं की हड्डियाँ भी मिली है। मछली व मुर्गे की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई है। वे हाथी, गैंडा जैसे पशुओं से भी परिचित थे।
    3. सामाजिक-आर्थिक विभिन्नताओं की पहचान: विभिन्न प्रकार की सामग्री से विभिन्न तरीकों से यह जानने की कोशिश करते हैं कि अध्ययन किए जाने वाले समाज में सामाजिक-आर्थिक विभेदन मौजूद था या नहीं। उदाहरण के लिए हड़प्पा के समाज में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भेद को जानने के लिए विधियाँ अपनाई गई हैं। शवधानों से प्राप्त सामग्री के आधार पर इस भेद का पता लगाया जाता है।
    4. शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान: हड़प्पा के शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान के लिए भी विशेष विधि अपनाई जाती है। पुरातत्वविद किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के टुकड़ों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कूड़ा-कर्कट आदि चीज़ों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है।
    5. परोक्ष तत्वों के आधार पर व्याख्या:कभी कभार पुरातत्विद् परोक्ष तथ्यों का सहारा लेकर वर्गीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ हड़प्पा स्थलों पर कपड़ो के अंश मिले हैं। तथापि कपड़ा होने के प्रमाण के लिए दूसरे स्त्रोत जैसे मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। किसी भी शिल्प को समझने के लिए पुरातत्ववेत्ता को उसके सन्दर्भ की रूप-रेखा विकसित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, हड़प्पा की मुहरों को जब तक नहीं समझा जा सका तब तक उन्हें सही संदर्भ में नहीं रख पाए। वस्तुतः इन मोहरों को उनके सांस्कृतिक अनुक्रम एवं मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना के आधार पर ही इन्हें सही अर्थों में समझा जा सका।

    Question 8
    CBSEHHIHSH12028255

    हड़प्पा सभ्यता के समय में राजनीतिक सत्ता का क्या स्वरूप था तथा विज्ञान क्या-क्या कार्य करते थ े।

    Solution

    हड़प्पा सभ्यता के समय में राजनीतिक सत्ता का क्या स्वरूप था तथा विज्ञान क्या-क्या कार्य करते थे। इस संबंध में पुरातत्वविदों तथा इतिहासकारों में एकमत नहीं है। विशेषतौर पर हड़प्पा लिपि के नहीं पढ़े जाने के कारण यह पक्ष अभी तक अस्पष्ट है। फिर भी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि वहाँ पर शासक वर्ग अवश्य था। हड़प्पा सभ्यता के सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जाता है कि हड़प्पाई समाज में शासक थे तथा उनके द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों का विवरण निम्नलिखित प्रकार दिया जा सकता है:

    1. शासकों के द्वारा जटिल फैसले लिए जाते होंगे तथा उन्हें लागू करवाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी किए जाते होंगे। हड़प्पा स्थलों पर प्राप्त पूरावशेषों में असाधारण एकरूपता इस बात का प्रतीक है कि इस बारे में नियम रहे होंगे। मृदभाण्ड, मोहरें, बाट तथा ईंटों में यह असाधारण एकरूपता शासकों के आदेशों पर ही रही होगी।
    2. बस्तियों की स्थापना व नियोजन का निर्णय लेना, बड़ी संख्या में ईंटों को बनवाना, शहरों में विशाल दुर्ग/दीवारें, सावर्जनिक भवन, दुर्ग क्षेत्र के लिए चबूतरे का निर्माण कार्य, लाखों की संख्या में विभिन्न कार्यों के लिए मजदूरों की व्यवस्था करना; जैसे कार्य शासकों के द्वारा ही करवाए जाते रहे होंगे। नगरों की सारी व्यवस्था की देखभाल शासक वर्ग द्वारा की जाती थी।
    3. कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि मेसोपोटामिया के समान हड़प्पा में भी पुरोहित शासक रहे होंगे।पाषाण की एक मूर्ति की पहचान 'पुरोहित राजा' के रूप में की जाती है जो एक प्रसाद महल में रहता था। लोग उसे पत्थर की मूर्तियों में आकार देकर सम्मान करते थे। यह संभावना भी व्यक्त की जाती है कि यह पुरोहित राजा धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करते थे। यह भी कहा जाता है कि विशाल स्नानागार एक आनुष्ठानिक क्रिया के आयोजन के लिए बनवाया गया होगा। यद्यपि हड़प्पा सभ्यता की आनुष्ठानिक प्रथाओं को अभी तक ठीक प्रकार से नहीं समझा जा सका है।
    4. कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पाई समाज में एक राजा ही नहीं था बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग शासक होते थे। अपने-अपने क्षेत्र में व्यवस्था को देखते थे।
    5. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पा राज्य कांस्य युग का था तथा यह लोह युग के राज्य से भिन्न था। न इसकी स्थाई सेना थी और न स्थाई नौकरशाही। भू-राजस्व भी वसूल नहीं किया जाता था। शासक वर्ग में विभिन्न समुदायों के प्रमुख लोग शामिल थे जो आपस में मिलकर इसे चलाते थे। इन लोगों का तकनीकी, शिल्पों तथा व्यापार पर अधिकार था। ये शिल्पकारों से उत्पादन करवाते थे। दूर- दूर तक व्यापार करते थे। किसानों से अनाज शहरों तक आता था तथा इसे अन्नागारों में रखा जाता था।
    6. हड़प्पा सभ्यता के काल में उभरे क्षेत्रीय, अंतर क्षेत्रीय तथा बहारी व्यापार को सुचारु रुप से चलाने का कार्य भी शासक के हाथों में ही होगा। शासक बहुमूल्य धातुओं व मणिको के व्यापार पर नियंत्रण रखते होंगे। इस व्यापार से उन्हें धन प्राप्त होता था। बड़े पैमाने पर शिल्प उत्पादों, माप-तोल प्रणाली, कलाओं का संचालन भी शाशक करते होंगे।
    7. स्पष्ट है कि नगर नियोजन, भवन निर्माण, दुर्ग निर्माण, निकास प्रणाली, गलियों का निर्माण, मानव संसाधन को कार्य पर लगाना, शिल्प उत्पाद, खाद्यान्न प्राप्ति, व्यापारिक कार्य, धार्मिक अनुष्ठान जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का संपादन हड़प्पा शासकों द्वारा किया जाता होगा।

    Question 9
    CBSEHHIHSH12028256

    नीचे दिए गए चित्र को देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौन-सी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?

    Wired Faculty

    Solution

    चित्र को देखकर शव के संबंध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जाते हैं:

    1. शव एक गर्त में रखा हुआ है। यह उत्तर दक्षिण दिशा में रखा हुआ है।
    2. शव के समीप सिर की तरफ मृदभांड रखे हैं, इनमें मटका, जार आदि शामिल है।
    3. शव पर पुरावस्तुएँ हैं विशेषतः कंगन आदि आभूषण हैं। ऐसा लगता है कि ये वस्तुएँ मृतक द्वारा अपने जीवन काल में प्रयोग की गई थीं और हड़प्पाई लोगों का विश्वास था कि वह अगले जीवन में भी उनका प्रयोग करेगा।
    4. शव को देखकर उसके लिंग के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा लगता है कि यह किसी महिला का शव है।