भक्तिन क्या किया संपन्न करके चौके में घुसी? लेखिका को यह सब कैसा लगा?
लेखिका के घर दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औंधा कर भक्तिन ने लेखिका की धुली धोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और फूटते हुए सूर्य और पीपल का दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब लेखिका ने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर है। लेखिका पाक-विद्या के लिए परिवार में प्रख्यात है और कोई भी पाक कुशल दूसरे के काम में नुक्ताचीनी बिना किए रह नहीं सकता पर जब छूत-पाक पर प्राण देने वाले व्यक्तियों का, बात-बात पर भूखा मरना स्मरण हो आया और भक्तिन की श।काकुल दृष्टि में छिपे हुए निषेध का अनुभव किया, तब कोयले की रेखा उसके लिए लक्ष्मण के धनुष से खींची हुई रेखा के सामने दुर्लध्य हो उठी। निरुपाय अपने कमरे में बिछौने में पड़कर नाक के ऊपर खुली हुई पुस्तक स्थापित कर वह चौक मे पीछे पर बैठकर अनधिकारी को भूलने का प्रयास करने लगी।