Aroh Chapter 13 रामनरेश त्रिपाठी
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    NCERT Solution For Class 11 Hindi Aroh

    रामनरेश त्रिपाठी Here is the CBSE Hindi Chapter 13 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 Hindi रामनरेश त्रिपाठी Chapter 13 NCERT Solutions for Class 11 Hindi रामनरेश त्रिपाठी Chapter 13 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN11012226

    रामनरेश त्रिपाठी के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

    Solution

    जीवन-परिचय-रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1881 ई. में जिला जौनपुर (उ.प्र.) के अंतर्गत कोईरीपुर ग्राम में एक साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता भगवद्भक्त और रामायण प्रेमी थे। पिता की गहरी छाप इनके व्यक्तित्व पर पड़ी। त्रिपाठी जी की स्कूली शिक्षा विधिवत् नहीं हो सकी। इन्होंने अध्यवसाय से हिन्दी, बँगला और अंग्रेजी का सामान्य ज्ञान प्राप्त किया। ये सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्यो में लग गए। इन्हें भ्रमण करना बहुत प्रिय था। कई देशी रियासतों के राजे-महाराजे इनके मित्र थे। इन्होंने 20 हजार किमी. पैदल यात्रा करके हजारों ग्राम-गीतों का संकलन भी किया। बाद में इन्होंने स्वतंत्र रूप से साहित्य-साधना को ही अपना ध्येय बनाया। सन् 1962 ई में इनका स्वर्गवास हो गया।

    रचनाएँ-त्रिपाठी जी की प्रमुख रचनाएँ हैं-पथिक, मिलन और स्वप्न (खण्डकाव्य), मानसी (स्फुट कविता संग्रह), कविता-कौमुदी, ग्राम्य -गीत (सम्पादित), गोस्वामी तुलसीदास और उनकी कविता (आलोचना)।

    विशेषताएँ-त्रिपाठी जी मननशील, विद्वान तथा परिश्रमी थें। काव्य, कहानी, नाटक, निबंध, आलोचना तथा लोक-साहित्य आदि विषयों पर इनका च अधिकार था। इनकी रचनाओं में नवीन आदर्श और नवयुग का संकेत है। इनके द्वारा रचित ‘पथिक, और ‘मिलन’ नामक खंडकाव्य अत्यंत लोकप्रिय हुए। इनकी रचनाओं की विशेषता यह है कि उनमें राष्ट्र-प्रेम तथा मानव सेवा की उत्कृष्ट भावनाएँ बड़े सुंदर ढंग से चित्रित हुई हैं। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष की प्राकृतिक सुषमा और पवित्र-प्रेम के सुंदर चित्र भी इन्होंने अपनी कविताओं में चित्रित किए हैं।

    इन्होंने 1931 से 41 तक ‘वानर’ नामक पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन किया। यह पत्रिका बच्चों के बीच बड़ी लोकप्रिय थी। ‘बाल कथा कहानी’ के नाम से इन्होंने रोचक एवं शिक्षाप्रद कहानियों के कई संग्रह बच्चों के लिए तैयार किए। इन्हें ‘हिन्दी बाल-साहित्य का जनक’ कहा जा सकता है।

    भाषा-शैली-त्रिपाठी जी की भाषा सरल एवं सरस खड़ीबोली है। उसमें माधुर्य और ओज है। शैली अत्यंत प्रवाहपूर्ण है। इन्होंने अपने काव्य में अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों -का प्रयोग किया है।

    Question 2
    CBSEENHN11012227

    पथिक:

    प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
    रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।
    नीचे नील समुद मनोहर ऊपर नील गगन है।
    घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है।।
    रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है।
    हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है।
    इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के
    कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के।।

    Solution

    प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित खंडकाव्य ‘पथिक’ से अवतरित है। इसमें कवि काव्य-नायक पथिक के प्रकृति-प्रेम पर प्रकाश डालता है।

