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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
स्पीति हिमालय प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलंध्य भूगोल यहां इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल--स्पीति का योग प्राय: ‘वायरलेस सेट’ के जरिए, जो केलंग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वारयरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसंत में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्राय: असंभव है।
1. स्पीति कहाँ स्थित है? इसका इतिहास में बहुत कम उल्लेख क्यों है?
2. अब किस क्षेत्र में सुधार हुआ है? इससे केलग के बादशाह को क्या भय लगा रहता है?
3. यहाँ के मौसम का आवागमन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की एक तहसील है। लाहुल-स्पीति का योग भी आकस्मिक ही है। यहाँ ऊँचे-ऊँचे दर्रे हैं, कठिन रास्ते हैं, अत: आना-जाना कठिन है। इसी कारण इतिहास में स्पीति का उल्लेख ‘न’ के बराबर ही हुआ है।
2. अब संचार के क्षेत्र में सुधार हुआ है। अब लाहुल-स्पीति का मेल वायरलेस सेट के जरिए हो जाता है। केलंग के राजा को यह भय लगा रहता है कि कहीं काजा क। सूबेदार उसकी आज्ञा का उल्लंघन तो नहीं कर रहा? कहीं कोई बगावत पर तो उतारू नहीं है।
3. स्पीति का मौसम बहुत ठंडा होता है। वसंत के अल्पकाल में भी 170 मील आना-जाना कठिन है। शीत ऋतु में तो यह प्राय: असंभव ही है।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
लाहुल-स्पीति का प्रशासन ब्रिटिश राज से भारत को जस का तस मिला। अंग्रेजों को यह 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाबसिंह के जरिए मिला। अंग्रेज इनके जरिए पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में प्रवेश चाहते थे। तिब्बत में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित भी थे। जो भी हो, 1846 में कुल्लु लाहुल, स्पीति ब्रिटिश अधीनता में आए। पहले सुपरिंटेंडेंट के अधीन थे। फिर 1847 में वे कांगड़ा जिले में शरीक कर दिए गए। लद्दाख मंडल के दिनों में भी स्पीति का शासन एक नोनो द्वारा चलाया जाता था। ब्रिटिश भारत में भी कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से यह नोनो कार्य करता रहा। इसका अधिकार- क्षेत्र केवल द्वितीय दरजे के मजिस्ट्रेट के बराबर था। लेकिन स्पीति के लोग इसे अपना राजा ही मानते थे। राजा नहीं है तो दमयंती जी को रानी मानते हैं।
1. लाहुल स्पीति का शासन किसको, किससे कब मिला?
2. अंग्रेज स्पीति के जरिए क्या लाभ उठाना चाहते थे? उनका कार्य कौन करता था?
3. स्पीति के लोग किसे राजा-रानी मानते थे?
1. लाहुल-स्पीति का शासन पहले तो 1846 में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से अंग्रेजों को मिला। भारत के स्वतंत्र होने पर अंग्रेजों ने इसे जैसा का तैसा भारत को सौंप दिया।
2. अंग्रेज स्पीति के जरिए पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले -क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते थे। तिब्बत में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित भी थे। इस क्षेत्र को 1847 में काँगड़ा जिले में शामिल कर लिया गया। स्पीति का शासन एक नोनो द्वारा चलाया जाता था। ब्रिटिश भारत में भी कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से यह नोनो कार्य करता रहा। इसका अधिकार क्षेत्र केवल दूसरे दर्जे कं मजिस्ट्रेट के समान था।
3. स्पीति के लोग नोनो को ही अपना राजा मानते थे। राजा के न होने पर दमयंती जी को अपनी रानी मानते थे।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इस व्यथा की कथा इन पहाड़ों की ऊँचाई के आँकडों में नहीं कही जा सकती। फिर भी जो सुंदरता को -इंच में मापने के अभ्यासी हैं वे भला पहाड़ को कैसे बख्श सकते हैं। वे यह जान लें कि स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। जिसे वे हिमालय जानते हैं-स्केटिंग, सौंदर्य प्रतियोगिता, आइसक्रीम और खोले- मठुरे का कुल्लू-मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर वह सब हिमालय नहीं है। हिमालय का तलुआ है। शिवालिक या पीरपंचाल या ऐसा ही कुछ उसका नाम है यह तलहटी है। रोहतांग जोत के पार मध्य हिमालय है। इसमें ही लाहुल-स्पीति की घाटियां हैं। इन घाटियों की औसत ऊंचाई नापी गई है। श्री कनिंघम के अनुसार लाहुल की समुद्र की सतह से ऊंचाई 10,235 फीट है। स्पीति की 12,986 फीट है। यानी लगभग 13,000 फीट तो औसत ऊंचाई है।
1. स्पीति के बारे में क्या जानना आवश्यक है?
