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ईंटें मनके तथा अस्थियाँ

Question
CBSEHHIHSH12028254

चर्चा कीजिए की पुरातत्वविद् किस प्रकार अतीत का पुनःनिर्माण करते हैं।

Solution

पुरातत्वविदों को खुदाई के दौरान अनेक प्रकार के शिल्प तथ्य प्राप्त होते हैं। वे इन शिल्प तथ्यों को अन्य वैज्ञानिकों की मदद से अन्वेषण व विश्लेषण करके व्याख्या करते हैं। इस कार्य में वर्तमान में प्रचलित प्रक्रियाओं, विश्वासों आदि का भी सहारा लेते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संबंध में पुरातत्वविदों के अग्रलिखित निष्कर्षों से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि वे किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं:

  1. जीवन निर्वाह का आधार कृषि: पुरावशेषों तथा पुरावनस्पतिज्ञों की मदद से पुरातत्वविद् हड़प्पा सभ्यता की जीविका निर्वाह प्रणाली के संबंध में निष्कर्ष निकालते हैं। उनके अनुसार नगरों में अन्नागारों का पाया जाना इस बात का प्रतीक है कि इस सभ्यता के लोगों के जीवन निर्वाह का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी। गेहूँ की दो किस्में पैदा की जाती थीं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन से गेहूँ और जौ प्राप्त हुए है। गुजरात में ज्वार और रागी का उत्पादन होता था। हड़प्पा सभ्यता के लोग सम्भवत: दुनिया में पहले थे जौ कपास का उत्पादन करते थे। इसके साक्ष्य मेहरगढ़,मोहनजोदड़ो, आदि स्थानों से मिले हैं।
  2. पशुपालन व शिकार: इसी प्रकार सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पूरा-प्राणिविज्ञानियों के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे। ऊँटों की हड्डियाँ बड़ी मात्रा में पाई गई है। इसके अतिरिक्त भालू ,हिरण, घड़ियाल जैसे पशुओं की हड्डियाँ भी मिली है। मछली व मुर्गे की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई है। वे हाथी, गैंडा जैसे पशुओं से भी परिचित थे।
  3. सामाजिक-आर्थिक विभिन्नताओं की पहचान: विभिन्न प्रकार की सामग्री से विभिन्न तरीकों से यह जानने की कोशिश करते हैं कि अध्ययन किए जाने वाले समाज में सामाजिक-आर्थिक विभेदन मौजूद था या नहीं। उदाहरण के लिए हड़प्पा के समाज में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भेद को जानने के लिए विधियाँ अपनाई गई हैं। शवधानों से प्राप्त सामग्री के आधार पर इस भेद का पता लगाया जाता है।
  4. शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान: हड़प्पा के शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान के लिए भी विशेष विधि अपनाई जाती है। पुरातत्वविद किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के टुकड़ों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कूड़ा-कर्कट आदि चीज़ों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है।
  5. परोक्ष तत्वों के आधार पर व्याख्या:कभी कभार पुरातत्विद् परोक्ष तथ्यों का सहारा लेकर वर्गीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ हड़प्पा स्थलों पर कपड़ो के अंश मिले हैं। तथापि कपड़ा होने के प्रमाण के लिए दूसरे स्त्रोत जैसे मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। किसी भी शिल्प को समझने के लिए पुरातत्ववेत्ता को उसके सन्दर्भ की रूप-रेखा विकसित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, हड़प्पा की मुहरों को जब तक नहीं समझा जा सका तब तक उन्हें सही संदर्भ में नहीं रख पाए। वस्तुतः इन मोहरों को उनके सांस्कृतिक अनुक्रम एवं मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना के आधार पर ही इन्हें सही अर्थों में समझा जा सका।