फिराक गोरखपुरी
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पै सुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
1. इस काव्याशं में किस स्थिति का चित्रण किया गया है?
2. ‘चाँद का टुकड़ा’ क्या प्रकट करता है? पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का उदाहरण भी छाँटिए।
3. भाषागत सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
1. इन पंक्तियों में शायर ने एक स्थिति का मनोहारी चित्रण किया है जिसमें एक माँ अपने बच्चे को हाथों पर झुला रही है और उसे उछाल-उछाल कर प्यार कर रही है। बच्चा खिलखिलाकर हँस रहा है। वात्सल्य रस की चरम सीमा अभिव्यक्त हो रही है।
2. बच्चे को ‘चाँद का टुकड़ा’ कहना उसके प्रति माँ के प्यार को व्यंजित करता है। यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग भी है। ‘रह-रह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘लोका देना’ ग्रामीण संस्कृति का एक अनूठा प्रयोग है।
बिंब-योजना प्रभावी बन पड़ी है।
सीधी-सरल भाषा का प्रयोग है।
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बच्चा कब अपनी माँ के मुँह को प्यार से देखता है?
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
दीपावली पर लोग क्या करते हैं?
दीपावली पर बच्चे माँ से क्या फरमाइश करते हैं?
माँ के चेहरे पर मुस्कराहट क्यों आ जाती है?
माँ बच्चे की फरमाइश को कैसे पूरी करती है?
बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।
आँगन में कौन ठुमक रहा है?
बालक का जी किस पर ललचाया है?
माँ उसकी इच्छा किस प्रकार पूरी करती है?
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