2. क्या हिमालय नहीं है?
3. लाहुल-स्पीति की घाटियाँ कहाँ हैं? इनकी ऊँचाई क्या है?
1. स्पीति के बारे में यह जानना आवश्यक है कि पहाड़ों की व्यथा-कथा को केवल ऊँचाई के पैमाने से नहीं जाना जा सकता। सुंदरता एक अलग चीज है, इसे इंचों से नहीं मापा जा सकता। स्पीति को सुंदरता की दृष्टि से देखना होगा।
2. सामान्यत: लोग हिमालय को इस रूप में जानते हें-वहाँ स्केटिंग और सौंदर्य प्रतियोगिताएँ आयोजित होती हैं। वहाँ आइसक्रीम और छोले- भठुरे खाए जाते है। ये बातें तो कुरु-मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल और श्रीनगर में होती हैं। वास्तव में यह सब हिमालय नहीं है, हिमालय का तलुआ है।
3. स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। लाहुल-स्पीति की घाटियों की औसत ऊँचाई नापी गई है। लाहुल की ऊँचाई समुद्र की सतह से 10,535 फीट है और स्पीति की 12,986 फीट है। औसत ऊँचाई 13,000 फीट है।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मध्य हिमालय की जो श्रेणियां स्पीति को घेरे हुए हैं उनमें से जो उत्तर में हैं उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझें। बारालाचा दर्रे की ऊँचाई का अनुमान 16,221 फीट से लगाकर 16,500 फीट का लगाया गया है इस पर्वत- श्रेणी में दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। इसका क्या अर्थ है? कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर तो नहीं है? ‘ओं मणि पसे हुं’ इनका बीज मंत्र है। इसका बड़ा माहात्म्य है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम इस माने के नाम पर तो नहीं है? अगर नहीं है तो करने जैसा है। यहां इन पहाड़ियों में माने का इतना बाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों को दे डालना ही सहज हैं।
1. बारालाचा श्रेणियों के बारे में क्या बताया गया है?
2. दक्षिण की श्रेणी क्या कहलाती है?
3. लेखक को माने नाम पड़ने का क्या कारण प्रतीत होता है?
1. मध्य हिमालय की कुछ श्रेणियाँ स्पीति के चारों ओर हैं। इनमें जो उत्तर की ओर हैं, वे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार ही है। बारालाचा दर्रे की ऊँचाई का अनुमान 16,221 फीट से लेकर 16,500 फीट तक का है।
2. दक्षिण में जो पर्वत- श्रेणी है, वह माने श्रेणी कहलाती।
3. लेखक इस श्रेणी का नाम ‘माने’ रखा जाने पर विचार करता है। बौद्धों के एक मंत्र का नाम भी माने है। हो सकता है कि इस श्रेणी का नाम इसी मंत्र कै केम पर रखा गया हो। इन पहाड़ियों में माने मंत्र का बहुत अधिक जाप हुआ है, अत: यही नाम रखना उचित भी है।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मैं ऊंचाई के माप के चक्कर में नहीं हूं। न इनसे होड़ लगाने के पक्ष में हूं। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। इन ऊंचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। हां, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान है। मैं सोचता हूँ कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाडों से युवक-युवतियां आएं और पहले तो स्वयं अपने अहंकार को गलाएँ-फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें। उस आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही मामला नहीं है। ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियां किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीति का आर्तनाद जमा हुआ है। वह इस युवा अट्टहास की गरमी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है।
1. लेखक क्या नहीं चाहता और क्यों?
