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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
लंबे बेंटवाले हँसुवे को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाडियों को काट-छांटकर साफ कर आएगा। बूढ़े वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर-संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहां कर पाते हैं! यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उन पर श्रद्धा रखते हैं, लेकिन बुढ़ापे का जर्जर शरीर अब उतना कठिन श्रम और व्रत-उपवास नहीं झेल पाता। सुबह-सुबह जैसे उससे सहारा पाने की नीयत से ही उन्होंने गहरा नि नि:श्वास लेकर कहा था- ‘आज गणनाथ जाकर चंद्रदत्त जी के लिए रुद्रीपाठ करना था, अब मुश्किल ही लग रहा है। यह दो मील की सीधी चढ़ाई अब अपने बूते की नहीं। एकाएक ना भी नहीं कहा जा सकता, कुछ समझ में नहीं आता!’
1. कौन, किस उद्देश्य से निकला था?
2. बूढ़े वंशीधर कौन हैं? उन्होंने अब तक क्या काम किया है?
3. उन्होंने गहरा निःश्वास छोड़ते हुए क्या कहा? यह उन्होंने किस नीयत से कहा था?
1. वंशीधर का बेटा मोहन एक लंबे बेंटवाले हँसुए को हाथ में लेकर इस उद्देश्य से घर से निकला था कि वह अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट -छाँटकर साफ कर आएगा। अब उसके पिता के लिए यह काम करना संभव नहीं रह गया था।
2. बूढ़े वंशीधर मोहन के पिता हैं। वे पुरोहिताई का काम करते हैं। इसी काम के बलबूते पर उन्होंने जीवन- भर घर-संसार चलाया। यजमान उन पर निष्ठा और श्रद्धा रखते हैं। पर अब उनका शरीर बूढ़ा और कमजोर हो गया है। अब वे कठिन श्रम और व्रत-उपन्यास नहीं झेल पाते।
3. वंशीधर ने कहा कि आज उन्हें गणनाथ जाकर चंद्रदत्त जी के लिए रुद्रीपाठ करने जाना था, पर वे बुढापे के कारण वहाँ जा नहीं पा रहे हैं और मना करना भी संभव नहीं। वे क्या करें? उन्होंने यह इस नीयत से कहा ताकि महन का सहारा उन्हें मिल जाए।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
‘पकड़ इसका कान, और लगवा इससे दस उठक-बैठक’, वे आदेश दे देते। धनराम भी उन अनेक छात्रों में से एक था जिसने त्रिलोक सिंह मास्टर के आदेश पर अपने हमजोली मोहन के हाथों कई बार बेंत खाए थे या कान खिंचवाए थे। मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईर्ष्या रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। इसका एक कारण शायद यह था कि बचपन से ही मन में बैठा दी गई जातिगत हीनता के कारण घनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा बल्कि वह इसे मोहन का अधिकार ही समझता रहा था। बीच-बीच में त्रिलोक सिंह मास्टर का यह कहना कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उसका नाम ऊँचा करेगा, घनराम के लिए किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही नहीं रखता था।
1. कौन, किसको, क्या आदेश देते?
2. इस गद्याशं में किसके, किससे मार खाने का उल्लेख है?
3. धनराम मोहन के बारे में क्या सोचता था और क्यों?
