हजारी प्रसाद द्विवेदी
लेखक किस बात से हैरान हो जाता है?
लेखक मुग्ध और विस्मय-विग्रह होकर कालिदास के एक-एक श्लोक को देखकर हैरान हो जाता है। वह कहता है कि अब इस शिरीष के फूल का ही एक उदाहरण लीजिए। शकुंतला बहुत सुंदर थी। सुंदर क्या होने से कोई हो जाता है? देखना चाहिए कि कितने सुंदर हृदय से वह सौंदर्य डुबकी लगाकर निकला है। शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी। विधाता की ओर से कोई कंजूसी नहीं थी कवि की ओर से भी नहीं। राजा दुष्यंत भी अच्छे- भले प्रेमी थे। उन्होंने शकुंतला का एक चित्र बनाया था; लेकिन रह-रहकर उनका मन खीझ उठता था। उहूँ, कहीं-न-कहीं कुछ छूट गया है। बड़ी देर के बाद उन्हें समझ में आया कि शकुतंला के कानों में वे उस शिरीष पुष्प को देना भूल गए हैं, जिसके केसर गंडस्थल तक लटके हुए थे और रह गया है शरच्चंद्र की किरणों के समान कोमल और शुभ्र मृणाल का हार।
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इस चिलकती धूप में इतनइतना-इतनास वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, अंधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बढ़ाबूढ़ा सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खीचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूं, तब-तब क्य उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इस चिलकती धूप में इतनइतना-इतनास वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, अंधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बढ़ाबूढ़ा सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खीचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूं, तब-तब क्य उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
1. शिरीष को पक्का अवधूत क्यों कहा है?
2. वर्तमान समाज की उथल-पुथल के सदंर्भ में शिरीष वृक्ष से क्या प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है?
3. लेेखक ने ‘ एक बूढ़ा ’ किसे कहा है? किस सदंर्भ में उसका उल्लेख किया गया है?
4. एक ही व्यक्ति कोमल और कठोर दोनों कैसे हो सकता है? स्पष्ट कीजिए।
इस चिलकती धूप में इतनइतना-इतनास वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, अंधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बढ़ाबूढ़ा सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खीचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूं, तब-तब क्य उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इस चिलकती धूप में इतनइतना-इतनास वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, अंधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बढ़ाबूढ़ा सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खीचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूं, तब-तब क्य उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
1. शिरीष की तुलना अवधूत से क्यों की गई है?
2. ‘देश का एक बूढ़ा‘ का सकेत किसकी ओर है? वह कैसी स्थितियों में स्थिर रह सका था?
3. शिरीष को जब-तब देखकर लेखक के मन में हूक क्यों उठती है?
4. गद्याशं के आधार पर शिरीष वृक्ष के स्वभाव पर टिप्पणी कीजिए।
शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब-कुछ कोमल है। यह भूल है। इसके फल इतने मजबूत हाेते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं। वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्य-पत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आती है, जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब-कुछ कोमल है। यह भूल है। इसके फल इतने मजबूत हाेते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं। वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्य-पत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आती है, जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?
द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।
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