इस चिलकती धूप में इतनइतना-इतनास वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, अंधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बढ़ाबूढ़ा सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खीचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूं, तब-तब क्य उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
A.
अवधूत किसे कहते हैं? शिरीष को अवधूत क्यों कहा है?
B.
कोमलता और कठोरता-दोनों भाव किस प्रकार गाँधी जी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए?
C.
वे कौन-सी वर्तमान पपरिस्थितियाँ हैं जिनके भीतर स्थिर रह सकने या न रह सकने का संदेह पैदा होने लगता है?
D.
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है।’ कथन से लेखक क्या प्रतिपादित करना चाहता है।
A. अवधूत उसे कहते हैं जो सुख-दुख दोनों अवस्थाओं में एक समान बना रहता है। शिरीष को अवधूत इसलिए कहा गया है क्योंकि वह कठिन परिस्थितियों में भी फलता-फूलता है। |
B. गाँधी जी ने भयंकर मार-काट, अग्निदाह, लूटपाट जैसी घटनाओं को कठोर होकर सहा था। उन्होंने इन घटनाओं का विरोध भी किया था। पीड़ितों के प्रति उनके मन में कोमलता के भाव थे। वे उनकी सेवा भी करते थे। |
C. मार-काट, खून-खराबे की परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनके भीतर स्थिर रह सकने या न रह सकने का संदेह पैदा होने लगता है। |
D. इस कथन से लेखक यह कहना चाहता है कि अब समाज में सम-विषम परिस्थितियों में सहज बने रहने वाले व्यक्ति नहीं बचे हैं। समाज में ऐसे नेतृत्व का अभाव है। |



