धूल - रामविलास शर्मा
इस पाठ में लेखक ने बताया है कि जो लोग गाँव से जुड़े हुए हैं वे यह कल्पना ही नहीं कर सकते कि धूल के बिना भी कोई शिशु हो सकता है। वे धूल से सने हुए बच्चे को ‘धूलि भरे हीरे’ कहते हैं। आधुनिक नगरीय सभ्यता बच्चों को धूल में खेलने से मना करती है। नगर में लोग कृत्रिम वातावरण में जीने पर विवश होते है। नगर की सभ्यता को बनावटी, नकली और चकाचौंध भरी कहा गया है। यहाँ लोगों को काँच के हीरे ही प्यारे लगते हैं। नगरीय सभ्यता में गोधूलि का महत्व नहीं होता जबकि ग्रामीण परिवेश का यह अलंकार है। नगरों में तो धूल- धक्कड़ होते हैं गोधूलि नहीं होती।
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