लेखक किस बात से हैरान हो जाता है?
लेखक मुग्ध और विस्मय-विग्रह होकर कालिदास के एक-एक श्लोक को देखकर हैरान हो जाता है। वह कहता है कि अब इस शिरीष के फूल का ही एक उदाहरण लीजिए। शकुंतला बहुत सुंदर थी। सुंदर क्या होने से कोई हो जाता है? देखना चाहिए कि कितने सुंदर हृदय से वह सौंदर्य डुबकी लगाकर निकला है। शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी। विधाता की ओर से कोई कंजूसी नहीं थी कवि की ओर से भी नहीं। राजा दुष्यंत भी अच्छे- भले प्रेमी थे। उन्होंने शकुंतला का एक चित्र बनाया था; लेकिन रह-रहकर उनका मन खीझ उठता था। उहूँ, कहीं-न-कहीं कुछ छूट गया है। बड़ी देर के बाद उन्हें समझ में आया कि शकुतंला के कानों में वे उस शिरीष पुष्प को देना भूल गए हैं, जिसके केसर गंडस्थल तक लटके हुए थे और रह गया है शरच्चंद्र की किरणों के समान कोमल और शुभ्र मृणाल का हार।