दिये जल उठे - मधुकर उपाध्याय
स्वतन्त्रता संग्राम किसी व्यक्ति विशेष से संबधित नहीं था। विदेशी शासन के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। उनके लिए कानून के दायरे में रह कर काम करना असंभव था। कैसी भी कठिन परिस्थिति हो भारतीयों को उनका सामना करना आता था। वह आपसी से कार्य करने में निपुण थे। एक के पीछे एक पंक्ति बनाकर खड़े हो जाते थे और आशा के दीपक जलने लगते थे। विदेशी शासन थोड़ी सी आवाज बुलंद करने वालों को जेल में डाल दिया करते थे परन्तु पटेल की दृढ़ संकल्प शक्ति के सामने उनकी तकनीक सफल नहीं हुई। पटेल के रोब से पुलिस वालों को मोटर-गाड़ी रोकनी पड़ी थी गाँधी जी की आवाज ने सोने पर सुहागा का काम किया। देशभर में आजादी की लहर दौड़ गई। गाँधी जी के मिलन और सूझ-बूझ ने कठिन परिस्थितियों पर काबू पाकर लोगों के हृदय में स्थान बना लिया।
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