2. लेखक क्या चाहता है? क्या?
3. माने की चोटियों की उदासी क्यों है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है?
1. लेखक यह नहीं चाहता कि ऊँचाई के माप के चक्कर में पड़ा जाए। वह होड़ लगाने के पक्ष में भी नहीं है। इसका कारण यह है कि ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु को बुलावा देना है।
2. लेखक यह चाहता है कि देश और दुनिया के मैदानों से युवक-युवतियाँ यहाँ स्पीति में आएँ। पहले वे अपने अहंकार को गलाकर मिटाएँ, फिर इन चोटियों के अहंकार को समाप्त करें। इससे उन्हें आनंद की प्राप्ति होगी।
3. माने की चोटियों पर बूढ़े लामाओं ने मंत्र का बहुत जाप किया है जिससे यहाँ का वातावरण नीरस हो गया है, इसे दूर करना आवश्यक है।
यदि युवक-युवतियाँ यहाँ एकत्रित होकर मुक्त अट्टाहास करें तो कुछ हँसी-खुशी का वातावरण बन सकेगा। उदासी दूर होकर किलोल का महौल बन जाएगा।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
यह पावस यहां नहीं पहुंचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमालय की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं चानजानता इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएंगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि ‘बरसात में नदियां बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे- भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियां रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।’
अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि ‘अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करे’, तो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेंगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता?
1. कहाँ पावस नहीं पहुँचता? इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
2. यहाँ के लोग क्या नहीं जानते?
3. कालिदास आकर क्या कहेगे?
1. स्पीति में पावस (वर्षा) नहीं पहुँचता है। अर्थात् यहाँ वर्षा न के बराबर ही होती है। कालिदास ने जिस वर्षा की शोभा का वर्णन किया है, उसे विंध्याचल में ही देखा जा सकता है, स्पीति घाटी में नहीं। लाहुल-स्पीति के लोग वर्षा की सुंदरता को पूरी तरह से अनुभव नहीं कर पाते। वर्षा उनकी संवेदना का अंग नहीं है।
2. लाहुल-स्पीति के लोग यह नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते हैं, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे- भरे हो जाते हैं, वियोगिनी स्त्रियाँ अपने प्रियजनों के लिए रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर गुफाओं में जा छिपते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने वर्षा होने और उसके आनंद को भोगा -जाँचा नहीं है।
3. कालिदास स्पीति में आकर यह कहें-! सुंदर और गुणवती स्त्रियों के जी को खिलाने वाली वर्षा, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सहेली वर्षा, सभी जीवों की प्राण बनी वर्षा आपके मन की इच्छाओं को पूरी करे। इसे सुनकर स्पीति के लोग ऐसे देवता के बारे में पूछेंगे कि यह कौन-सा देवता है, कहाँ रहता है और आता क्यों नहीं है। अर्थात् वे वर्षा को देवता मानेंगे। उनका वास्ता ऐसे देवता से पड़ा ही नहीं है।
इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?
इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता क्योंकि यहाँ जाना आज बहुत कठिन रहा। ऊँचे दर्रों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसकी ओर ध्यान नहीं जा सका। इसमें न लाँघे जाने वाले भूगोल की भी बड़ी भूमिका रही है। वहीं का वर्णन इतिहास में मिलता है जहाँ की घटनाओं की जानकारी मिलती रहे। यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से उपेक्षित ही रहा। अत: इतिहास में इसका वर्णन नहीं मिलता।
स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?
स्पीति के लोगों को जीवन-यापन के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पहली कठिनाई तो आवागमन को लेकर ही है। दूसरी कठिनाई यहाँ लंबे समय तक ‘अत्यधिक ठंड पड़ने की है। यहाँ के लोग वर्ष में 8 -9 महीने तक शेष दुनिया से कटे रहते हैं। यहाँ लकड़ियों की भी कमी है, जिसके कारण घरों को गरम रखने में कठिनाई होती है। यहाँ व्यवसाय का भी अभाव है। बल्कि न के बराबर है। यहाँ वर्षा भी नाममात्र को होती है। फसल भी साल भर में एक ही होती है ।
लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों हैं?