1. मास्टर त्रिलोकसिंह अपने शिष्य मोहन को शरारती अथवा पढ़ाई का काम न करने वाले छात्रों को सजा देने का आदेश देते थे। वे मोहन से ही कहते कि अमुक छात्र के कान पकड़े और दस उठक-बैठक लगवाए। मास्टर साहब के आदेश पर मोहन के उससे अनेक साथियों ने उसके हाथों कई बार बेंत भी खाए थे और कान भी खिंचवाए थे।
2. इस गद्यांश में मोहन के हाथों कई बार मार खाने के संदर्भ में घनराम का उल्लेख है। इसके बावजूद उसके मन में मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईर्ष्या रहने के बावजूद उसके प्रति स्नेह और आदर का अभाव रहता था। इसका कारण यह भी था कि उसके मन में जातिगत हीनता की भावना बिठा दी गई थी ।
3. घनराम मोहन के बारे में अच्छी भावना रखता था। उसने मोहन को कभी अपना प्रतिद्वंद्वी समझा ही नहीं। वह मोहन के अधिकार को स्वीकारता था। चुँकि मोहन मास्टर त्रिलोकसिंह का प्रिय शिष्य था तथा वे उसके बड़ा आदमी बनने की आशा रखते थे। अत: घनराम के लिए मोहन के बारे में और कुछ सोचने का अवकाश ही न था। वह भी मानने लगा था कि मोहन भविष्य में एक बड़ा आदमी बनेगा।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
धनराम की मंद बुद्धि रही हो या मन में बैठा हुआ डर कि पूरे दिन घोटा लगाने पर भी उसे तेरह का पहाड़ा याद नहीं हो पाया था। छुट्टी के समय जब मास्साब ने उससे दुबारा पहाड़ा सुनाने को कहा तो तीसरी सीडी तक पहुंचते-पहुंचते वह फिर लड़खड़ा गया था। लेकिन इस बार मास्टर त्रिलोकसिंह ने उसके लाए हुए बेंत का उपयोग करने की बजाय जबान की चाबुक लगा दी थी, ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ अपने थैले से पांच-छह दरातियाँ निकालकर उन्होंने घनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी थीं। किअबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की नहीं थी। घनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ ही था कि बाप ने उसे धौंकनी या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर धीरे- धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सीखने लगा।
1. धनराम क्या याद नहीं कर सका और क्यों?
2. मास्टर त्रिलोकसिह ने घनराम को क्या सजा दी?
3. धनराम ने कौन-सी विद्या सीखी?
1. मास्टर त्रिलोकसिंह ने धनराम को तेरह का पहाड़ा याद करने को कहा। घनराम ने पूरे दिन इसे याद करने का प्रयास किया, पर वह याद न कर सका। इसके दो कारण हो सकते हैं-
(i) घनराम मंदबुद्धि था, अत: उसे पहाड़ा याद नहीं हुआ,
(ii) उसके मन में डर बैठा हुआ था।
2. मास्टर त्रिलोकसिंह प्राय: बेंत लगाने की सजा देते थे। पर इस बार उन्होंने बेंत का प्रयोग नहीं किया। इस बार उन्होंने बेंत के स्थान पर जबान की चाबुक का प्रयोग किया। उन्होंने धनराम को अपमानित करते हुए कहा कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है, इसमें विद्या का ताप कहाँ से लगेगा?’
अर्थात तू पड़ नहीं सकता, केवल लोहे का काम ही कर सकता है।
3. धनराम के हाथ-पैर चलाने लायक होते ही उसके पिता ने उसे भट्टी पर धौंकनी फूँकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया। वह इन कामों को करना सीख भी गया। फिर धीरे- धीरे वह हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सीखने लगा। इस प्रकार उसने लोहे का काम करने की विद्या सीखी।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
प्राइमरी स्कूल की सीमा लांघते ही मोहन ने छात्रवृत्ति प्राप्त कर त्रिलोसिंह मास्टर की भविष्यवाणी को किसी हद तक सिद्ध कर दिया तो साधारण हैसियत वाले यजमानों की पुरोहिताई करने वाले वंशीधर तिवारी का हौसला बढ़ गया और वे भी अपने पुत्र को पड़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का स्वप्न देखने लगे। पीढ़ियों से चले आते पैतृक धंधे ने उन्हें निराश कर दिया था। दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे। मोहन पद्य-लिखकर वंश का दारिद्रय मिटा दे, यह उनकी हार्दिक इच्छा थी । लेकिन इच्छा होने भर से ही सब-कुछ नहीं हो जाता।
1. मास्टर त्रिलोसिहं की किस भविष्यवाणी को मोहन ने सच सिद्ध कर दिया और कैसे?
2. किसका और क्यों हौसला बढ़ गया?
3. उनकी क्या इच्छा थी?
