एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
यह कविता छुआछूत की समस्या पर केन्द्रित है। एक मरणासन्न अछूत कन्या के मन में यह चाह उठती है कि कोई उसे देवी माता के चरणों में अर्पित किया हुआ एक फूल लाकर दे दे। बेटी की मनोकामना को पूरी करने के लिए मंदिर से पूजा का फूल लाने का उसके पिता ने निश्चय किया और मंदिर में जाकर देवी की पूजा और अराधना की जिससे उच्च वर्ग के लोगों को अपना और अपनी देवी का अपमान प्रतीत हुआ तथा इस अपराध में इन समाज के उच्च वर्गीय लोगों ने कन्या के पिता को सात दिन के लिए दंडित करके अपनी पुत्री के अंतिम दर्शन करने से भी दूर रखा। इस समाज में फैली छुआछूत की भावना किस प्रकार लोगों के मन में भेदभाव जगाती हैं और निर्धन वर्ग के प्रति अन्याय उत्पन्न करती है। किस तरह सुखिया के पिता को सामाजिक अन्याय का शिकार होना पड़ा। इसका वर्णन करते हुए कवि ने इस विषमता को मिटाने पर बल दिया है।
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