    व्याख्या-कवि पथिक के शब्दों में प्रकृति कै मनोहारी सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है-समुद्र के आस-पास का प्राकृतिक दृश्य अनोखा है। यहाँ प्रकृति प्रत्येक क्षण नए-नए वेश में दृष्टिगोचर होती है। अर्थात् यहाँ प्रकृति नित्य नए रूप में दृष्टिगोचर होती है। यहाँ बरसने वाले बादलों की पंक्ति सूर्य के सामने थिरकती प्रतीत होती है। नीचे तो सुंदर नीला समुद्र है और इसके ऊपर नीला आसमान है। इस दृश्य को देखकर मेरे मन में यह इच्छा उत्पन्न होती है कि बादलों के ऊपर बैठकर आकाश कै मध्य विचरण करूँ। मैं बादलों की सवारी करना चाहता हुँ।

    यहाँ समुद्र तो गर्जना करता है और मलय पर्वत से आने वाली सुगंधित वायु बहती है। हे प्रिय! इस दृश्य को देखकर दिल में बड़ा उत्साह पैदा होता है। मैं चाहता हूँ कि इस लंबे-चौड़े महिमामय समुद्र के कोने-कोने को देखकर आऊँ। इसके लिए मैं समुद्र की लहरों पर सवारी करना चाहूँगा।

    कवि आकाश और समुद्र के सौंदर्य का भरपूर आनंद उठाना चाहता है। वह आकाश और समुद्र में विचरण करने का इच्छुक है।

    विशेष- 1. प्रकृति के प्रभाव का मनोहारी चित्रण हुआ है। यहाँ प्रकृति का आलंबन और उद्दीपन दोनों रूपों का चित्रण है।

    2. प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।

    3. अनुप्रास अलंकार-नीचे नील, विशाल विस्तृत बीच में बिचरूँ

    4. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार- -कोने-कोने।

    5. तत्सम शब्द-प्रधान भाषा का प्रयोग किया गया है।

    Question 3
    CBSEENHN11012228

    पथिक:
    निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा।
    कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा।
    लाने को निज पुण्य- भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
    रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।।
    निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।
    लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है।
    कहो यहाँ से बढ्कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?
    अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग- भरी कल्याणी।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पक्तियाँ रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता ’पथिक’ से अवतरित हैं। इसमें कवि ने समुद्र-तट के प्राकृतिक सौदंर्य का मनोहारी चित्रण किया है।

    व्याख्या-कवि देखता है कि समुद्र कै जल के ऊपर सूर्य का प्रतिबिंब अधूरे रूप में निकल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह बिंब मानो लक्ष्मी देवी के स्वर्णिम मंदिर का सुंदर कंगूरा है। कवि कल्पना करता है कि समुद्र ने अपनी पुण्यभूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए प्यारी सुनहरी सड़क का निर्माण कर दिया है। सूर्य की सुनहरी आभा समुद्र-तल पर पड़कर सुनहरी सड़क का- सा दृश्य उपस्थित कर देती है।

    समुद्र निडर, दृढ़ और गंभीर भाव से गरज रहा है। समुद्र में गर्जन हो रहा है। एक लहर के ऊपर दूसरी लहर आती है तो वे लहरें अत्यंत सुंदर प्रतीत होती हैं। इस दृश्य को देखने में जो मुख मिलता है, भला वह अन्यत्र कहाँ मिल सकता है? हे प्रिय! तुम अपने प्रेम भरे हृदय में इस सुख का अनुभव करो। यह प्राकृतिक सौंदर्य अनुभव करने की बात है।

    विशेष- 1. कवि न समासयुक्त शब्दों का प्रयोग किया है-

    दिनकर -बिंब, कंचन-मंदिर, स्वर्ण--सड़क आदि।

    2.‘कमला...........कँगूरा में उत्प्रेशा अलंकार है।

    3. ‘कमला के कंचन’, स्वर्ण सड़क में अनुप्रास अलंकार है।

    4. तत्सम बहुल खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।

    5. प्रकृति का मनोहारी चित्रण हुआ है।

    Question 4
    CBSEENHN11012229

    पथिक:

    जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है।
    अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।
    सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
    तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
    उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद विहँस देता है।
    वृक्ष विविध पत्तों-पुष्य। से तन को सज लेता है।
    पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं।
    फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित खंड-काव्य ‘पथिक’ से अवतरित है। कवि समुद्र-तट के सौंदर्य का वर्णन करने के पश्चात् आकाश के सौंदर्य का चित्रण करता है।

    व्याख्या-कवि बताता है कि आधी रात का अंधकार सारे संसार को ढक लेता है और अंतरिक्ष की छत पर तारों को बिखेर देता है। अर्थात् आसमान में तारे निकल आते हैं। तब इस संसार का स्वामी मुसकराते मुख से धीमी गति से आता है और समुद्र-तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मीठे- मीठे गीत गाता है।

    इस दृश्य सं मोहित होकर आकाश में चंद्रमा हँस देतां है अर्थात् आकाश में चंद्रमा की छटा बिखर जाती है। पेड़ भी विभिन्न प्रकार के पत्तों और फूलों से अपने शरीर को सजा लेते हैं। इम मनोहारी वातावरण में पक्षी भी अत्यधिक हर्षित हो उठते हैं। खुशी उनसे सँभाले नहीं सँभलती। फूल भी महकने लगते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वे सुख की साँस ले रहे हों।

    विशेष- 1. प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया गया है।

    2. कई स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।

    (चंद्र का हँसना, फूल का साँस लेना)

    3. ‘पत्तों-पुष्पों’ और ‘गगन-गंगा’ में अनुप्रास अलंकार है।

    4. तत्सम शब्द-प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

    Question 5
    CBSEENHN11012230

    पथिक:
    वन, - उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
    मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।
    पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
    लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी।।
    कैसी मधुर मनोहर उज्जल है यह प्रेम-कहानी।
    जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
    स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है।
    अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता ‘पथिक’ से अवतरित है। इसमें कवि प्रकृति के मनोहारी रूप को चित्रित करता है।

    व्याख्या-कवि बताता है कि बाग-बगीचों, पर्वत, धरती तथा कुंज में बादल बरसने लगते हैं। इस मनोहारी दृश्य को देखकर मेरे हृदय में भी उथल-पुथल होने लगती है, भावनाओं का ज्वार आता है तथा आँखों से आँसू बह निकलते हैं। कवि अपनी पत्नी से कहता है कि समुद्र की लहरों, किनारे, तिनकों, चोटी, आकाश, किरणों तथा बादलों के ऊपर लिखी इस मधुर कहानी को पढ़ो अर्थात् इन्हें समझने का प्रयास करो। प्रकृति के ये उपादान विश्व भर को मोहित करने वाले हैं।

    यह प्रेम-कहानी अत्यंत मधुर एवं पवित्र है। मेरे मन में आता है कि मैं भी इस प्रेम-कहानी के अक्षर बन जाऊँ अर्थात् मैं इसका भागीदार बनना चाहता हूँ और विश्व की वाणी बनना चाहता हूँ। यहाँ सदा आनंद प्रवाहित होता रहता है, यहाँ पवित्रता है, शांति है। यहाँ सर्वत्र प्रेम का राज्य दिखाई देता है। यह दृश्य अत्यंत ही सुंदर है।

    विशेष- 1. ‘नयर नीर’, ‘मधुर मनोहर’, ‘बनूँ विश्व की बानी, शांति सुखकर, तट तृण तरु’ आदि स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है।

    2. तत्सम शब्दों की बहुलता है।

    3. प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।

     

    Question 6
    CBSEENHN11012231

    पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?

    Solution

    पथिक का मन बादलों पर बैठकर नीलगगन में विचरने को करता है। वह विशाल सागर की लहरों पर बैठकर भी विचरना चाहता है।

    Question 7
    CBSEENHN11012232

    सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?

