दिये जल उठे - मधुकर उपाध्याय
सरदार पटेल को जब सजा सुना दी गई तो उन्हें अहमदाबाद साबरमती जेल ले जाया गया। साबरमती आश्रम में गाँधी जी को पटेल की गिरफ्तारी, उनकी सजा और साबरमती जेल ले जाए जाने की सूचना थी। गाँधी जी इस गिरफ्तारी से बहुत क्रोधित थे। उन्होनें दांडी कूच की तारीख बदलने का निर्णय ले लिया। आश्रम में एक-एक व्यक्ति यह हिसाब लगा रहा था कि मोटर कार द्वारा वोरसद से साबरमती जेल पहुँचने में कितना समय लगेगा। जेल का रास्ता आश्रम के सामने से ही होकर जाता था। आश्रमवासी पटेल की एक झलक पाना चाहते थे। समय का अनुमान लगाकर गाँधी जी स्वयं आश्रम से बाहर निकल आए। पीछे-पीछे सभी आश्रमवासी आकर सड़क के किनारे खड़े हो गए लोगों का अनुमान था कि गाड़ी नहीं रूकेगी परन्तु उनके रोब के कारण गाड़ी रूकी तब पटेल ने गाँधी जी से कहा कि वे चलते हैं। अब उनकी बारी हैं। उन्होंने तो आंदोलन का प्रारम्भ कर दिया है। अब जन जागृति फैलाने की उनकी बारी हहै।यह पंक्ति का प्रतीकार्थ हैं।
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