एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
कवि महामारी के प्रचण्ड प्रकोप का वर्णन करते हुए कहता है कि चारों ओर महामारी फैली हुई थी। उसके कारण पीड़ित लोगों की आँखों से आँसुओं की झड़ियाँ उमड़ आई थी। उनके हृदय चिताओं की भाँति धधक उठे थे। अब लोग दुख के मारे बेचैन थें। अपने बच्चों को मरा हुआ देखकर माताओं के कंठ से अत्यन्त कमजोर स्वर में करुण रूदन निकल रहा था। वातावरण बहुत हृदय विदारक था। सब और अत्यधिक व्याकुल कर देने वाला हाहाकार मचा हुआ था। माताएँ कमज़ोर स्वर में रूदन मचा रही थी।
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