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TextBook Solutions for Board of High School and Intermediate Education Uttar Pradesh Class 11 Hindi Aroh Chapter 10 आत्मा का ताप

Question 1
CBSEENHN11012152

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
यह सितंबर, 1943 की बात है। मैंने अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया। जब तक मैं मुंबई पहुंचा तब तक बे. वे. स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था। दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा न हो पाता। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने मुझे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की। मैंने तय किया कि मैं लौटूंगा नहीं, बंबई में ही अध्ययन करूंगा। मुझे शहर पसंद आया, वातावरण पसंद आया, गैलरियाँ और शहरों में अपने पहले मित्र पसंद आए। और भी अच्छी बात यह हुई कि मुझे एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी मिल गई। यह स्टूडियो फीरोजशाह मेहता रोड पर था। एक बार फिर कड़ी मेहनत का दौर चला। करीब साल-भर में ही स्टूडियो के मालिक श्री जलील और मैनेजर श्री हुसैन ने मुझे मुख्य डिजाइनर बना दिया। सुबह दस बजे से शाम छह बजे तक मैं दफ्तर में काम करता। फिर मैं अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता।
1. लेखक कह, किसमें दाखिला लेने से वंचित रह गया?
2. लेखक ने क्या निश्चय किया?
3. बंबई में उसे कहाँ ठिकाना मिला?

Solution

1. लेखक को 1943 ई. में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ दि? में दाखिले के लिए छात्रवृत्ति मंजूर की गई। उस समय लेखक अमरावती के एक गवर्नमेंट नार्मल स्कूल में अध्यापक था। वह वहाँ से त्यागपत्र देकर जब बंबई (मुंबई) पहुँचा तब तक वहाँ दाखिला बंद हो चुका था। यदि किसी प्रकार दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत कम रह जाता। इस प्रकार लेखक वहाँ दाखिले से वंचित रह गया।
2. लेखक ने बंबई में रहकर ही संघर्ष करने का निश्चय किया। उसे बंबई शहर पसंद आ गया था, वहाँ का वातावरण, वहाँ की गैलरियाँ और मित्र पसंद आए। अत: उसने अकोला में प्रस्तावित ड्राइंग अध्यापक की नौकरी करना अस्वीकार करके बंबई में ही रहना तय किया।
3. बंबई अब मुंबई में लेखक को एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी भी मिल गई। यह सृष्टियों फीरोजशाह मेहता रोड पर था। लेखक का संघर्ष काल प्रारंभ हो गया। उसकी मेहनत को देखकर मालिक श्री जलील और मैनेजर श्री हुसैन ने उन्हें मुख्य डिजाइनर बना दिया। अब वह दिनभर दफ्तर में काम करता और रात को अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता था। इस प्रकार उसे बंबई में ठिकाना मिल गया।

Question 2
CBSEENHN11012153

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
उन्होंने मुझे ऑर्ट डिपार्टमेंट में कमरा दे दिया। मैं फर्श पर सोता। वे मुझे रात ग्यारह-बारह बजे तक गलियों के चित्र या और तरह-तरह के स्केच बनाते देखते। कभी-कभी वे कहते कि तुम बहुत देर तक काम करते रह गए, अब सो जाओ। कुछ महीने बाद उन्होंने मुझे एक बहुत शानदार ठिकाना देने की पेशकश की-उनके चचेरे भाई के छठी मंजिल के फ्लैट का एक कमरा। उसमें दो पलंग पड़े थे। उनकी यौवना यह थी कि अगर मैं उनके यहां काम करता रहा तो मुझे कला विभाग का प्रमुख बना दिया जाए। मैं बेकन सर्कल का सात रास्ते वाला घर और उसका गलीज वातावरण छोड्कर नए ठिकाने पर आ गया और पूरी तरह अपने काम में डूब गया। इसका परिणाम यह हुआ कि चार बरस में, 1948 में, बॉम्बे ऑर्ट्स सोसाइटी का स्वर्णपदक मुझे मिला। इस सम्मान को पाने वाला मैं सबसे कम आयु का कलाकार था। दो बरस बाद मुझे फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति मिल गई।
1. लेखक को क्या समस्या आई और उसका क्या हल निकला?
2. बाद में लेखक को कहाँ जगह मिली?
3. 1948 में क्या हुआ?

