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फिराक गोरखपुरी

Question
CBSEENHN12026397

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी

हाथों पे बुलाती है उसे गोद-भरी

रह-रह के हवा में जो लोका देती है

गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।

Solution

प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। फिराक की रुबाई में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखाई देता है। इस रुबाई में माँ बच्चों को प्यार करती हुई हाथों में झूला झुला रही है।

व्याख्या: माँ अपने घर के आँगन में अपने चाँद के टुकड़े अर्थात् प्यारे बालक लिए हुए खड़ी है। वह बालक को हाथों पर झुला रही है। कभी उसे गोद में भर लेती है। माँ बच्चे को बार-बार हवा में उछाल-उछाल कर प्यार कर रही है। इस प्यार करने की क्रिया को लोका देना कहा जाता है। यह क्रिया बच्चे को बहुत भाती है। जब माँ बच्चे को हवा में उछाल-उछाल कर प्यार करती है तो बच्चा खुश होकर खिलखिलाकर हँस उठता है। घर के आँगन में बच्चे की हँसी की किलकारी गूँज उठती है।

विशेष: 1. बच्चे में चाँद के टुकड़े का आरोप है अत: रूपक अलंकार है।

2. ‘लोका देना’-एक अनूठा प्रयोग है।

3. ‘रह-रह’ में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार है।

4. वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है।

5. हिंदी-उर्दू का मिश्रित रूप प्रयुक्त हुआ है। यह लोकभाषा है।

Some More Questions From फिराक गोरखपुरी Chapter

माँ बच्चे के लिए क्या-क्या काम करती है?

बच्चा कब अपनी माँ के मुँह को प्यार से देखता है?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

दीपावली की शाम घर पुते और सजे

चीनी के खिलौने जगमगाते लावे

वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक

बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

दीपावली पर लोग क्या करते हैं?

दीपावली पर बच्चे माँ से क्या फरमाइश करते हैं?

माँ के चेहरे पर मुस्कराहट क्यों आ जाती है?

माँ बच्चे की फरमाइश को कैसे पूरी करती है?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है

बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है

दर्पण उसे दे के कह रही है माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है।

आँगन में कौन ठुमक रहा है?

बालक का जी किस पर ललचाया है?