प्रस्तुत पक्तियों की सप्रसंग व्याख्या करें
नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोलें हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोलें हैं।
तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा-जर्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोलें हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से अवतरित हैं।
व्याख्या: कवि प्रकृति का मनोहारी चित्रण करते हुए कहता है कि कली की पंखुड़ियाँ धीरे-धीरे नाजुक (कोमल) गाँठों को खोलती हैं अर्थात् कलियाँ आहिस्ता-आहिस्ता खिलकर फूल बनने की राह में हैं। इन कलियों में सभी नौ रस समाए हैं। कलियों के खिलने से रंग और खुशबू सारे बगीचे में फैल जाती है।
रात्रि के समय आकाश में तारे आँखें झपकाते से प्रतीत होते हैं। उस समय पृथ्वी का एक कण सोया रहता है। हे मित्रो! तुम भी सुनो! रात में पसरा यह सन्नाटा भी बोलता प्रतीत होता है। इस सन्नाटे का भी कोई मतलब है। रात की खामोशी में भी कोई बोल रहा है।
विशेष: 1. तारों का मानवीकरण किया गया है।
2. ‘सन्नाटे का बोलना’ में विरोधाभास अलंकार है।
3. ‘जर्रा-जर्रा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. उर्दू शब्दावली का भरपूर प्रयोग है।