1. मास्टर त्रिलोकसिंह ने मोहन के बारे में यह भविष्यवाणी की थी कि वह आगे चलकर एक बड़ा आदमी बनेगा और अपने स्कूल का नाम ऊँचा करेगा। जब मोहन ने प्राइमरी स्कूल की सीमा लाँघते ही छात्रवृत्ति प्राप्त कर ली तब उनकी यह भविष्यवाणी सच सिद्ध हो गई। अब यह लगने लगा कि निश्चय ही मोहन का भविष्य उज्ज्वल है ।
2. मोहन के पिता पंडित वंशीधर तिवारी यजमानों की पुरोहिताई का काम करते थे। जब मोहन को मेधावी छात्रवृत्ति मिली तो वंशीधर का हौसला बढ़ गया। अब वे भी अपने पुत्र को पड़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने के सपने देखने लगे। पैञृक धंधे से उन्हें कोई विशेष लाभ न था।
3. पंडित वंशीधर तिवारी की यह इच्छा थी कि उनका बेटा मोहन खूब पढ़-लिखकर खानदान की गरीबी का कलंक मिटा दे। अब वे दान-दक्षिणा के बलबूते घर परिवार का पालन-पोषण करने में असमर्थ हो गए थे। अब उनकी निगाहें पुत्र मोहन पर ही टिकी थीं।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वर्षा के दिनों में नदी पार करने की कठिनाई को देखते हुए वंशीधर ने नदी पर के गाँव में एक यजमान के घर पर मोहन का डेरा तय कर दिया था। घर के अन्य बच्चों की तरह मोहन खा-पीकर स्कूल जाता और छुट्टियों में नदी उतार पर होने पर गांव लौट आता था। संयोग की बात, एक बार छुट्टी के पहले दिन जब नदी का पानी उतार पर ही था और मोहन कुछ घसियारों के साथ नदी पार कर घर आ रहा था तो पहाड़ी के दूसरी और भारी वर्षा होने के कारण अचानक नदी का पानी बढ़ गया। पहले नदी की धारा में झाड़-झंखाड़ और पात-पतेल आने शुरू हुए तो अनुभवी घसियारों ने तेजी से पानी को काटकर आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन किनारे पहुँचते-न-पहुँचते मटमैले पानी का रेल। उन तक आ ही पहुंचा। वे लोग किसी प्रकार सकुशल इस पार पहुंचने में सफल हो सके। इस घटना के बाद वंशीधर घबरा गए और बच्चे के भविष्य को लेकर चिन्तित रहने लगे।
1. वंशीधर ने कहाँ किसका डेरा डाला और क्यों?
2. एक दिन क्या घटना घटी?
3. एक दिन क्या घटना घटी?
1. पंडित वंशीधर ने नदी पार के एक गाँव में एक यजमान के घर अपने पुत्र मोहन का डेरा डाल दिया। मोहन पढ़ने के लिए दूर स्कूल में जाता था। वर्षा के दिनों में नदी पार करने में कठिनाई होती थी। यहाँ रहने से मोहन को सुविधा होती थी। वह घर के अन्य बच्चों की तरह खा-पीकर स्कूल चला जाता था और छुट्टियों में नदी में उतार होने पर गाँव लौट आता था।
2. एक बार ऐसा हुआ कि पहले दिन तो नदी का पानी उतार पर था और मोहन कुछ घसियारों के साथ नदी पार कर घर आ रहा था, तो पहाड़ी के दूसरी ओर भारी वर्षा के कारण नदी में पानी बढ़ गया। अब खतरा उत्पन्न हो गया। घसियारों ने तेजी से पानी को काटकर आगे बढ़ने की बहुत कोशिश की पर मटमैले पानी का रेला उन तक पहुँच ही गया। पर वे किसी प्रकार सकुशल घर पहुँचने में कामयाब हो गए।
3. नदी में आई मुसीबत को देखकर पंडित वंशीधर बहुत घबरा गए। उन्हें अपने बेटे मोहन के भविष्य को लेकर चिंता होने लगी कि कहीं कभी उनका बेटा किसी दुर्घटना का शिकार न हो जाए।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
आठवीं. कक्षा की पढ़ाई समाप्त कर छुट्टियों में मोहन गांव आया हुआ था। जब वह लौटकर लखनऊ पहुंचा तो उसने अनुभव किया कि रमेश के परिवार के सभी लोग जैसे उसकी आगे की पड़ाई के पक्ष में नहीं हैं। बात घूम-फिरकर जिस ओर से उठती वह इसी मुद्दे पर थरूर खत्म हो जाती कि हजारों-लाखों बीए., एमए मारे-मारे बेकार फिर रहे हैं। ऐसी पढ़ाई से अच्छा तो आदमी कोई हाथ का काम सीख ले। रमेश ने अपने किसी परिचित के प्रभाव से उसे एक तकनीकी स्कूल में भर्ती कर। दिया। मोहन की दिनचर्या में कोई विशेष अंतर नहीं आया था। वह पहले की तरह स्कूल और घरेलू कामकाज में व्यस्त रहता। धीरे- धीरे डेढ़-दो वर्ष का यह समय भी बीत गया और मोहन अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कारखानों ‘और फैक्टरियों के चक्कर लगाने लगा।
1. मोहन ने लखनऊ लौटकर क्या अनुभव किया?
