बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर
लेखक आदर्श समाज के बारे में अपना क्या स्पष्टीकरण देता है?
लेखक आदर्श समाज की धारण पर अपना स्पष्टीकरण इस प्रकार देता है-
मेरा आदर्श-समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित होगा। क्या यह ठीक नहीं है, भ्रातृता अर्थात् भाईचारे में किसी को भला क्या आपत्ति हो सकती है? किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह है कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप है और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है क्योंकि लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति ही नहीं है, लोकतंत्र मूलत: सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का लाभ प्राप्त है।
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समता का औचित्य यहीं पर समाप्त नहीं होता। इसका और भी आधार उपलब्ध है। एक राजनीतिज्ञ पुरुष का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। अपनी जनता से व्यवहार करते समय राजनीतिज्ञ के पास न तो इतना समय होता है, न प्रत्येक के विषय में इतनी जानकारी जिससे वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं तथा क्षमताओं के आधार वांछित व्यवहार अलग-अलग कर सके। वैसे भी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक तथा औचित्यपूर्ण क्यों न हो, मानवता के दृष्टिकोण से समाज दो वर्गों और श्रेणियों में नहीं बाँटा जा सकता।
जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?
लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?
शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. अंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
सही में डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे?
डॉ. आंबेडकर ने जाति प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है-उस संदर्भ में ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।
आंबेडकर की पुस्तक ‘जाति-भेद का उच्छेद’ की तरह राजकिशोर की पुस्तक भी है ‘जाति कौन तोड़ेगा?’ शिक्षक की सहायता से दोनों उपलब्ध कर पढ़िए।
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