धूल - रामविलास शर्मा
अखाड़े की मिट्टी शरीर को पहचानती है। यह साधारण मिट्टी नहीं है। इसे तेल और मट्ठे से रिझाया जाता है और देवताओं पर चढ़ाया जाता है। ऐसी मिट्टी में सनना परम सुख है जहाँ इसके स्पर्श से माँसपेशियाँ फूल उठती हैं। शरीर मजबूत और व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है। वही इसमें चारों खाने चित्त होने पर विश्व-विजेता होने के सुख का अहसास होता है। लेखक की दृष्टि में इसके स्पर्श से वंचित होने से बढ़कर दूसरा कोई दुर्भाग्य नहीं है।
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