2. मोहन को कहाँ दाखिल कराया गया?
3. मोहन की स्थिति क्या हो गई?
1. आठवीं कहना की पढ़ाई खत्म करके मोहन गाँव गया। जब वहाँ से लौटकर वह पुन: लखनऊ आया तो मोहन ने अनुभव किया कि अब रमेश के परिवार के लोग उसे आगे पड़ाने में रुचि नहीं रखते। उनका तर्क था कि हजारों पढ़े-लिखे लड़के बेरोजगारी के शिकार हैं। बीए एमए- करना व्यर्थ है। हाथ का काम सीखने से आदमी कोई-न-कोई काम- धंधा कर रोटी-रोजी कमा सकता है।
2. रमेश के एक परिचित का एक तकनीकी स्कूल था। मोहन को उसी के स्कूल में भर्ती करा दिया गया। वह वहाँ कोई काम सीखने लगा। अब वह उस स्कूल और घरेलू कामकाज में व्यस्त रहने लगा।
3. मोहन ने उस तकनीकी स्कूल में भी डेढ़-दो वर्ष की ट्रेनिंग पूरी कर ली। वह समय बीत गया। अब उसे अपने पैरों पर खड़ा होना था। नौकरी के लिए वह कारखानों और फैक्टरियों के चक्कर लगाने लगा, पर कहीं उसे काम नहीं मिला।
कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
जब घनराम को तेरह का पहाड़ा याद नहीं हुआ तो मास्टर त्रिलोकसिंह ने अपने थैले से 5 -6 दरातियाँ निकालकर धार लगाने के लिए उसे पकड़ा दीं। उनका सोचना था कि किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता में नहीं है।
जब धनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ तभी उसके पिता ने उसे घन चलाने की विद्या सिखानी शुरू कर दी। धीरे- धीरे धनराम धौंकनी हंसने, सान लगाने के काम से आगे बढ्कर घन चलाने की विद्या में कुशल होता चला गया।
इसी प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है ।
घनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?
धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी इसलिए नहीं समझता था क्योंकि वह जानता था कि मोहन एक बुद्धिमान लड़का है। वह मास्टर जी के कहने पर ही उसको सजा देता था। धनराम मोहन के प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। शायद इसका एक कारण यह था कि बचपन से ही उसके मन में जातिगत हीनता की भावना बिठा दी गई थी। धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा, बल्कि इसे वह मोहन का अधिकार समझता रहा था। उसके लिए मोहन के बारे में किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही न थी।
मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय इसलिए कहा है, क्योंकि इसके बाद उसका जीवन’ एक बँधी-बँधाई लीक पर चलने लगा। उसकी कुशाग्र बुद्धि जैसे कुंठित हो गई। उसे एक साधारण से स्कूल में भर्ती करा दिया गया था। उसे सारे दिन मेहनत के काम करने पड़ते थे। जिस बालक के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना की जा रही थी, वही घरेलू कामकाज में उलझकर रह गया। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कारखानों और फैक्ट्ररियों के चक्कर लगाने पड़े। उसे कोई काम नहीं मिल
मास्टर त्रिलोकसिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों?
जब मास्टर त्रिलोकसिंह ने धनराम को तेरह का पहाड़ा याद करके सुनाने के लिए कहा और धनराम को यह पहाड़ा याद नहीं हो पाया तब वह मास्टरजी की सजा का हकदार हो गया। इस बार मास्टरजी ने सजा देने के लिए बेंत का उपयोग नहीं किया, बल्कि फटकारते हुए जबान की चाबुक लगा दी। उनका कथन था- ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें।’ वे यह जताना चाहते थे कि पढ़ना-लिखना धनराम के वश की बात नहीं है। वह तो लोहे का काम ही कर सकता है।
क. किसने किससे कहा?