स्पीति बारालाचा पर्वत श्रेणी में दो चोटियाँ हैं। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। लेखक ‘माने’ का अर्थ जानना चाहता है। उसे लगता है कि यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर है- ‘ओं मणि पक्षमें हुँ’। लेखक का कहना है कि यहाँ की पहाड़ियों में माने मंत्र का इतना जाप हुआ है कि इस श्रेणी का नाम माने मंत्र के नाम पर ही रख देना उचित है।
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से यह आग्रह किया है कि वे माने की चोटियों के मध्य किलोल करें तो यहाँ की नीरसता में सरसता का संचार हो सके। बूढ़े लामा मंत्र का जाप चुपचाप करते रहते हैं। जिससे यहाँ उदासी छाई रहती है। युवक-युवतियों की मुक्त हँसी से यहाँ के वातावरण में ताजगी तथा उत्साह का संचार होगा। इस प्रकार लेखक ने युवा वर्ग से यहाँ आने का आग्रह किया है।
लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि यहाँ वर्षा बहुत कम होती है, बल्कि कभी-कभी ही होती है। वर्षा ऋतु यहाँ मन की साध पूरी नहीं करती। वर्षा के अभाव में यहाँ की धरती सूखी, ठंडी और बंजर रहती है।
यहाँ वर्षा का होना एक घटना की तरह माना जाता है। इसे सुखद संयोग की तरह देखा जाता है। वर्षा को देखकर स्पीति के लोग विशेष प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। वर्षा उनके लिए बहुत शुभ होती है।
स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से किस प्रकार भिन्न है?
स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से इस मायने में भिन्न है कि यहाँ के पहाड़ लाहुल से ज्यादा ऊँचे, नंगे और भव्य हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों की दर्द- भरी आवाज जमा है। यहाँ शिव का अट्टहास नहीं, हिम का आर्तनाद है। यहाँ ठिठुरन और गलन ज्यादा है। स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। यहाँ अन्य पर्वतीय स्थलों के समान स्केटिंग, सौंदर्य प्रतियोगिता, आइसक्रीम, छोले- भठूरे आदि नहीं हैं। रोहतांग जीत के पार जो मध्य हिमालय है, उसमें लाहुल-स्पीति की घाटियाँ हैं।
स्पीति में बारिश का वर्णन एक अलग तरीके से किया गया है। आप अपने यहाँ होने वाली बारिश का वर्णन कीजिए।
हमारे यहाँ वर्षा प्राय: जून-जुलाई के महीनों में होती है। जून के अंतिम सप्ताह में मानसून आ जाता है और जुलाई-अगस्त में तेज वर्षा होती है। तब जून की तपती गर्मी से राहत मिल जाती है और धरती की प्यास भी बुझ जाती है। वर्षा का आगमन आनंद का कारण होता है। पावस ऋतु में प्राकृतिक वातावरण अत्यंत सुहावना हो जाता है, बागों में मोर नाचने लगते हैं और कोयल का मीठा स्वर सुनाई पड़ने लगता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है।
कभी-कभी शरद् ऋतु में भी वर्षा होती है। जनवरी में होने वाली वर्षा फसल के लिए भी बहुत उपयोगी होती है तथा बीमारियों से छुटकारा दिलाती है।
स्पीति के लोगों और मैदानी भागों में रहने वाले लोगों के जीवन की तुलना कीजिए। किन का जीवन आपको ज्यादा अच्छा लगता है और क्यों?
