मेरा छोटा- सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती

Question

‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लीइब्रेरी है’- पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?

Answer

आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का, यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है। पिताजी के इस कथन ने लेखक में पुस्तकों के संकलन की चाह पैदा की। यहाँ से आरम्भ हुई उस बच्चे की लाइब्रेरी। बच्चा किशोर हुआ, स्कूल से कॉलेज कॉलेज से युनिवर्सिटी गया, डॉक्टरेट हासिल की, युनिवर्सिटी में अध्यापन किया, अध्यापन छोड़कर इलाहाबाद से बंबई आया संपादन किया। उसी अनुपात में अपनी लाइब्रेरी का विस्तार करता गया। किताबें पढ़ने का शौक तो ठीक, किताबें इकट्‌ठी करने की सनक सवार हुई। बचपन के अनुभव तथा पिता के कथन की प्रेरणा से उनकी घरेलू लाइब्रेरी को स्थापित किया।

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लेखक के घर में कौन-कौन-सी पत्रिकाएँ आतीं थी?

लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा?

माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चितित रहती थी?

स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए?

‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लीइब्रेरी है’- पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?

लेखक द्वारा पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

‘इन कृतियों बीच अपने को कितना मेरा-भरा महसूस करता हूँ’- का आशय स्पष्ट कीजिए?

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