साखी
कबीर कहते हैं की मनुष्य को ऐसी बाणी बोलनी चाहिये जिसमें हमारा अंहकार न दिखता हो अर्थात् हमारी बातों से हमारा अंहकार प्रकट नही होना चाहिये ऐसी मीठी बाणी बोलने से अपने को भी संतोष होता है तथा दूसरों को भी सुख मिलता है, दूसरे भी प्रसन्न होते है
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मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
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