तुम कब आओगे अतिथि - शरद जोशी
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के आतिथ्य में कमी आ गई। लंच और डिनर की विविधता कम हो गई। वह उसके जाने की प्रतीक्षा करने लगे। कभी कैलेंडर दिखाकर तो कभी नम्रता की आँखे दिखाकर। स्नेह-भीगी मुस्कुराहट कुछ ही दिनों में गायब हो जाती है। घर की शांति गड़बड़ाने लगती है। समीपता दूरी में बदलने लगती है। वे उसे स्टेशन तक छोड़ने जाना चाहते हैं परन्तु अतिथि है कि जाने का नाम नहीं लेता। लेखक के व्यवहार में निम्न परिवर्तन आए-
1. खाने का स्तर डिनर से गिरकर खिचड़ी तक आ पहुंचा।
2. वह गेट आउट कहने को भी तैयार हो जाता है।
3. लेखक को अतिथि राक्षस के समान लगने लगता है।
4. अब अतिथि के प्रति सत्कार की कोई भावना नहीं बनी रहती।
5. भावनाएँ अब गालियों का स्वरूप ग्रहण करने लगती हैं।
Sponsor Area
Sponsor Area
Sponsor Area