    Solution

    सूर्योदय के वर्णन के लिए कवि ने कई दृश्य-बिंबों का प्रयोग किया है-

    -वह सूर्योदय के एक बिंब में इसे कमला के कंचन-मंदिर का कांत कँगूरा बताता है।

    -दूसरे बिंब में वह इसे लक्ष्मी की सवारी के लिए समुद्र द्वारा बनाई स्वर्ण-सड़क बताता है।

    -एक अन्य बिंब में सूर्य के सम्मुख वारिद-माला थिरकती दर्शायी गई है।

    Question 8
    CBSEENHN11012233

    आशय स्पष्ट करें-
    सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
    तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।

    Solution

    ‘सस्मित-वदन’ से आशय है चेहरे पर मुस्कराहट लिए हुए। रात्रि के शांत वातावरण में जगत का स्वामी परमात्मा धीमी गति से आता जान पड़ता है। वह समुद्र-तट पर आकाश गंगा के गीत गाता प्रतीत होता है। कवि को इस प्रकार का आभास होता है।

    Question 9
    CBSEENHN11012234

    आशय स्पष्ट करें-
    कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी।
    जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।

    Solution

    समुद्र-तट पर प्रकृति का दृश्य इतना मनोहारी दै कि यह एक प्रेम-कहानी के समान प्रतीत होता है। सारा वातावरण रोमांटिक है। कवि भी इसका एक अभिन्न अंग बनना चाहता है। यहाँ से प्रेरणा लेकर वह काव्य-रचना करना चाहता है। यहाँ से प्रेरणा लेकर वह काव्य-रचना करना चाहता है। वह विश्व की वाणी बनना चाहता है।

    Question 10
    CBSEENHN11012235

    कविता में कई- स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। एसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखो।

    Solution

    कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। इसे मानवीकरण कहा जाता है। ऐसे कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

    (1) प्रतिदिन नूतन वेश बनाकर, रंग-बिरंग निराला।

    रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ मैं वारिद-माला।

    (प्रकृति नित्य नए-नए करंग-बिरंगेरूप में दिखाई देती है। ’रवि के सम्मुख वारिद-माला का थिरकना’ में भी मानवीकरण है।)

    (2) ‘रत्नाकर गर्जन करता है’ -(समुद्र का जल भयंकर आवाज करता है।)

    (3) लाने को निज पुण्य भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
    रत्नाकर ने निर्मित कर दी सस्वर्ण-सड़कअति प्यारी। (समुद्र का सड़क बनाना-मानवीकृत कार्य है। आशय है- समुद्र-तट पर सूर्य का सुनहरा प्रकाश फैल जाना)

    (4).‘नभ में चंद्र विहँस देता है’ -चंद्रमा का हँसना-चंद्रमा की कलाओं का बिखरना है।

    (5) ‘वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तनु को सजा लेता हैं-वृक्ष पर काफी सुंदर फूल-पत्ते आ जाते हैं।

    Question 11
    CBSEENHN11012236

    समुद को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं? लगभग 200 शब्दों में लिखें।

    Solution

    समुद्र को देखकर हमारे मन में अनेक भाव उठते हैं। समुद्र का आकार विशालता का अहसास कराता है। समुद्र की गहराई को मापना आसान काम नहीं है। समुद्र के जल की व्यर्थता देखकर लगता है कि यदि जल पीने के उपयोग में लाया जा सकता है तो संसार को पर्याप्त मात्रा मैं पेय-जल मिल जाता, तब जल-संकट नाम की कोई चीज न रहती। समुद्र का जल उठता-गिरता रहता है। कभी-कभी यह भीषण गर्जना भी करता है। वैसे शांत सागर का सौंदर्य मन को लुभाता है। समुद्र-तट पर नहाने तथा अंदर तक जाने का मन करता है। अनेक समुद्र-तटों की सुंदरता देखते ही बनती है। हाँ, ये समुद्र जलयानों के लिए आवश्यक है। समुद्र के जल पर यात्रा करना निश्चय ही एक रोमांचकारी अनुभव है।