ख. किस प्रसंग में कहा?
ग. किस आशय से कहा?
घ. क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?
(क) यह मोहन के पिता वंशीधर ने युवक रमेश से कहा।
(ख) यह उस प्रसंग में कहा गया जब रमेश ने मोहन को अपने साथ लखनऊ ले जाकर पढ़ाई कराने के लिए स्वयं को प्रस्तुत किया।
(ग) यह कथन रमेश के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए कहा गया।
(घ) नहीं, कहानी में यह आशय स्पष्ट नहीं हुआ है। रमेश ने मोहन को सहारा देने के स्थान पर एक घरेलू नौकर बना दिया।
क. किसके लिए कहा गया है?
ख. किस प्रसंग में कहा गया है?
ग. यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?
(क) यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।
(ख) जब मोहन ने भट्टी पर बैठकर लोहा गलाने तथा उसे त्रुटिहीन गोलाई में ढालकर सुडौल बना दिया तब उसकी आँखों में सर्जकबनाने वाले की चमक थी।
(ग) यह मोहन के चरित्र की इस विशेषता को उजागर करता है कि वह परिश्रम से जी चुराने वाला नहीं था। वह जाति को किसी व्यवसाय से नहीं जोड़ता था।
गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है? चर्चा करें और लिखें।
गाँव में मोहन का जीवन-संघर्ष केवल अच्छी शिक्षा पाने के लिए था। गाँव के स्कूल में वह एक प्रतिभावान् छात्र समझा जाता था। स्कूल और गाँव में उसका सम्मान था। सभी उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते थे।
शहर आकर वह पढ़ाई में निरंतर पिछड़ता चला गया। इसके दो कारण थे-
1 उसे किसी अच्छे स्कूल में भर्ती नहीं कराया गया था।
2. उसे घरेलू कामों में उलझाकर एक घरेलू नौकर बना दिया गया था। अब उसे काम पाने वेन लिए संघर्ष करना पड़ रहा था।
एक अध्यापक के रूप में त्रिलोकसिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।
एक अध्यापक के रूप में मास्टर त्रिलोकसिंह का व्यक्तित्व हमें ठीक-ठाक लगता है। वे एक सामान्य अध्यापक के रूप में हैं।
उनकी खूबियाँ हैं-विद्यार्थियों के प्रति लगाव, उनके भविष्य के प्रति चिन्ता ‘प्रार्थना तथा अनुशासन के पाबंद।
खामियाँ- 1. बच्चों को संटी मारना, शारीरिक दंड देना।
2. धनराम पर व्यंग्य-बाण छोड्कर उसमें हीन भावना भर देना।
3. केवल एक लड़के मोहन को प्रोत्साहित करना और उससे बच्चों को दंडित करवाना।
‘गलता लोहा’ कहानी का अंत धनराम के आश्चर्य और मोहन के आत्म-संतोष की भावना से होता है। यह अंत प्रभावशाली बन पड़ा है।
इस कहानी का अंत यह भी हो सकता कि गाँव के पडित आकर मोहन को बुरा-- भला कह रहे हैं और मोहन उनका प्रतिवाद कर रहा है।
पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से संबंधित है। किसका क्या प्रयोजन है? शब्द के सामने लिखिए-
1. धौंकनी .................
2. दराँती .................
3. संड़सी .................
4. आफर .................
5. हथौडा .................