स्पीति के लोगों का जीवन मैदानी लोगों के जीवन की तुलना में अधिक कष्टदायक है। स्पीति में 8-9 महीने भयंकर ठंड पड़ती है जबकि मैदानी भागों में दो-तीन महीने ही सहनीय ठंड पड़ती है। स्पीति में वर्षा बहुत कम होती है जबकि मैदानी भागों में पर्याप्त वर्षा होती है।
स्पीति के लोगों का जीवन अभावों एवं कष्टों में बीतता है। वहाँ रोजगार के अवसर भी बहुत कम हैं जबकि मैदानी भागों में ऐसी स्थिति नहीं है। मैदानी भागों में सभी चीजें उपलब्ध हैं।
स्पीति में आवागमन के साधन भी अत्यंत सीमित हैं। हमें मैदानी भागों का जीवन ज्यादा अच्छा लगता है, क्योंकि यहाँ का जीवन सुचारु गति से चलता है। यहाँ सभी चीजें उपलब्ध हैं।
मेरी अविस्मरणीय यात्रा
पर्वतों पर जाने को मेरा मन ललकत। रहता है। इस ग्रीष्मावकाश में हमारे परिवार ने कश्मीर यात्रा का कार्यक्रम बनाया। रात -को नौ बजे दिल्ली जंक्शन से हम कश्मीर मेल में सवार हुए। गाड़ी खचाखच भरी हुई थी। हमने सीट आरक्षित करवा रखी थी। अत: कोई कष्ट न हुआ। हम अगले दिन जम्मू पहुँच गए।
प्रात:काल हमने चाय पीने के बाद अपने बिस्तर कस लिये। टैक्सी में सामान रखकर हम बैठ गए और बस अड्डे की ओर बढे। बस अड्डा पहुँचकर हम बस में सवार हुए और बस चल पड़ी। बस में बैठे हुए पर्वतों का मनोहर दृश्य दिखाई दे रहा था, स्वर्गभूमि कश्मीर पहुँचने के लिए हम लालायित थे। हमारे हृदय में प्रसन्नता की लहरें ठाठें मार रही थीं। हमारी बस रात को एक स्थान पर ठहरी; सवेरे बस फिर श्रीनगर की ओर बढ़ी।
श्रीनगर पहुँचने पर हमें लगा कि हम वास्तव में स्वर्ग के एक कोने में पहुँच गए हैं। मुझे श्रीधर पाठक की वह कविता रह-रहकर स्मरण हो आती थी, जिसमें उन्होंने कश्मीर की सुषमा का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया है। श्रीनगर में हम नाव पर सवार होकर बद्रिकाश्रम में ठहरे। यहाँ अनेक प्रदेशों के लोग ठहरे हुए थे-कहीं पंजाबी युवती गर्व से उन्नत मस्तक किए, कहीं उत्तर प्रदेश की प्राचीन घूँघट काई, कहीं कोई महाराष्ट्रीयन सज्जन शिखा धारण किए, कहीं चंचल युवतियाँ और शरारती नवयुवक।
कश्मीर में वास्तविक जीवन का परिचय तो हमें हाउसबोट में ही आकर मिला। नीले आकाश की छाया से नील वर्ण हुए झेलम के जल में तैरते हुए वे रंग-बिरंगे जलयान (जिन्हें हाउसबोट कहा जाता है) वर्षा में घुले आकाश में इंद्रधनुष की स्मृति दिलाते थे।
हम जिस हाउसबोट में ठहरे, उसमें सब सुख-साधनों से युक्त दो शयनागार, एक स्नानागार तथा एक भोजनालय था। हमारा माझी सुलाना, उसकी पत्नी तथा उसके दो बच्चे फूल की तरह खिले हुए चेहरे वाले भले प्रतीत हुए।
कश्मीर में हजारों प्रकार के फूल खिलते हैं। उनमें मजारपोश तथा लालपोश बहुत ही प्रिय दिखाई देते हैं। चारों ओर ऊँचे पहाड़ खड़े हैं और बीच में मैदान हैं, जिसमें श्रीनगर बसा हुआ है। इसके बीचों-बीच झेलम (जेहलम) नदी बहती है, जिस पर से जाने लिए कई पुल बने हुए हैं।
कश्मीर के बालकों की आँखें मजारपोश जैसी, होठ लालपोश जैसे और रंग बर्फ जैसा है। सामने आते ही वे ‘सलाम जनाब पासा’ कहकर अभिवादन करते हैं। कश्मीरी स्त्रियाँ भी हँसती-हँसती मिलती हैं। कश्मीर में सफाई की कमी है। छोटे-छोटे घर हैं, परंतु चित्रलिखित जैसे हैं।
