फिराक गोरखपुरी
ऐसे में तू याद आये है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गये गर्दूं पॅ फरिश्ते बाबे-गुनाह जग खोलें हैं
सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गजलें बोले हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से ली गई हैं।
व्याख्या: शायर कहता है कि शराब की महफिल में शराबियों को तू (ईश्वर) याद आता है। पर जब रात बीत जाती है। तब आकाश में फरिश्ते पाप का अध्याय खोलते हैं। अर्थात् हमारे कर्मों को आकाश में ऊपर बैठे फरिश्ते देख रहे हैं।
फिराक (शायर) बेहतरीन शायरी पर कुर्बान जाता है। उसने यह आवाज कैसे उड़ा ली है। इन गजलों में तो मीर की गजलें बोलती जान पड़ती हैं। शायर फिराक पर मीर का विशेष प्रभाव है। उसने ‘सुना हो’, ‘रक्खों हो’ मीर की शायरी की तर्ज पर ही इस्तेमाल किए हैं। इस प्रकार बेहतरीन शायरी में ‘मीर’ की आवाज का आभास होता है।
विशेष: उर्दू शब्दों की भरमार है।
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उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।
माँ बच्चे के लिए क्या-क्या काम करती है?
बच्चा कब अपनी माँ के मुँह को प्यार से देखता है?
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
दीपावली पर लोग क्या करते हैं?
दीपावली पर बच्चे माँ से क्या फरमाइश करते हैं?
माँ के चेहरे पर मुस्कराहट क्यों आ जाती है?
माँ बच्चे की फरमाइश को कैसे पूरी करती है?
बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।
आँगन में कौन ठुमक रहा है?
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