गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना

Question

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

Answer

प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता छाया मत छूना से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि ने पुरानी सुखद बातों को बार-बार याद करने को उचित नहीं माना क्योंकि ऐसा करने से जीवन में आए दुःख दुगुने हो जाते हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि हे मेरे मन, तू पुरानी सुख भरी यादों को बार-बार अपने मन में मत ला; उन्हें याद मत कर। ऐसा करने से मन में छिपा दुःख बढ़ जाएगा; वह दुगुना हो जाएगा। हम मानवों के जीवन में, न जाने कितनी सुख भरी यादें मन में छिपी रहती हैं। वे सुखद रंग-बिरंगी छवियों की झलक और उनके आस-पास मधुर यादों रूपी गंध सदा ही मन को मोहती रहती हैं। वे सदा ही अच्छी लगती हैं। जब सुखद बात बीत जाती है तब केवल शरीर की मादक-मोहक सुगंध ही यादों में शेष रह जाती है। जब तारों से भरी सुखद चाँदनी रात बीत जाती है तब यादें शेष रह जाती हैं। लंबे सुंदर फूलों में लगे फूलों की याद ही चांदनी के समान मन में छाई रहती हैं। सुख भरे समय में भूल से किया गया एक स्पर्श भी जीवित क्षण के समान सुंदर और मादक प्रतीत होता है। उसे भुलाने की बात मन मैं कभी नहीं आती। वही सुखद पल जीवन के लिए सुखदायी बन कर मन में छिपा रहता है।

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Some More Questions From गिरिजाकुमार माथुर - छाया मत छूना Chapter

‘जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियां संजो रखी हैं?

‘क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।

आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।

‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर श्री गिरिजा कुमार माथुर की मानसिक सबलता पर टिप्पणी कीजिए।

कवि गिरिजाकुमार माथुर की  ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

अवतरण में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

‘छाया मत छूना’ का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

जीवन में किस की मोहक यादें फैली थीं?

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

‘चित्र-गंध’ क्या है?