एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
भाव पक्ष -लोग कहते है कि इस पापी ने मंदिर में घुसकर इतने लम्बे समय से बनी हुई मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया है। इसके प्रवेश से मंदिर अपवित्र हो गया है। मैंने मन में सोचा-अरे! क्या मंदिर में आने का मेरा पाप भगवती से भी बड़ा है। क्या में किसी बात में देवी के महत्व से भी बढ़कर हूँ। मेरे द्वारा मंदिर अपवित्र हो गया है।
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