ऋतुराज - कन्यादान
माँ ने बेटी को सीख दी थी कि वह केवल सुंदरता पर ही नहीं रीझे बल्कि अपने वातावरण के प्रति भी सचेत रहे। जिस पानी में झांककर उसे अपनी परछाई दिखाई देती है उसकी गहराई को भी वह भली-भांति जान लें। कहीं वही उसके लिए जानलेवा सिद्ध न हो जाए। वह उस आग की तपन का भी ध्यान रखे जो रोटी पकाने में काम आती है। कहीं ऐसा न हो कि वही उसको जला डाले। उसे लड़की लगना चाहिए पर लड़की जैसा कमजोर दिखना नहीं चाहिए। उसे दुनिया की पूरी समझ होनी चाहिए।
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‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छबि आपके सामने उभर कर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।
मैं लौटुंगी नहीं
मै एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूँगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूँगी नहीं
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