गीत-अगीत - रामधारी सिंह दिनकर

Question

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
प्रथम छदं में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।

Answer

प्रकृति का चित्रण करते हुए कवि बताता है कि वन के सुनसान वातावरण में नदी तीव्र गति से बहती चली जा रही है। ऐसा लगता है कि वह अपनी व्यथा अपने किनारों से कह रही है और अपना दिल हल्का कर रही है। तट पर एक गुलाब का पौधा है जो किसी सोच-विचार में मग्न है। पास में नदी बह रही है। इसके किनारे पर गुलाब चुपचाप खड़ा हुआ है। फिर प्रकृति के साथ पशु-पक्षी का गहरा संबंध है। उनका जीवन प्रकृति पर निर्भर होता है और प्रकृति से ही उन्हें भोजन मिलता है तथा प्रकृति ही उन्हें सहारा देती है। ये प्रकृति में अपना घोंसला (निवास स्थान) बनाते हैं।

Sponsor Area

Some More Questions From गीत-अगीत - रामधारी सिंह दिनकर Chapter

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है? अपने शब्दों में लिखिए।

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए:
सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या? स्पष्ट कीजिए।

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए:
‘गीत-अगीत’ के केंद्रीय भाव को लिखिए।

संदर्भ-सहित व्याख्या कीजिए-
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनता

संदर्भ-सहित व्याख्या कीजिए-
गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर

संदर्भ-सहित व्याख्या कीजिए-
हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना यों मन में गुनती है

निन्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य-विचलन’ को समझाने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य विन्यास लिखिए-
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता
एक गुलाब तट पर सोचता है।

देते स्वर यदि मुझे विधाता
.........................................

निन्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य-विचलन’ को समझाने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य विन्यास लिखिए-
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता
एक गुलाब तट पर सोचता है।

बैठा शुक उस घनी डाल पर
.............................................

निन्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य-विचलन’ को समझाने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य विन्यास लिखिए-
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता
एक गुलाब तट पर सोचता है।

गूँज रहा शुक का स्वर वन में
.............................................

निन्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य-विचलन’ को समझाने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य विन्यास लिखिए-
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता
एक गुलाब तट पर सोचता है।

हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
.............................................