1. धौंकनी से भट्टी में आग तेज की जाती ।
2. दराँती से फसल को या वस्तु को काटा जाता है।
3. सँड़सी से किसी ठोस वस्तु को पकड़ा जाता है।
4. लोहे की दुकान।
5. हथौड़े से किसी ठोस वस्तु पर चोट की जाती है।
पाठ में काट-छाँटकर जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
1. उठा-पटक कर-बच्चों ने कक्षा में उठा- पटक कर सब कुछ उलट दिया।
2. घूर- घूरकर-वह लड़कियों को घूर -घूरकर देख रहा था।
3. पहुँचते -पहुँचते -वहाँ पहुँचते-पहुँचते रात हो गई थी।
4. घूम -फिरकर- वह पूरम-फिरकर गाँव में ही लौट आया।
5. सहमते -सहमते - वह समहते - सहमते घर में घुसा।
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(i)बूते पर |
बल पर |
वंशीधर दान - दक्षिणा के |
(ii)बूते की |
वंश की |
सीधी चढ़ाई चढ़ना |
(iii) बुते का |
ताकद का |
बूढ़े वंशीधर के बुते का |
मोहन! थोड़ा दही तो ला दे बाजार से।
मोहन! ये कपड़े धोबी को दे तो आ।
मोहन! एक किलो आलू तो ला दे।
ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए ।
- आप! बाजार से थोड़ा दही तो ला दें।
- आप! ये कपड़े धोबी को तो दे आएँ।
- आप! एक किलो आलू तो ला दें।
विभिन्न व्यापारी अपने उत्पाद की बिक्री के लिए अनेक तरह के विज्ञापन बनाते हैं। आप भी हाथ से बनी किसी वस्तु की बिक्री के लिए एक ऐसा विज्ञापन बनाइए जिससे हस्तकला का कारोबार चले।
हस्तकला का विज्ञापन
हाथ से बनी टोकरियाँ ही
प्रयोग कीजिए।
हाथ से हाथ बढ़ाओ
हाथ से बनी टोकरी अपनाओ।
मोहन को लखनऊ से गाँव आने का मौका कम मिल पाता था? गाँव न जाने देने का असली कारण क्या था?
मोहन को साल में एक बार गर्मियों की छुट्टी में गाँव जाने का मौका तभी मिलता जब रमेश या उसके घर का कोई प्राणी गाँव जाने वाला होता वरना उन छुट्टियों को भी अगले दर्जे की तैयारी के नाम पर उसे शहर में ही गुजार देना पड़ता था। अगले दर्जे की तैयारी तो बहाना भर थी, सवाल रमेश और उसकी गृहस्थी की सुविधा-असुविधा का था। मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था, क्योंकि और कोई चारा भी नहीं था। घरवालों को अपनी. वास्तविक स्थिति बतलाकर वह दुखी नहीं करना चाहता था। वंशीधर उसके सुनहरे भविष्य के सपने देख रहे थे। वह उन्हें गलतफहमी में ही रखे हुए था।
जब कोई पंडित वंशीधर से उसके पुत्र मोहन के बारे में कुछ पूछता था तब वे क्या उत्तर देते थे?
वंशीधर से जब भी कोई मोहन के विषय में पूछता तो वह उत्साह के साथ उसकी पढ़ाई की बाबत बताने लगते और मन-ही-मन उनको विश्वास था कि वह एक दिन बड़ा अफसर बनकर लौटेगा। लेकिन जब उन्हें वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो न सिर्फ गहरा दुख हुआ बल्कि वे लोगों को अपने स्वप्न- भंग की जानकारी देने का साहस नहीं जुटा पाए।
रमेश कौन था? यह गांव क्यों आया? उसने मोहन के बारे में क्या इच्छा प्रकट की?
रमेश बिरादरी के एक संपन्न परिवार का युवक था। वह उन दिनों लखनऊ से छुट्टियों में गाँव आया हुआ था। बातों-बातों में वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के संबंध में उससे अपनी चिंता प्रकट की तो उसने न केवल अपनी सहानुभूति जतलाई बल्कि उन्हें सुझाव दिया कि वे मोहन को उसके साथ ही लखनऊ भेज दें। घर में -जहाँ चार प्राणी हैं एक और बढ़ जाने में कोई अंतर -न नहि पड़ना, बल्कि बडे शहर में रहकर वह अच्छी तरह पढ़-लिख सकेगा।
रमेश को क्या बात अप्रने सम्मान के विरुद्ध जन पड़ती थी? उसे कहां दाखिल करवाया गया?
औसत दफ्तरी बड़े बाबू की हैसियत वाले रमेश के लिए मोहन को अपना भाई-बिरादर बतलाना अपने सम्मान के विरुद्ध जान पड़ता था और उसे घरेलू नौकर से अधिक हैसियत वह नहीं देता था। इस बात को मोहन भी समझने लगा था। थोड़ी-बहुत हीला-हवाली करने के बाद रमेश ने निकट के ही एक साधारण से स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया। लेकिन एकदम नए वातावरण और रात-दिन के काम के बोझ के कारण गाँव का वह मेधावी छात्र शहर के स्कूली जीवन में साधारण-सा विद्यार्थी बनकर रह गया।
धनराम ने जब वंशीधर से मोहन के बारे में पूछा तब उन्होंने उसे क्या बताया? दांतों में तिनका दबाकर उन्होंने असत्य बात क्यों कही?
