पहले पर्यावरण को किस तरह देखना चाहता था? क्या अब सोच में कोई बदलाव आया है? चर्चा करें।
पहले हमारे पास पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत कम कानून थे। इन कानूनों को लागू करने की व्यवस्था भी काफी कमजोर थी। पर्यावरण को एक मुफ्त चीज़ माना जाता था। किसी भी उद्योग को हवा-पानी में प्रदूषण छोड़ने की खुली छूट मिली हुई थी। चाहे नदियाँ हों, हवा हो या भूमिगत पानी हो - पर्यावरण दूषित हो रहा था और लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था।
अब पर्यावरण के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आया है। अदालतों ने स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा बताते हुए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जीवन का अधिकार संविधान के 21वें अनुच्छेद के तहत एक मौलिक अधिकार है और इसमें प्रदूषण मुक्त हवा और पानी के अधिकार भी शामिल हैं। यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह प्रदूषण पर अंकुश लगाने, नदियों को साफ रखने और जो दोषी हैं उन पर भारी जुर्माना लगाने के लिए कानून और प्रक्रियाएँ तय करे।




