साखी
इस पंक्ति में कवि कहता है कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि से आती सुगंध पर मोहित रहता है परन्तु वह यह नहीं जानता कि यह सुगंध उसकी नाभि में से आ रही है। वह उसे इधर-उधर ढूँढता रहता है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानतावश वास्तविकता को नहीं जानता कि ईश्वर उसी में निवास करता है और उसे प्राप्त करने के लिए धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों में ढूँढता रहता है। परमात्मा को केवल अपनी आत्मा द्वारा ही जाना जा सकता हैं। वह तो जीवन रूपी प्रकाश हैं।
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कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। -
उदाहरण − जिवै - जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
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