अवतार सिंह पाश
सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी निगाह में रुकी होती है
प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं पाश द्वारा रचित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से अवतरित है। कवि कई बातों को बुरा बताकर भी उन्हें सबसे खतरनाक नहीं मानता। अब वह उन बातों को बताता है जो सबसे अधिक खतरनाक हैं।
व्याख्या-कवि का कहना है कि सबसे खतरनाक यह बात होती है कि व्यक्ति में मुर्दे जैसी शांति का भर जाना। ऐसी स्थिति में व्यक्ति की विरोध शक्ति समाप्त हो जाती है। इस दशा में व्यक्ति निष्क्रिय और निर्जीव हो जाता है। उसकी तड़पन समाप्त हो जाती है और वह सब कुछ सहन करता चला जाता है। प्रतिकूलताओं से जूझने की उसकी शक्ति समाप्त हो जाती है। जब व्यक्ति एक बँध बंधाए रूटीन के जीवन में जीने लगता है अर्थात् घर से निकलकर काम पर जाना और काम से लौटकर घर आ जाना तब यह स्थिति भी सबसे खतरनाक होती है। इसमें व्यक्ति की स्थिति को बदलने की क्षमता चुक जाती है। तब हम कोई सपने नहीं देखते, हमारे सपने मर जाते हैं अर्थात् ऊँचा उठने, आगे बढ़ने की कल्पना दम तोड़ देती है। यह स्थिति भी बहुत खतरनाक है।
समय की गति का रुक जाना भी बहुत खतरनाक होता है। इस दशा में कलाई की घड़ी की सुइयाँ तो चलती हैं, पर हमारी निगाह रुक जाती है। हम दूर तक देखने की क्षमता खो बैठते हैं। ऐसी स्थिति में आगे बढ़ने की लालसा ही मर जाती है। जीवन एक बँध ढर्रे पर चलने लगता है। यह स्थिति अत्यंत खतरनाक है।
विशेष-कवि अन्य खतरों से बड़ा उस खतरे को मानता है जिसमें व्यक्ति अपनी प्रतिरोधक क्षमता को खोकर सभी स्थितियों को स्वीकार करने लगता है। तब उसका विकास रुक जाता है।
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सबसे खतरनाक वह आँख होती है
जो सबकुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है
जिसकी नजर दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोजमर्रा के कम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलट-फेर में खो जाती है।
सबसे खतरनाक वह चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए रंगनों में चढ़ता है
पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है
सबसे खतरनाक वह गीत होता है
आपके कानों तक पहुँचने के लिए
जो मरसिए पड़ता है
आतंकित लोगों के दरवाजों पर
जो गुंडे की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वह रात होती है
जो जिंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ करते गीदड़
हमेशा के अँधेरे बंद दरवाजों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं
सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती।
कवि ने किस आशय से मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ को सबसे खतरनाक नहीं माना?
कवि ने कविता में कई बातों को ‘बुरा है’ न कहकर ‘बुरा तो है’ कहा है। ‘तो’ ‘प्रयोग से कथन की भंगिमा में क्या बदलाव आया है, स्पष्ट कीजिए?
वह चाँद सबसे खतरनाक क्यों होता है, जो हर हत्याकांड के बाद/आपकी आँखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है?
कवि ने मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती से कविता का आरंभ करके फिर इसी से अंत क्यों किया?
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