भारतीय परंपरा में अपने पर हँसने की क्या स्थिति है? इस क्षेत्र में चार्ली का भारत में क्या महत्त्व है?
एक होली का त्योहार छोड दें तो भारतीय परंपरा में व्यक्ति की अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँवों और लोक-संस्कृति में तब भी वह शायद हो, नागर-सभ्यता में बिल्कुल नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्व यह है कि वह ‘अंग्रेजों जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देता है। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्म-विश्वास से लबरेज, सफलता, सम्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखलाता है। तब यह समझिए कि कुछ ऐसा हुआ ही चाहता है कि यह सारी गरिमा, सुई-चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।