घनराम ने भी एक दिन पंडित वंशीधर से मोहन के बारे में पूछा था। वंशीधर ने घास का एक तिनका तोड़कर दाँत खोदते हुए उसे बताया था कि मोहन की सेक्रेटेरिएट में नियुक्ति हो गई है और शीघ्र ही विभागीय परीक्षाएँ देकर वह बड़े पद पर पहुँच जाएगा। धनराम को त्रिलोकसिंह मास्टर की भविष्यवाणी पर पूरा यकीन था-ऐसा होना ही था, उसने सोचा। दाँतों के बीच में तिनका दबाकर असत्य भाषण का दोष न लगने का संतोष लेकर वंशीधर आगे बढ़ गए थे। दाँतों में तिनका रखकर असत्य बात का दोष उन पर नहीं लगता था।
उस समय की सामाजिक परिस्थितियाँ कैसी थीं?
उन दिनों सामान्य तौर से ब्राह्मण टीले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था। किसी कामकाज के सिलसिले में यदि शिल्पकार टोले में आना ही पड़ता तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी। ब्राह्मण टोले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। पिछले कुछ वर्षों से शहर में जा रहने के बावजूद मोहन गाँव की इन मामता- से अपरिचित हो ऐसा संभव नहीं था। धनराम मन-ही-मन उसके व्यवहार से असमंजस में पड़ा था, लेकिन प्रकट में उसने कुछ नहीं कहा और अपना काम करता रहा।
धनराम क्या काम कर रहा था? उसे काम करते देखकर गोहन को क्या जोश आया?
घनराम लोहे की एक मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर गोलाई में मोड़ने की कोशिश कर रहा था। एक हाथ से सँड़ासी पकड़कर जब वह दूसरे से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फँसने के कारण लोहा उचित ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। मोहन कुछ देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा फिर जैसे अपना संकोच त्यागकर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया और घनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नपी-तुली चोट मारते, अभ्यस्त हाथों से धौंकनी फूँककर लोहे को दुबारा भट्टी में गर्म करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते-पीटते सुघड़ गोले का रूप दे डाला।
लोहे का काम करके मोहन के चेहरे पर क्या भाव था?
मोहन ने अपने प्रयास से लोहे को ठोकते-पीटते सुघड़ गोले का रूप दे दिया था। अब वह धनराम के संकोच, असमंजस और धर्म-संकट की स्थिति से उदासीन होकर सतुष्ट भाव से अपने लोहे के छल्ले की त्रुटिहीन गोलाई को जाँच रहा था। उसने धनराम की ओर अपनी कारीगरी को स्वीकृति पाने की मुद्रा में देखा। उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी-जिसमें न स्पर्धा थी और न ही किसी प्रकार की हार-जीत का भाव।
मोहन के बारे में मास्टर त्रिलोकसिंह का क्या विचार था? वे उससे क्या काम लेते थे?
मास्टर त्रिलोकसिंह का मोहन चहेता शिष्य था। पुरोहित खानदान का कुशाग्र बुद्धि का बालक मोहन पढ़ने में ही नहीं, गायन में भी बेजोड़ का त्रिलोकसिंह मास्टर ने उसे पुरे स्कूल का मॉनीटर बना रखा था। वही सुबह-मुह, ‘हे प्रभो आनंददाता। ज्ञान हमको दीजिए।’ का पहला स्वर उठाकर प्रार्थना शुरू करता था।
मोहन को लेकर मास्टर त्रिलोकसिंह को बड़ी उम्मीदें थीं। कक्षा में किसी छात्र को कोई सवाल न आने पर वही सवाल वे मोहन से पूछते और उनका अनुमान सही निकलता। मोहन ठीक-ठीक उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट कर देता और तब वे उस फिसड्डी बालक को दंड देने का भार मोहन पर डाल देते थे।
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