Easy
Question 3
CBSEENHN11012154

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
भले ही 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हों, मेरे लिए वे कठिन बरस थे। पहले तो कल्याण वाले घर में मेरे पास रहते मेरी मां का देहांत हो गया। पिता जी मेरे पास ही थे। वे मंडला लौट गए। मई 1948 में वे भी नहीं रहे। विभाजन की त्रासदी के बावजूद भारत स्वतंत्र था। उत्साह था, उदासी भी थी। जीवन पर अचानक जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा। हम युवा थे। मैं पच्चीस बरस का था; लेखकों, कवियों, चित्रकारों की संगत थी। हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं और सभी अपने-अपने क्षेत्रों में, अपने माध्यम में सामर्थ्य भर-बढ़िया काम करने में जुट गए। देश का विभावन, महात्मा गांधी की हत्या क्रुर घटनाएं थीं। व्यक्तिगत स्तर पर मेरे माता-पिता की मृत्यु भी ऐसी ही क्रुर घटना थी। हमें इन क्रुर अनुभवों को आत्मसात् करना था। हम उससे उबरकर काम में जुट गए।
1. लेखक के लिए कौन-सा काल कठिनाई भरा था और क्यों?
2. लेखक किन-किनकी संगत में था?
3. लेखक को किस परिस्थिति को आत्मसात् करना था?

Easy
Question 4
CBSEENHN11012155

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
श्रीनगर की इसी यात्रा में मेरी भेंट प्रख्यात फ्रेच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसौं से हुई। मेरे चित्र देखने के बाद उन्होंने जो टिप्पणी की वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने कहा “तुम प्रतिभाशाली हो, लेकिन प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों को लेकर मैं संदेहशील हूं। तुम्हारे चित्रों में रंग है, भावना है, लेकिन रचना नहीं है। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि चित्र इमारत की ही तरह बनाया जाता है-आधार, नींव, दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह टिकता है। मैं कहूंगा कि तुम सेजाँ का काम ध्यान से देखो।” इन टिप्पणियों का मुझ पर गहरा प्रभाव रहा। बंबई लौटकर मैंने फ्रेंच सीखने के लिए अलयांस फ्रेंच में दाखिला से लिया। फ्रांसे पेटिंग में मेरी खासी रुचि थी, लेकिन मैं समझना चाहता था कि चित्र में रचना या बनावट वास्तव में क्या होगी।
1. श्रीनगर में लेखक की भेट किससे हुई? इसका उनके लिए क्या महत्व था?
2. फ्रेंच फोटोग्राफर ने क्या टिप्पणी की?
3. इस टिप्पणी का लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?

Easy
Question 5
CBSEENHN11012156

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
मैं अपने कुटुंब के युवा लोगों से कहता रहता हूं कि तुम्हें सब कुछ मिल सकता है-बस, तुम्हें मेहनत करनी होगी। चित्रकला व्यवसाय नहीं, अंतरात्मा की पुकार है। इसे अपना सर्वस्व देकर ही कुछ ठोस परिणाम मिल पाते हैं। केवल बहरा जाफरी को कार्य करने की ऐसी लगन मिली। वह पूरे समर्पण से दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती हैं। कल मैंने उन्हें फोन किया-यह जानने के लिए कि वह दमोह में क्या कर रही हैं। उन्हें बड़ी खुशी हुई कि मुझे सूर्यप्रकाश (उस ग्रामीण स्त्री का पति, जो अपने पति का नाम नहीं ले रही थी) का किस्सा याद है। मैंने धृष्टता से उन्हें बताया कि ‘बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख।’ मेरे मन में शायद युवा मित्रों को यह संदेश देने की कामना है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ ध रे न बैठे रहो-खुद कुछ करो। जरा देखिए, अच्छे-खासे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं कर रहे, जबकि उनमें तमाम संभावनाएं हैं। और यहाँ हम बेचैनी से भरे, काम किए जाते हैं।

1. लेखक युवा लोगों से क्या कहना चाहता है?
2. लेखक को मनचाही लगन किसमें मिली?
3. लेखक के मन में युवा मित्रों को क्या सदेश देने की कामना है?


Easy

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