कश्मीर में हमने शालीमार बाग और निशात बाग देखने का आनंद भी लिया। शालीमार के चिनार के पेड़, ऊँचे उठते फव्वारे, मखमल जैसी घास के ढके ‘लान’ एक समाँ बाँध रहे थे। डल झील के दूसरी ओर निशात बाग है। डल झील में शिकारे में बैठकर हमने वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद लिया। झील में विहार करने के पश्चात् हमने निशात बाग की सैर की। यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं पर है। यहाँ अनेक फलों के वृक्ष थे। बाग के बीचों-बीच नहर बह रही थी। यह एक अनोखा दृश्य था।
एक सप्ताह की यात्रा कब समाप्त हो गई, इसका कुछ पता ही नहीं चला। वहाँ से लौटना भला किसे अच्छा लगता है, पर समय की विवशता थी। हम बस द्वारा पहले जम्मु आए और वहाँ से रेलगाड़ी में बैठकर दिल्ली आ गए।
लेखक ने स्पीति की यात्रा लगभग तीस वर्ष पहले की थी। इन तीस वर्षो में क्या स्पीति में कुछ परिवर्तन आया है? जानें, सोचें और लिखें।
लेखक ने स्पीति की यात्रा लगभग 30 वर्ष पूर्व की थी। अब वहाँ की स्थिति में काफी परिवर्तन आया है। अब वहाँ जाना-आना सुगम हो गया है। संचार के साधन भी पर्याप्त विकसित हो गए हैं। हाँ, प्राकृतिक वातावरण तो अब भी वैसा ही है। सरकार का ध्यान इस क्षेत्र के विकास की ओर अवश्य गया है।
पाठ में से दिए गए अनुच्छेद में क्योंकि, और बल्कि, जैसे ही-वैसे ही, मानो, ऐसे, शब्दों का प्रयोग करते हुए उसे दोबारा लिखिए-
लैंप की ली तेज की। खिड़की का एक पल्ला खोला तो तेज हवा का झोंका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। मैने पल्ला भिड़ा दिया। उसकी आड़ से देखने लगा। देखा कि बारिश हो रही थी। मैं उसे देख नहीं रहा था, सुन रहा था। अंधेरा, ठंड और हवा का झोंका आ रहा था। जैसे बर्फ का अंश लिए तुषार जैसी बूंदें पड़ रही थीं।
जैसे ही लैंप की ली तेज की और खिड़की का एक पल्ला खोला वैसे ही तेज हवा का झोंका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। मैंने पल्ला भिड़ा दिया और उसकी आड़ से देखने लगा। ऐसे देखा कि बारिश हो रही थी। मैं उसे देख नहीं रहा था बल्कि सुन रहा था, क्योंकि अँधेरा, ठंड और हवा का झोंका आ रहा था, मानो बर्फ का अंश लिए तुषार जैसी बूँदें पड़ रही थीं।
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स्पीति में कितनी और कौन-कौन सी ऋतुएं होती हैं? इन ऋतुओं में तापमान कितना रहता है?
लाहुल की तरह ही स्पीति में भी दो ही ऋतुएँ होती हैं-वसंत और शीत ऋतु। यहाँ जून से सिंतबर तक की एक अल्पकालिक वसंत ऋतु है, शेष वर्ष शीत ऋतु होती है। वसंत में, जुलाई में औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड और शीत में, जनवरी में औसत तापमान 8 डिग्री रिकॉर्ड किया गया है। औसत से कुछ अंदाज नहीं लगता। वसंत में दिन गरम होता है। रात ठंडी होती है शीत में क्या होता है? इसकी कल्पना ही की जा सकती है। कभी रहकर देखा जा सकता है।
स्पीति में वर्षा की क्या स्थिति है? यहां की धरती कैसी रहती है?
स्पीति में कभी-कभी बारिश होती है। वर्षा ऋतु यहाँ मन की साध पूरी नहीं करती। धरती सूखी, ठंडी और वंध्या रहती है।
स्पीति में वसंत कैसा होता है? यहाँ बर्फ पड़ने पर कैसा मौसम रहता है?