    Question 12
    CBSEENHN11012237

    प्रेम सत्य है, सुंदर है-प्रेम के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर परिचर्चा करें।

    Solution

    विद्यार्थी कक्षा अथवा बाल-सभा में इस विषय पर परिचर्चा का आयोजन करें। प्रेम के विविध रूपों पर बात की जानी चाहिए। जैसे--

    ∙ माँ का प्रेम     ∙ देश कै प्रति प्रेम

    ∙ प्रेयसी का प्रेम   ∙मानव-प्रेम

    ∙ पत्नी का प्रेम    ∙प्रकृति के प्रति प्रेम

    Question 13
    CBSEENHN11012238

    वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं - इस पर चर्चा करें और लिखें कि प्रकृति से जुड़े रहने के लिए क्या कर सकते हैं।

    Solution

    हाँ, यह सही है कि वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते चले जा रहे हैं। इसका कारण हमारी व्यावसायिक मनोवृत्ति है।

    शहरों में तो प्रकृति को निहारना तक एक समस्या बनता जा रहा है। शरीर कंकरीट के जाल बनकर रह गए है। पेड़ों का लगाना कम होता जा रहा है, शोर ज्यादा मचता है, काम कम होता है। हम कृत्रिम वातावरण में रहते और जीते है। खुली हवा में विचरण करने का हमारे पास अवकाश नहीं है। हम हर चीज को लाभ-हानि की दृष्टि से देखते हैं। हमारी संवेदनाएँ मरती जा रही हैं।

    Question 14
    CBSEENHN11012239

    सागर संबंधी दस कविताओं का संकलन करें और पोस्टर बनाएँ।

    Solution

    यह कार्य विद्यार्थी पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर करें। सागर संबंधी कविताओं का संकलन तैयार करें तथा कुछ पोस्टर भी बनाएँ। एक कविता आप स्वयं भी रच सकते हैं। उदाहरणार्थ-

    यह सागर है
    विशाल सागर है
    इसके तट पर सैलानियों की रहती है भीड़
    उन्हें यह सागर आकर्षित करता है
    यहाँ वे आनंद मनाते हैं।
    पर कभी-कभी इस सागर के मन में
    सुनामी लहरें भी उठती हैं।
    और निगल जाती हैं पर्यटकों को
    दूर-दूर तक जाती हैं
    ये लहरें
    तब इनका रूप संहारक का हो जाता है
    यह सागर है।

    Question 15
    CBSEENHN11012240

    ‘पथिक’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

    Solution

    ‘पथिक’ शीर्षक कविता कवि रामनरेश त्रिपाठी के खंडकाव्य ‘पथिक’ का ही एक अंश है। इसमें कवि समुद्र-तट के आस-पास के प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहारी चित्रण करता है। वह सूर्योदय एवं रात्रिकालीन वातावरण को चित्रित करने में अपनी सूक्ष्म दृष्टि का प्रयोग करता है। यह सारा सौंदर्य कवि को स्व प्रेम-कहानी की भाँति प्रतीत होता है। कवि स्वयं भी इस प्रेम-कहानी का एक अंग बनना चाहता है। कवि आकाश में बादलों के रथ की सवारी करने को उत्सुक हो उठता है तथा बाद में समुद्र की लहरों पर भी विचरण करने को लालायित हो उठता है। समुद्र-तट के आस-पास के वातावरण का भी प्रभावी अंकन हुआ है।

    Question 16
    CBSEENHN11012241

    कवि को समुद कैसा प्रतीत होता है?

    Solution

    कवि की समुद्र विशाल, विस्तृत एवं महिमामय प्रतीत होता है। समुद्र कभी-कभी निर्भय, दृढ़ एवं गंभीर भाव से गर्जना भी करता है। समुद्र में जब लहरें उठती हैं, एक लहर दूसरी लहर पर आती-जाती हैं तब वे बहुत सुंदर प्रतीत होती हैं। कवि इन लहरों पर सवारी करने को इच्छुक हो उठता है।

    Question 17
    CBSEENHN11012242

    समुद्र-तट पर रात्रि का दृश्य कैसा होता है?

