आशय स्पष्ट कीजिए-
दुरत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का सघंर्ष निरतंर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की और मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे।
जीवनी शक्ति और सब जगह समाई काल रूपी अग्नि का आपस में निरंतर संघर्ष चलता रहता है। काल का प्रभाव बड़ा व्यापक है। मूर्ख व्यक्ति यह समझते हैं कि जहाँ हम हैं वहीं देर तक बने रहना चाहिए। इससे वे कालदेवता की नजर से बच जाएँगे पर यह सच नहीं है। वे भोले होने के कारण ऐसा सोचते हैं। यदि यमराज की मार से बचना है तो हिलते-डुलते रहना चाहिए, स्थान भी बदलते रहना चाहिए। पीछे मत छिपो बल्कि अपना मुँह आगे की ओर रखो। कहीं भी जमना मरने के समान है।