मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
गरीब जनता: 19 वीं सदी के मद्रास के चौराहों पर बेची जा रही थीं, जिसके चलते गरीब लोग भी बाज़ार से उन्हें खरीदने की स्थिति में आ गए थे। सार्वजनिक पुस्तकालयों के खुलने के कारण गरीब जनता की पुस्तकों तक पहुँच आसान हो गई। आमिर लोग शहरों, कस्बों या संपन्न गाँवों में पुस्तकालय खोलने में अपनी शान समझते थे।
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अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?
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