निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इस चिलकती धूप में इतनइतना-इतनास वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, अंधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बढ़ाबूढ़ा सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खीचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूं, तब-तब क्य उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
1. शिरीष की तुलना अवधूत से क्यों की गई है?
2. ‘देश का एक बूढ़ा‘ का सकेत किसकी ओर है? वह कैसी स्थितियों में स्थिर रह सका था?
3. शिरीष को जब-तब देखकर लेखक के मन में हूक क्यों उठती है?
4. गद्याशं के आधार पर शिरीष वृक्ष के स्वभाव पर टिप्पणी कीजिए।
1. शिरीष की तुलना अवधूत से इसलिए की गई है क्योंकि जिस प्रकार अवधूत अर्थात् संन्यासी सुख-दुख, लाभ-हानि की चिंता से परे रहता है, उसी प्रकार शिरीष का पेड़ भी धूप-वर्षा, आँधी-लू की चिंता न कर खड़ा रहता है और सरस बना रहता है। वह अवधूत के समान अपने स्थान से कभी विचलित नहीं होता।
2. ‘देश का एक बूढ़ा‘ का संकेत महात्मा गाँधी की ओर है। गाँधीजी का उल्लेख यहाँ इसलिए किया गया है क्योंकि वे ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण एवं दमनकारी नीतियों के विरुद्ध तथा अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए डटकर खड़े रहे। उन्होंने अशांति और विरोधी वातावरण में भी अपना संघर्ष जारी रखा।
3. शिरीष को जब-तब देखकर लेखक के मन में हूक इसलिए उठती है क्योंकि आज के युग में शिरीष के समान अवधूत की पहले से अधिक आवश्यकता है। विकट परिस्थितियों मे भी. रमस्थिरने रहने का जैसा साहस शिरीष में है, वैसे ही साहसी लोगों की आज समाज को आवश्यकता है।
4. गद्यांश कै आधार पर कहा जा सकता है कि शिरीष का वृक्ष अवधूत के समान सभी प्रकार की परिस्थितियों में अपने अस्तित्व की रक्षा में समर्थ है। वह बाहरी परिवर्तनों से विचलित नहीं होता। उसमे गजब की सहनशक्ति है। वह वायुमंडल से अपना रस खींचकर कोमल और कठोर बना रहता है। वह हर परिस्थिति में कुशलतापूर्वक जी लेता है।