स्पीति में वसंत लाहुल से भी कम दिनों का होता है। वसंत में भी यहाँ फूल नहीं खिलते, न हरियाली आती है, न वह गंध होती है। दिसंबर से घाटी में फिर बर्फ पड़ने लगती है। जो अप्रैल-मई तक रहती है। यहाँ ठंडक भी लाहुल से ज्यादा पड़ती है। नदी-नाले सब जम जाते हैं और हवाएँ तेज चलती हैं। मुँह, हाथ और जो खुले अंग हैं, उनमें जैसे शूल की तरह चुभती है।
स्पीति में वर्षा क्यों होती है? कालिदास का वर्षा-वर्णन किस प्रकार शुरू होता है?
स्पीति में लाहुल से भी कम वर्षा होती है। स्पीति मध्य हिमालय में है और मध्य हिमालय मानसून की पहुँच के परे है। यहाँ बरखा बहार नहीं है। कालिदास को अपने ‘ऋतु संहार’ में यहाँ वर्षा का तो संहार ही करना पड़ेगा। कालिदास में वर्षा का क्या ठाठ है? यह वर्षा-वर्णन इस प्रकार शुरू होता है-
‘प्रिये! जल की फुहारों से भरे बादलों के मतवाले हाथी पर चढ़ा हुआ, चमकती हुई बिजलियों की झंडियों को फहराता हुआ और बादलों की गरज के नगाड़े बजाता हुआ, यह कामीजनों का प्रिय पावस राजाओं का-सा ठाट-बाट बनाकर आ पहुँचा।’
लाहुल-स्पीति को 1873 में क्या दरजा दिया गया है? इसकी क्या विशेषता थी? स्वराज्य के बाद स्थिति में क्या परिवर्तन आया?
1873 में स्पीति रेगुलेशन पास हुआ, जिसके तहत लाहुल और स्पीति को विशेष दरजा दिया गया। ब्रिटिश भारत के अन्य कानून यहाँ नहीं लागू होते थे। रेगुलेशन के अधीन प्रशासन के अधिकार नोनो को दिए गए, जिसमें मालगुजारी इकट्ठा करना और छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का फैसला करना भी शामिल था। इसके ऊपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था। उन दिनों लाहुल--स्पीति का वृत्तांत काँगड़ा जिले के अंतर्गत कुल्लू तहसील में मिलता है। स्वराज्य के बाद 1960 में लाहुल-स्पीति पंजाब राज्य के अंतर्गत एक अलग जिला बना दिया गया, जिसका केंद्र केलंग में है। 1966 में जब हिमाचल प्रदेश राज्य बना तो लाहुल-स्पीति उसका उत्तरी छोर का जिला हो गया। वह देश का सबसे अधिक दुर्गम क्षेत्र है।
स्पीति की अत्यधिक कम आबादी को देखकर लेखक को आश्चर्य क्यों होता है?
लेखक को अचरज इससे नहीं कि यहाँ इतने कम लोग क्यों हैं? अचरज यह है कि इतने लोग भी कैसे बसे हुए हैं? लेखक ने जब भी स्पीति की विपत्ति बताई है तो लोगों ने यही पूछा कि आखिर तब लोग वहाँ रहते क्यों हैं? आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। ठंड में ठिठुर रहे हैं। सिर्फ एक फसल उगाते हैं। लकड़ी भी नहीं है कि घर गरम रख सकें। वृत्ति नहीं है। फिर क्यों रहते हैं? क्या अपने धर्म की रक्षा के लिए रहते हैं? अपनी जन्मभूमि के ममत्व के कारण रहते हैं? .मा इस मजबूरी में रहते हैं कि कहीं और जा नहीं सकते? कहाँ जाएँ? या फिर और बातों के साथ-साथ यह सब कारण हैं? लेखक नहीं जानता। वह तो इतना ही देखता है कि यहाँ रह रहे हैं।
प्राचीनकाल में स्पीति किसका अंग रहा? इसकी रक्षा और संहार कौन करता है?
