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फिराक गोरखपुरी

Question
CBSEENHN12026419

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रसंग व्याख्या करें

नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोलें हैं

या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोलें हैं।

तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा-जर्रा सोये हैं

तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोलें हैं।

Solution

प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से अवतरित हैं।

व्याख्या: कवि प्रकृति का मनोहारी चित्रण करते हुए कहता है कि कली की पंखुड़ियाँ धीरे-धीरे नाजुक (कोमल) गाँठों को खोलती हैं अर्थात् कलियाँ आहिस्ता-आहिस्ता खिलकर फूल बनने की राह में हैं। इन कलियों में सभी नौ रस समाए हैं। कलियों के खिलने से रंग और खुशबू सारे बगीचे में फैल जाती है।

रात्रि के समय आकाश में तारे आँखें झपकाते से प्रतीत होते हैं। उस समय पृथ्वी का एक कण सोया रहता है। हे मित्रो! तुम भी सुनो! रात में पसरा यह सन्नाटा भी बोलता प्रतीत होता है। इस सन्नाटे का भी कोई मतलब है। रात की खामोशी में भी कोई बोल रहा है।

विशेष: 1. तारों का मानवीकरण किया गया है।

2. ‘सन्नाटे का बोलना’ में विरोधाभास अलंकार है।

3. ‘जर्रा-जर्रा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

4. उर्दू शब्दावली का भरपूर प्रयोग है।

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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

दीपावली की शाम घर पुते और सजे

चीनी के खिलौने जगमगाते लावे

वो रूपवती मुखड़े पॅ इक नर्म दमक

बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

दीपावली पर लोग क्या करते हैं?

दीपावली पर बच्चे माँ से क्या फरमाइश करते हैं?

माँ के चेहरे पर मुस्कराहट क्यों आ जाती है?

माँ बच्चे की फरमाइश को कैसे पूरी करती है?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है

बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है

दर्पण उसे दे के कह रही है माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है।

आँगन में कौन ठुमक रहा है?

बालक का जी किस पर ललचाया है?

माँ उसकी इच्छा किस प्रकार पूरी करती है?

क्या वास्तव में चन्द्रमा दर्पण में उतर आया था?