ऋतुराज - कन्यादान

Question

आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहीं तक उचित है?

Answer

युगों से नारी को हमारे समाज में हेय समझा जाता रहा है। पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों को ही श्रेष्ठ माना जाता है। विवाह के पश्चात् लड़की ही लड़के के साथ रहने के लिए जाती है। विवाह के समय लड़की के माता-पिता के द्वारा कन्या का कन्यादान किया जाता है। यह परंपरा पूरी तरह से गलत है। आज के युग में लड़के या लड़की में कोई अंतर नहीं है। दोनों की शिक्षा बराबर होती है, दोनों एक समान काम करते हैं, बराबर कमाते हैं तो फिर कन्या के दान की बात ही क्यों? ऐसा कहना और करना पूरी तरह से गलत है।

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Some More Questions From ऋतुराज - कन्यादान Chapter

‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?

‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?

पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छबि आपके सामने उभर कर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।

माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?

माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?

आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहीं तक उचित है?

‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?

             मैं लौटुंगी नहीं
मै एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूँगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूँगी नहीं

‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किन परंपराओं से हटकर जीवन जीने की शिक्षा दी है?

कवि ने कविता के माध्यम से माँ की किस विशेषता को वाणी प्रदान की है?

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी बह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की