    Solution

    समुद्र-तट पर रात्रि का दृश्य भी सुंदर होता है। वैसे तो आधी रात के समय सर्वत्र अंधकार छा जाता है। पर आकाश पर तारे छिटक जाते हैं तथा चंद्रमा हँसता हुआ प्रतीत होता है।

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    Question 18
    CBSEENHN11012243

    किन-किन पर मधुर प्रेम-कहानी लिखी प्रतीत होती है?

    Solution

    समुद्र के तटों, लहरों, तिनके, पेड़ों, पर्वतों, किरणों तथा बादलों पर यह मधुर प्रेम-कहानी लिखी प्रतीत होती है।

    Question 19
    CBSEENHN11012244

    निम्नलिखित काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

    प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
    रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद माला।
    नीचे नील समुद मनोहर ऊपर नील गगन है।
    घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है।

    Solution

    भाव-सौंदर्य-इस काव्यांश में सूर्योदय के समय समुद्र-तट के आस-पास के प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहारी चित्रण किया गया है। सूर्योदय के समय आकाश में बड़ा ही विचित्र दृश्य उपस्थित हो जाता है। ऊपर आकाश की नीलिमा और नीले समुद्र से एक अनोखी छटा का निर्माण हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सूर्य के सम्मुख बादल नाच रहे हैं। इस दृश्य को देखकर कवि इतना अभिभूत हो जाता है कि वह भी बादलों की सवारी करने को इच्छुक हो उठता है।

    शिल्प-सौंदर्य:

    -प्रकृति के विविध रूपों का सौंदर्य देखते ही बनता है। ‘वारिदमाला के थिरकने’ में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है।

    -‘घन’ (बादल) को एक सवारी के रूप में चित्रित किया गया है।

    -‘नीचे नील’, ‘बीच में बिचरूँ’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।

    -तत्सम शब्द-प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।

    Question 20
    CBSEENHN11012245

    निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:

    निकल रहा है जलनिधि तल पर दिनकर-बिंब अधुरा।
    कमला के कंचन मंदिर का मानो कांत कँगूरा।।

    Solution

    भाव-सौंदर्य-इन काव्य-पक्तियों में कवि समुद्र की जल-सतह पर सूर्य के अधूरे बिंब के सौंदर्य को दर्शा रहा है। यह बिंब अधूरा है, अत: कँगूरे की भांति दिखाई देता है। यह देवी लक्ष्मी के मंदिर का सुंदर कँगूरा लगता है। अभी पूरा सूर्य निकलने में थोड़ी देर है।

    शिल्प-सौंदर्य-

    -‘दिनकर-बिंब’ में कंगूरे की संभावना व्यक्त की गई है, अत: उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग है।

    -‘कमला के कंचन’, ‘मंदिर का मानो’ तथा ‘कांत कंगूरा’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

    -तत्सम शब्द-प्रधान खड़ी बोली क्य प्रयोग है।

    Question 21
    CBSEENHN11012246

    निम्नलिखित काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

    उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद विहँस देता है।
    वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।

    Solution

    भाव-सौंदर्य-इस काव्यांश में चंद्रमा की हँसने की दशा का उल्लेख है तथा वृक्षों को अपनै शरीर को ढकने की क्रिया का वर्णन है। दोनों में मानवीकरण का आरोप है। जगत के स्वामी के गीत का मधुर स्वर इन सभी को प्रभावित कर जाता है।

    शिल्प-सौंदर्य-

    -‘नभ के विहँसने’ तथा ‘वृक्ष का तन को सजाना’ में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है।

    -‘वृक्ष विविध’, ‘पत्तों-पुष्पों, में अनुप्रास अलंकार की छटा है।

    -तत्सम शब्द बहुला खड़ी बोली का प्रयोग है।

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