प्राचीनकाल में स्पीति भारतीय साम्राज्यों का अंग रहा है। जब ये साम्राज्य टूटे तो वह स्वतंत्र रहा हैं। फिर मध्य युग में प्राय: लद्दाख मंडल और कभी कश्मीर मंडल कभी बुशहर मंडल, कभी कुल्लू मंडल, कभी ब्रिटिश भारत के तहत रही है। तब भी यह प्राय: स्वायत्त रही है। इसकी स्वायत्तता भूगोल ने सिरजी है। भूगोल ही इसकी रक्षा करता है। भूगोल ही इसका संहार भी करता है।
स्पीति में कितनी फसल होती हैं? यहां की मुख्य फसलों पर प्रकाश डालिए। यहाँ सिंचाई की क्या स्थिति है?
स्पीति में साल में एक फसल होती है। मुख्य फसलें हैं-दो किस्म का जी, गेहूँ मटर और सरसों। इसमें भी जी मुख्य है। सिंचाई का साधन पहाड़ों से आ रहे नाले हैं या उन पर बनाए कुल हैं। ये नालियाँ पहाड़ों के किनारे-किनारे बहुत दूर तक जाती हैं। स्पीति नदी का तट इतना चौड़ा है कि इसका पानी किसी काम में नहीं आ पाता। स्पीति में ऐसी भूमि बहुत है जो खेती के लायक बनाई जा सकती है। शर्त इतनी है कि इसके लिए स्पीति में जल उलीचा जाए। या फिर पानी का कोई और स्रोत पहुँचाया जाए। स्पीति में कोई फल नहीं होता। मटर और सरसों को छोड्कर कोई सब्जी नहीं होती। शायद ऊँचाई, वायुमंडल के दबाव में कमी, ठंड की अधिकता, वर्षा की कमी आदि के कारण यहाँ पेड़ नहीं होते। इसलिए स्पीति विशेषकर नंगी और वीरान है।
कृष्णनाथ के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनका साहित्यिक परिचय दीजिए।
साहित्यकार कृष्णनाथ का जन्म 1934 ई. में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ।
उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उनका झुकाव समाजवादी आदोलन और बौद्ध-दर्शन की ओर हो गया। वे समाजवादी आदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं तथा लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण के साथ काफी समय बिताया। बौद्ध-दर्शन में उनकी गहरी पैठ है। वे अर्थशास्त्र के विद्ववान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफेसर भी रहे। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं पर उनका अधिकार है और दोनों की पत्रकारिता से भी उनका जुड़ाव रहा। हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संपादक-मंडल में वे कई साल रहे और अंग्रेजी के मैनकाइंड का कुछ वर्षों तक संपादन भी किया। राजनीति, पत्रकारिता और अध्यापन को प्रक्रिया से गुजरते-गुजरते वै बौद्ध-दर्शन की ओर मुड़े। भारतीय और तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर उन्होंने नागार्जुन के दर्शन और वज्रयानी परंपरा का अध्ययन शुरू किया। भारतीय चिंतक जे. कृष्णामूर्ति ने जब बौद्ध विद्वानों के साथ चिंतन-मनन शुरू किया तो कृष्णनाथ भी उसमें शामिल शे बौद्ध-दर्शन पर कृष्णनाथ जी ने काफी कुछ लिखा है।
कृष्णनाथ ने हिमालय की यात्रा के दौरान उन स्थानों को खोजा, जिनका संबंध बौद्ध-दर्शन और भारतीय मिथकों से है। यहीं उनकी यात्रा--वृत्तांत की अनूठी विधा चमककर सामने आई। वे केवल पर्यटक की तरह यात्रा नहीं करते, बल्कि तत्त्ववेत्ता की तरह वहाँ का अध्ययन करते चलते हैं। वे उस स्थान से जुड़ी समस्त स्मृतियों को उघाड़कर सामने लाते हैं। उनके यात्रा-वृत्तांतों में नवीनता है। प्रमुख रचनाएँ- लद्दाख में राग-विराग? किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी-परिक्रमा, हिमालय यात्रा, अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली, हिन्दी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का संपादन।
सम्मान-लोहिया सम्मान।
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