मेरा छोटा- सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती
पिता के देहावसान के बाद तो आर्थिक संकट इतना बढ़ गया कि पूछिए मत। फीस जुटाना तक मुश्किल था। अपने शौक की किताबें खरीदना तो संभव ही नहीं था। राम ट्रस्ट से योग्य पर असहाय छात्रों को पाठ्यपुस्तकें खरीदने के लिए कुछ रुपए सत्र के आरम्भ में मिलते थे। उनमें लेखक प्रमुख पाठ्य पुस्तके सेकेंड-हैंड’ खरीदता था। बाकी अपने सहपाठियों से लेकर पढ़ता और नोट्स बना लेता। एक बार जाने कैसे पाठ्यपुस्तकें खरीदकर भी दो रूपए बच गए थे उसने देवदास फिल्म देखने का निर्णय किया। तभी पुस्तक की दुकान पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की देवदास को देखा। उसने वह पुस्तक खरीद ली और बाकी के बचे पैसे खर्च करने की बजाए माँ को लौटा दिए। इस प्रकार लेखक ने अपनी पहली पुस्तक खरीदी।
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