चुनाव और प्रतिनिधित्व

Question

पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव क्षेत्र के बीच क्या अंतर है ? संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया ?

Answer

पृथक निर्वाचन-मंडल: पृथक निर्वाचन-मंडल के अंतर्गत एक चुनाव क्षेत्र से अलग-अलग जाति के उम्मीदवार खड़े होते हैं तथा प्रत्येक मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को ही वोट देता है।
आरक्षित चुनाव क्षेत्र: इस व्यवस्था के अंतर्गत, किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदाता वोट तो डालते हैं , लेकिन प्रत्याशी केवल उसी समुदाय या सामाजिक वर्ग का होता हैं जिसके लिए वह वह सीट आरक्षित है।

संविधान सभा के अनेक सदस्यों को पृथक निर्वाचन-मंडल प्रणाली पर शंका थी। उनका विचार था कि यह व्यवस्था हमारे उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएगी। उनके मत में यह व्यवस्था भारत के लिए अभिशाप रही है, इसने देश की अपूरणीय क्षति की है। यह प्रणाली साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है और इससे समाज की एकता नष्ट होती हैं। पृथक निर्वाचन-मंडल प्रणाली से मतदाताओं का दृष्टिकोण होता है और मतदाता देश हित के स्थान पर अपने सम्प्रदाय के हित को महत्व देते हैं। इन सभी बातों के कारण पृथक निर्वाचन-मंडल को स्वीकार नहीं किया गया।

Sponsor Area

Some More Questions From चुनाव और प्रतिनिधित्व Chapter

भारत की चुनाव-प्रणाली का लक्ष्य समाज के कमज़ोर तबके की नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना है। लेकिन अभी तक हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या 10 प्रतिशत तक भी नहीं पहुँचती। इस स्थिति में सुधार के लिए आप क्या उपाय सुझाये ?

एक भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ा। इस मसले पर कई विचार सामने आये। एक विचार यह था कि भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र नागरिक है। उसे किसी राजनीतिक दल में होने और चुनाव लड़ने का अधिकार है। दूसरे विचार के अनुसार, ऐसे विकल्प की संभावना कायम रखने से चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होगी। इस कारण, भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप इसमें किस पक्ष से सहमत हैं और क्यों ?

भारत का लोकतंत्र अब अनगढ़ 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली को छोड़कर समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है' क्या आप इस कथन से सहमत हैं? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दें।

एक नए देश के संविधान के बारे में आयोजित किसी संगोष्ठी में वक्ताओं ने निम्नलिखित आशाएँ जतायीं। प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि उनके लिए फर्स्ट- पास्ट-द-पोस्ट ( सर्वााइधक मत से जीत वाली प्रणाली) उचित होगी या समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली ? 

(क) लोगों को इस बात की साफ साफ जानकारी होनी चाहिए कि उनका प्रतिनिधि कौन है ताकि वे उसे निजी तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकें।

(ख) हमारे देश में भाषाई रूप से अल्पसंख्यक छोटे-छोटे समुदाय हैं और देश भर में फैले हैं, हमें इनकी ठीक- ठीक नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना चाहिए।

(ग) विभिन्न दलों के बीच सीट और वोट को लेकर कोई विसंगति नहीं रखनी चाहिए।

(घ) लोग किसी अच्छे प्रत्याशी को चुनने में समर्थ होने चाहिए भले ही वे उसके राजनीतिक दल को पसंद न करते हों।