ऐसे में तू याद आये है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गये गर्दूं पॅ फरिश्ते बाबे-गुनाह जग खोलें हैं
सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गजलें बोले हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से ली गई हैं।
व्याख्या: शायर कहता है कि शराब की महफिल में शराबियों को तू (ईश्वर) याद आता है। पर जब रात बीत जाती है। तब आकाश में फरिश्ते पाप का अध्याय खोलते हैं। अर्थात् हमारे कर्मों को आकाश में ऊपर बैठे फरिश्ते देख रहे हैं।
फिराक (शायर) बेहतरीन शायरी पर कुर्बान जाता है। उसने यह आवाज कैसे उड़ा ली है। इन गजलों में तो मीर की गजलें बोलती जान पड़ती हैं। शायर फिराक पर मीर का विशेष प्रभाव है। उसने ‘सुना हो’, ‘रक्खों हो’ मीर की शायरी की तर्ज पर ही इस्तेमाल किए हैं। इस प्रकार बेहतरीन शायरी में ‘मीर’ की आवाज का आभास होता है।
विशेष: उर्दू शब्दों की भरमार है।