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फिराक गोरखपुरी

Question
CBSEENHN12026410

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है

बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है

दर्पण उसे दे के कह रही है माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है।

Solution

प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। बच्चा चाँद लेने की हठ कर रहा है, माँ उसे बहलाने का प्रयास कर रही है।

व्याख्या: आँगन में खड़े होकर चाँद को देखकर बालक सुनकने लगता है और जिद पर उतर आता है। उसका जी चाँद पर ललचा जाता है और माँ से चाँद लेने का हठ करने लगता है। माँ बच्चे के हाथ में दर्पण (शीशा) देकर बहलाती है-’देख आईने (शीशे) में चाँद उतर आया है।’ यह चाँद की परछाईं भले ही हो, पर बच्चे के लिए तो चाँद है। माँ के इस प्रयास से बालक की जिद पूरी हो जाती है। बच्चे को लगता है कि उसे चाँद मिल गया।

विशेष: 1 ‘जिंदयाया’-विलक्षण प्रयोग है 1

2. ‘आईने में चाँद उतर आया’-कल्पना की आँख का एक रूप है।

3. वात्सल्य रस का परिपाक हुआ है।

4. उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषा का प्रयोग है।

5. चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।

Some More Questions From फिराक गोरखपुरी Chapter

फिराक गोरखपुरी का जीवन-परिचय एवं साहित्यिक परिचय दीजिए तथा रचनाओं का उल्लेख भी कीजिए।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी

हाथों पे बुलाती है उसे गोद-भरी

रह-रह के हवा में जो लोका देती है

गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।

कवि और कविता का नाम लिखिए।

कौन, किसे, कहाँ लिए खड़ी है?

माता अपनी संतान को किस प्रकार खिला रही हें?

बच्चा क्या करता है?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

नहला के छलके-छलके निर्मल जल से

उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके

किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को

जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।

माँ बच्चे के लिए क्या-क्या काम करती है?

बच्चा कब अपनी माँ के मुँह को प्यार से देखता है?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

दीपावली की शाम घर पुते और सजे

चीनी के खिलौने जगमगाते लावे

वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक

बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए