फिराक गोरखपुरी
कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाजे बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फिराक की गजल-रुबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूँढिए।
(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों। (सूरदास)
(ख) वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान (सुमित्रानदंन पंत)
(ग) सीस उतारे भुई धरे तब मिलिहैं करतार (कबीर)
(क) बालक तो हई चाँद पै ललचाया है।
(ख) आबो-ताबे अशआर न पूछो तुम आँखें रक्खो हो, ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।
(ग) ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो लें हम।
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माँ बच्चे के लिए क्या-क्या काम करती है?
बच्चा कब अपनी माँ के मुँह को प्यार से देखता है?
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
दीपावली पर लोग क्या करते हैं?
दीपावली पर बच्चे माँ से क्या फरमाइश करते हैं?
माँ के चेहरे पर मुस्कराहट क्यों आ जाती है?
माँ बच्चे की फरमाइश को कैसे पूरी करती है?
बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।
आँगन में कौन ठुमक रहा है?
बालक का जी किस पर ललचाया है?
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